– राकेश अचल
भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द 42वें संशोधन के द्वारा 1976 में जोडे गए। यह संशोधन 25 नवंबर 1976 को लागू हुआ। इन शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया, जिससे भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। लेकिन ये दोनों ही शब्द भाजपा और आरएसएस को कांटे की तरह आज भी चुभते हैं। संघ का बस चले तो वो ये दोनों शब्द रातों-रात हटवा दें, किंतु ऐसा करना फिलहाल असंभव है।
गत दिवस इन दोनों शब्दों की वजह से होने वाली चुभन को आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले दबा नहीं पाए। होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की बात कही। उन्होंने कांग्रेस पर 50 साल पहले इमरजेंसी लगाने का आरोप लगाते हुए कहा कि इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस सरकार ने प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोडे थे। अब इस पर विचार करना चाहिए कि ये शब्द रहने चाहिए या नहीं। उन्होंने कांग्रेस से इमरजेंसी के लिए माफी मांगने की मांग की। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जिन्होंने इमरजेंसी किया, वे आज संविधान की प्रति लेकर घूम रहे हैं। उन्हें इसके लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।
आपको याद होगा कि भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद दो मूलभूत सिद्धांत हैं, जिन्हें 1976 में 42वें संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से जोडा गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने ये सब किया था। भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और निष्पक्षता बरती जाएगी। यह पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता (राज्य और धर्म का पूर्ण अलगाव) से भिन्न है, क्योंकि भारत में राज्य धर्मों के प्रति तटस्थ रहता है और सभी धर्मों के अनुयायियों को समान अधिकार देता है। संवैधानिक प्रावधान, प्रस्तावना भारत को ‘धर्मनिरपेक्ष’ गणराज्य घोषित करता है। अनुच्छेद 25-28 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करते हैं, जिसमें व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता शामिल है। अनुच्छेद 14, 15, 16 समानता और गैर-भेदभाव का अधिकार सुनिश्चित करते हैं, जिसमें धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब ‘सर्वधर्म समभाव’ है, यानी सभी धर्मों का समान सम्मान। राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन धार्मिक सुधारों या सामाजिक कल्याण के लिए आवश्यक कदम उठा सकता है (उदाहरण- मन्दिरों का प्रशासन, सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ कानून)। यह सिद्धांत भारत की विविध धार्मिक और सांस्कृतिक संरचना को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण है। जबकि संघ और भाजपा संविधान की प्रस्तावना में हिन्दू राष्ट्र शब्द जोडने का सपना पाले हुए है।
भारतीय संदर्भ में समाजवाद का मतलब आर्थिक और सामाजिक समानता को बढावा देना है, जिसमें धन और संसाधनों का असमान वितरण कम करना और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना शामिल है। यह पूर्ण समाजवाद (जैसे साम्यवाद) नहीं, बल्कि ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ है, जो निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के बीच संतुलन बनाता है। संवैधानिक प्रस्तावना में ये शब्द आने के बाद भारत को ‘समाजवादी’ गणराज्य घोषित कर दिया गया था। अनुच्छेद 38, 39, 41, 42, 43 आदि सामाजिक और आर्थिक समानता को बढावा देने के लिए राज्य को निर्देश देते हैं। जैसे- अनुच्छेद 39 संसाधनों का समान वितरण और धन का केन्द्रीकरण रोकना। अनुच्छेद 43 श्रमिकों के लिए उचित मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा। मौलिक अधिकार- अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध) सामाजिक-आर्थिक न्याय को बढावा देते हैं।
भारत का समाजवाद मिश्रित अर्थव्यवस्था पर आधारित है, जिसमें निजी उद्यम और सरकारी नियंत्रण दोनों शामिल हैं। यह सामाजिक कल्याण, गरीबी उन्मूलन और वंचित वर्गों के उत्थान पर केन्द्रित है। महत्व- समाजवाद का लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करना और सभी नागरिकों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना है।
भाजपा धर्मनिरपेक्षता को भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को एकजुट रखने का आधार नहीं मानती है, जो सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार सुनिश्चित करता है। समाजवाद सामाजिक-आर्थिक न्याय और समानता को बढावा देता है, जो भारत जैसे असमानताओं से भरे समाज में महत्वपूर्ण है। दोनों सिद्धांत संविधान की प्रस्तावना में निहित हैं और भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करते हैं।
भाजपा पिछले 11साल से सत्ता में है। भाजपा ने संविधान के तहत जम्मू काश्मीर को मिला विशेष दर्जा धारा 370 हटा दी, लेकिन संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटा पाना भाजपा की लंगडी सरकार के लिए नामुमकिन लग रहा है। इन शब्दों की बिना लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जाता। अब दैखना है कि भाजपा इन कांटों को कब तक हटा पाती है।