रामभद्राचार्य के श्रीमुख से एक भद्र टिप्पणी

– राकेश अचल


चित्रकूट के गिरधर मिश्रा यानि जगदगुरू स्वामी रामभद्राचार्य के प्रति मेरे मन में श्रद्धा का भाव लेशमात्र भी नहीं है, लेकिन उनकी विद्वता का मैं कायल हूं। कायल हूं उनकी निर्भीकता का। वे जिस आत्मविश्वास के साथ जातिवाद का समर्थन करते हैं, उसी प्रखरता के साथ अपने अभद्र और विदूषक शिष्यों का संरक्षण भी करते हैं। स्वामी जी ने हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत को भी आईना दिखाकर एक शुभकार्य किया है। उन्होंने कहा है कि भागवत संघ प्रमुख हो सकते हैं जिन्तु हिन्दूधर्म के ठेकेदार नहीं।
गत दिवस पुणे में ‘हिन्दू सेवा महोत्सव’ के उदघाटन के मौके पर बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा कि राम मन्दिर के साथ हिन्दुओं की श्रद्धा है, लेकिन राम मन्दिर निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वो नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर हिन्दुओं का नेता बन सकते हैं। ये स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने इस माहौल पर चिंता जाहिर करते हुए एक बार फिर मन्दिर-मस्जिद वाले चैप्टर को बंद करने की बात कही। उनके इस बयान से ये ध्वनित होता है जैसे कि वे हिन्दू धर्म के ठेकेदार के रूप में बोल रहे हैं।
संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत की बात गिरगिट के रंग बदलने जैसा है। उनके प्रचारकों की पार्टी भाजपा इन दिनों देश में मुसलमान के पूजा स्थलों की खुदाई का अभियान चलाए हुए है और इसके लिए बाकायदा अदालतों का सहारा लिया जा रहा है। इस मुद्दे पर स्वामी रामभद्राचार्य ने सबसे पहले अपना मौन तोडा और कहा कि ‘ये मोहन भागवत का व्यक्तिगत बयान हो सकता है। ये सबका बयान नहीं है। वो किसी एक संगठन के प्रमुख हो सकते हैं, हिन्दू धर्म के वो प्रमुख नहीं हैं कि हम उनकी बात मानते रहें। वो हमारे अनुशासक नहीं हैं। हम उनके अनुशासक हैं।’
रामभद्राचार्य ने कहा, ‘हिन्दू धर्म की व्यवस्था के लिए वो ठेकेदार नहीं हैं। हिन्दू धर्म की व्यवस्था, हिन्दू धर्म के आचार्यों के हाथ में हैं, उनके हाथ में नहीं हैं। वो किसी एक संगठन के प्रमुख बन सकते हैं, हमारे नहीं हैं। संपूर्ण भारत के वो प्रतिनिधि नहीं हैं।’ राम मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के समय से ही भाजपा और सरकार से खिंचे रहने वाले ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद भी मोहन भागवत के बयान के बाद गुस्से में है। उन्होंने कहा, जो लोग आज कह रहे हैं कि हर जगह नहीं खोजना चाहिए, इन्हीं लोगों ने तो बात बढ़ाई है और बढ़ाकर सत्ता हासिल कर ली, अब सत्ता में बैठने के बाद कठिनाई हो रही है।
हिन्दू धर्म के स्वयंभू संरक्षक संघ प्रमुख के बयान की मुखालफत करने वाले स्वामी रामभद्राचार्य विचारों से पक्के हिन्दू हैं, हिन्दू ही नहीं बल्कि राजनीतिक विचारों के मामले में भाजपा के समर्थक हैं और खुले आम भाजपा के लिए काम करते हैं। कांदिवली के ठाकुल विलेज में डेरा डाले बैठे स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार को लेकर सरकार कदम उठा रही है, लेकिन अब और कठोर कदम उठाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहूंगा कि वो कठोर रुख अपनाएं। इसके साथ उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित होने वाले कुंभ के आयोजन पर उन्होंने खुशी जाहिर की। स्वामी रामभद्राचार्य का बयान भी हालांकि एक भूल-भुलैया ही है, क्योंकि स्वामी जी भी वही सब चाहते हैं जो डॉ. भागवत चाहते हैं, या जो योगी आदित्यनाथ चाहते हैं या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं।
स्वामी रामभद्राचार्य के पतु शिष्य बागेश्वरधाम के विदोषक बाबा धीरेन्द्र शास्त्री तो बाकायदा भाजपा के कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे है। उन्होंने हाल ही में 200 किमी की एक पदयात्रा भी हिन्दुओं को एकजुट करने के लिए की थी। लेकिन फिलहाल स्वामी रामभद्राचार्य ने ध्यान भटकाने में डॉ. भागवत की मदद की है या विरोध ये तय कर पाना आसान नहीं है।
पहले संसद में फिर संसद के बाहर डॉ. भीमराव अम्बेडकर पर बयान को लेकर घिरी भाजपा अब धर्म के मुद्दे पर वापस आ गई है। अब पूरी सरकार और सरकारी पार्टी महाकुंभ की बात करने लगी है। डॉ. अम्बेडकर को लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा सदन में दिए गए भाषण के बाद न केवल विपक्ष का आईएनडीआईए गठबंधन बल्कि दूसरे दल भी भाजपा के खिलाफ खडे नजर आ रहे हैं। डॉ. अम्बेडकर की मान-प्रतिष्ठा को लेकर भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे के खिलाफ आरोपों की झडी लगाए हुए हैं।
मेरा मानना है कि यदि स्वामी रामभद्राचार्य हिन्दुत्व की ठेकेदारी के मुद्दे पर संघ के खिलाफ खडे हो जाएं तो स्थितियां बदल सकती हैं, लेकिन वे ऐसा कर नहीं सकते। आपको याद दिला दें कि स्वामी रामभद्राचार्य 24 साल पहले सन 2000 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित सहस्त्राब्दी विश्व शांति शिखर सम्मलेन में भारत के आध्यात्मिक और धार्मिक गुरुओं में जगद्गुरू रामभद्राचार्य सम्मिलित थे। संयुक्त राष्ट्र को उदबोधित करते हुए उन्होंने भारत और हिन्दू शब्दों की संस्कृत व्याख्या और ईश्वर के सगुण और निर्गुण स्वरूपों का उल्लेख करते हुए शांति पर वक्तव्य दिया था।
स्वामी जी जुलाई 2003 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सम्मुख अयोध्या विवाद के अपर मूल अभियोग संख्या 5 के अंतर्गत धार्मिक मामलों के विशेषज्ञ के रूप में साक्षी बनकर प्रस्तुत हुए थे उनके शपथ पत्र और जिरह के कुछ अंश अंतिम निर्णय में उद्धृत हैं। अपने शपथ पत्र में उन्होंने सनातन धर्म के प्राचीन शास्त्रों जैसे वाल्मीकि रामायण, रामतापनीय उपनिषद, स्कंद पुराण, यजुर्वेद, अथर्व वेद से उन छंदों को उद्धृत किया जो उनके मतानुसार अयोध्या को एक पवित्र तीर्थ और श्रीराम का जन्मस्थान सिद्ध करते हैं। अब देखना ये है कि हिन्दू धर्म कि ठेके को लेकर स्वामी रामभद्राचार्य ने जो कुछ कहा है उसे शेष संत समाज का समर्थन मिलता है या फिर संघ पहले की तरह हिन्दुओं का स्वयंभू ठेकदार बना रहेगा?