रमजान : क्या मस्जिदों पर भी फूल बरसाएंगे योगी?

– राकेश अचल

देश के 22 करोड मुसलमानों का पवित्र त्यौहार रमजान रविवार से शुरू हो रहा हैं। प्रयागराज में समाप्त हुए महाकुम्भ के बाद का ये एक बडा त्यौहार है। अब सवाल ये है कि क्या उत्तर पदेश की सरकार सूबे की मस्जिदों में सरकारी हैलीकॉप्टर से नमाजियों पर पुष्पवृष्टि करेगी? पढने वाले कहेंगे कि क्या मूर्खतापूर्ण सवाल किया है? मस्जिदों पर भी कोई फूल बरसता है। वहां तो केवल पुलिस की लाठियां बरसाई जाती हैं।
रमजान का महीना महाकुम्भ की तरह हालांकि पाप धोने का मौका नहीं है, लेकिन इस महीने में लोग पूरे एक महीने उपवास कर लोक कल्याण के लिए दुआएं करते हैं। पवित्र कुरआन का परायण करते हैं, तरावीह की नमाज पढते हैं और अपनी औकात के हिसाब से जकात (दान) भी देते हैं। एतेकाफ करते हैं और माह के अंत में मिल-जुलकर ईद मनाते हैं। यानि ये आत्मशोधन और लोक कल्याण की उपासना का महीना है, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि किसी भी सरकार के पास इस त्यौहार को मनाने की न इच्छाशक्ति है और न खजाने में पैसा है, न नमाजियों पर फूल बरसाने के लिए कोई हैलीकॉप्टर।
आम धारणा है कि रमजान महीने की 23वीं तारीख शबे कद्र है, यानि इसी दिन कुरआन का अवतरण हुआ। इसलिए इस महीने में कुरान का पारायण किया जाता है, जो अनपढ हैं वे कुरान सुनते हैं। रमजान के महीने में उपवास को अरबी में सौम और फारसी में रोजा कहा जाता है। लोग फज्र की नमाज पढते हैं, सेहरी करते हैं। सूर्यास्त के बाद रोजा खोला जाता है, यानि इफ्तारी की जाती है। एक जमाना था जब प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति के यहां भी रोजेदारों के लिए इफ्तार की दावतें होती थीं, लेकिन अब सरकार रोजा इफ्तार को पाप और तुष्टिकरण मानती है, इसलिए इस रिवायत को समाप्त कर दिया गया है। मौजूदा सरकार में तो एक भी मुसलमान मंत्री भी नहीं है, जो बेचारे रोजदारों को इफ्तार की दावत दे दे।
महाकुम्भ में जैसे सनातनियों के पाप धुल जाते हैं, वैसे ही माहे रमजान में रोजदारों के गुनाह माफ हो जाते हैं। रोजा इफ्तार के लिए पकवानों की जरूरत नहीं होती, ये श्रृद्धा का मामला है। अगर आपके पास कुछ नहीं है तो आप रोजेदार को एक खजूर और एक गिलास पानी देकर भी इफ्तारी करा सकते हैं। ये महीना मुस्तहिक लोगों की इमदाद करने का है। इस इमदाद को आप जकात कहें या फित्रा कहें या सदका कहें, कोई फर्क नहीं पडता। रोजा मुसलमानों को ‘जब्ती नफ्स’ यानि आत्म नियंत्रण करना सिखाता है, परहेजगारी सिखाता है, यानि ये एक तरह की हठ साधना है।
रमजान का आगाज चंद्र दर्शन से होता है और समापन भी चंद्र दर्शन से होता है। ठीक उसी तरह मुसलमान चंद्रमा की प्रतीक्षा करते हैं जैसे करवा चौथ पर सनातनी विवाहिताएं चन्द्रमा की प्रतीक्षा करती हैं। यानि चांद सियासित नहीं करता। चांद दोनों को क्या सभी को दर्शन देता है। चन्दा सबका है। चांद मियां का भी और चंद्रशेखर का भी। सनातनियों का भी और गैर सनातनियों का भी। आप कह सकते हैं कि काफिरों का भी होता है चांद। वैसे रमजान इस्लाम कैलेण्डर का नौवां महीना होता है। माना जाता है कि सन् 610 में लेयलत उल-कद्र के मौके पर मुहम्मद साहब को कुरान शरीफ के बारे में पता चला था। यूं रंजन का मतलब प्रखर होता है।
रोजा हिन्दुओं के अनेक कठिन व्रतों जैसा ही है। हमारे इशाक मियां के अब्बू बताया करते थे कि रोजे का मतलब यह नहीं है कि आप खाएं तो कुछ न, लेकिन खाने के बारे में सोचते रहें। रोजे के दौरान खाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। इस्लाम के अनुसार पांच बातें करने पर रोजा टूटा हुआ माना जाता है। ये पांच बातें हैं- बदनामी करना, लालच करना, पीठ पीछे बुराई करना, झूठ बोलना और झूठी कसम खाना। अब्बू के मुताबिक रोजे का मतलब बस उस अल्लाह के नाम पर भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है। इस दौरान आंख, कान और जीभ का भी रोजा रखा जाता है। इस बात का मतलब यह है कि इस दौरान न तो कुछ बुरा देखे, न बुरा सुनें और न ही बुरा बोलें। रोजे का मुख्य नियम यह है कि रोजा रखने वाला मुसलमान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के दौरान कुछ भी न खाए। रोजा ‘मन सा वाचा कर्मणा’ आत्म नियंत्रण का अवसर है। काम, क्रोध, मोह और लोभ से मुक्ति का संकल्प लेकर रोजा रहा जाता है। मैं अ-स्नानी सनातनी हूं, लेकिन जब-तब अपने मुस्लिम मित्रों को इफ्तार की छोटी-मोती दावत देकर थोडा-बहुत पुण्य हासिल करने की कोशिश करता हूं। ऐसी कोशिशें ही सामाजिक सदभाव के लिए जरूरी हैं। ऐसी कोशिशें सरकारों को भी करना चाहिए, लेकिन सरकारें तो सनातनियों की हैं और उन्हीं के लिए काम करती हैं। उनका तुष्टिकरण में नहीं, संतुष्टिकरण में यकीन बढता जा रहा है। सभी रोजेदारों को बहुत-बहुत मुबारकवाद।