– राकेश अचल
पूर्व केन्द्रीय मंत्री, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डॉ. गिरिजा व्यास का निधन हो गया है। वो 78 साल की थीं। उनका निधन एक हादसा है। 31 मार्च 2025 को उदयपुर के दैत्य मगरी स्थित अपने घर पर वह गणगौर पूजा कर रही थीं तभी एक दीपक की लौ से उनके कपडों में आग लग गई। इस हादसे में वे 90 प्रतिशत तक झुलस गई थीं।
डॉ. गिरिजा व्यास भारतीय राजनीति की एक ऐसा सौम्य चेहरा थीं जिन्हें भरपूर सम्मान और अवसर मिला। वे विदुषी थीं और राजनीति में रहकर उन्होंने अपनी बुद्धमत्ता का मुजाहिरा भी खूब किया। लोकप्रियता का प्रमाण ये है कि डॉ. गिरिजा व्यास एक-दो मर्तबा नहीं, बल्कि पूरे चार बार सांसद चुनी गईं।
डॉ. व्यास उन खुशनसीब राजनेताओं में शुमार की जाती हैं जिन्हें मात्र 25 वर्ष की आयु में ही विधायक या सांसद बनने का मौका मिलता है। डॉ. गिरिजा व्यास भी 25 साल की उम्र में राजस्थान विधानसभा की सदस्य बनी। केन्द्र में डॉ. व्यास को अनेक मंत्रालयों का दायित्व संभालने का मौका मिला। नरसिम्हा राव सरकार में आप सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और विगत मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार में आपने केन्द्रीय कैबिनेट में शहरी आवास एवं गरीबी उन्मूलन मंत्रालय की जिम्मेवारी को बख़ूबी निभाया। एक मंत्री के रूप में मेरी उनसे दो मुलाकातें हुईं।
डॉ. व्यास राष्ट्रीय महिला आयोग की दो कार्यकाल तक राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रही हैं। डॉ. व्यास राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद के अलावा लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक पद एवं बतौर एआईसीसी मीडिया प्रभारी भी रही हैं। फिलहाल अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के केन्द्रीय चुनाव समिति के साथ-साथ विचार विभाग की चेयरपर्सन एवं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुखपत्र कांग्रेस संदेश पत्रिका की मुख्य संपादक थीं। उनके कवि होने का पता मुझे बाद में चला। मेरी नजर में वे एक ऐसी कवयित्री थीं, जिन्होंने राजस्थान से निकल कर देश के साहित्य और राजनीतिक जगत में अपनी अलग पहचान बनाई।
गिरिजा व्यास का जन्म 8 जुलाई 1946 को नाथद्वारा के श्रीकृष्ण शर्मा और जमुना देवी के घर हुआ था। उन्होंने उदयपुर के मीरा कॉलेज से स्नातक और एमबी कॉलेज से स्नातकोत्तर की पढाई की। इसी कॉलेज ने बाद में मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय का रूप लिया। व्यास ने यहीं से दर्शन शास्त्र में पीएचडी भी की। उनकी एक महत्वपूर्ण थीसिस गीता और बाइबिल के तुलनात्मक अध्ययन पर है। उन्होंने एमए दर्शन शास्त्र में उदयपुर के सुखाडिया विश्वविद्यालय में गोल्ड मेडल जीता और वे सभी संकायों में टॉप रहीं।
एक बार अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने बताया था कि वे नेता नहीं नृत्यांगना बनना चाहती थीं। उनकी मां उन्हें हमेशा बुलबुल कहा करती थीं। मां चाहती थीं कि उनकी बेटी एक दिन डॉक्टर बनेगी, वे डॉक्टर तो बनीं, लेकिन दर्शनशास्त्र में पीएचडी के बाद उनको यह उपाधि मिली। गिरिजा व्यास जब छोटी थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया था। उन्होंने अपने परिवार को संभाला और उन्होंने शादी नहीं की। उन्होंने पूरे 15 साल शास्त्रीय संगीत और कथक सीखा, लेकिन इसके छूटने का कभी अफसोस भी नहीं किया। गिरिजा व्यास यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर (अमेरिका) में 1979-80 में पढाने भी गई थीं। कांग्रेस की इस विदुषी नेत्री का प्रस्थान ऐसे समय में हुआ जब देश पहलगाम हत्याकाण्ड के शोक में डूबा था। वे स्मृतियों में सदैव रहेंगी। विनम्र श्रद्धांजलि।