लोकतंत्र और बेचारा बुद्दू बक्सा

– राकेश अचल


मुझे इस बात पर सख्त ऐतराज है कि कांग्रेस भी भाजपा की तरह ‘कैमरा प्रेमी’ होती जा रही है। कांग्रेस भूल जाती है कि मोदी युग में चाहे संवैधानिक संस्थाएं हों या सरकारी कैमरे, केवल और केवल एक चेहरे को पहचानते हैं। उस चेहरे को जो अविनाशी है, अजेय है, अनंत है, संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान सरकारी कैमरे ने किसका चेहरा कितनी बार दिखाया, ये कोई मुद्दा नहीं हो सकता। कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि कैमरा उसके नेता की और नहीं ताकता। इसके लिए अभी कांग्रेस को लम्बी प्रतीक्षा करना पड़ेगी।
दरअसल देश को ‘कैमराजीवी’ प्रधानमंत्री 2014 में पहली मर्तबा मिला था। उसे हंसना, रोना, गाना, अभिनय करना सभी कुछ आता है। उसके पास स्वर्गवासी जय ललिता कि तरह सतरंगे परिधानों, जूतों-चप्पलों और सैंडिलों का अक्षय भण्डार है। ये सारी चीजे ही एक कैमरे की जरूरत होतीं हैं, भले ही फिर कैमरा सरकारी हो या गैर-सरकारी। चूंकि मैं लम्बे आरसे तक कैमरे से बाबस्ता रहा हूं, इसलिए कैमरे के बारे में कांग्रेस से ज्यादा जानता हूं। मुझे पता है कि कैमरे को कौन से रंग और फ्रेम पसंद हैं और कौन से नहीं? कौन सी प्रकाश व्यवस्था में कैमरा अच्छे परिणाम देता है और कौन से में नहीं? मैं जानता हूं कि कैमरे के लिए कौन सा कौण सबसे अच्छा होता है और कौन सा नहीं? ये सब बातें आधी जिंदगी एक जींस पेण्ट और सफेद टीशर्ट पहनकर राजनीति करने वाले क्या जाने?
पिछले दस साल में कैमरा ही नहीं और भी जितने संवैधनिएक इंस्ट्रूमेंट हैं वे सत्तोन्मुख हो गए हैं। इसमें बुराई भी नहीं है। सूरजमुखी का पुष्प भी जिधर सूरज होता है उधर को मुंह करके खिलता है, फिर कैमरा तो कैमरा ठहरा। कैमरे और पालतू कुत्ते में ज्यादा फर्क नहीं होता, ये शायद कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं को पता नहीं है। विपक्ष के नए-नवेले नेता राहुल गांधी की तो शायद बिलकुल बह पता नहीं हो! राहुल गांधी संसदीय अनुभव में भले माननीयों से ज्यादा वरिष्ठ हों लेकिन सत्तासुख भोगने में तो शून्य हैं। हमारे मित्र मेरी इस टिप्पणी पर भी उज्र कर सकते हैं, क्योंकि उनका दावा है कि राहुल गांधी तो पैदा ही सोने-चांदी की चम्मच मुंह में रखकर हुए थे। उनके दादी,दादी के पिता जी और खुद उनके पिता जी देश के प्रधानमंत्री रहे, इसलिए ऐसा कैसे हो सकता है की राहुल गांधी ने सत्ता-सुख न भोगा हो?
बात कैमरे की हो रही थी। कैमरा, केंचुआ और कुत्ते की राशि एक है, स्वभाव एक है। तीनों स्वामिभक्त होते हैं, इसलिए इन तीनों से किसी दूसरे को कोई अपेक्षा नहीं करना चाहिए। ये केवल अपने स्वामी की कमान (निर्देश) स्वीकार करते हैं। पिछले दस साल से ये तीनों यही कर रहे हैं और अगले दस साल तक शायद ऐसा ही करें। कांग्रेस की इस आपत्ति पर मुझे आपत्ति है कि ‘बुद्दू बक्से’ के कैमरे ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान माननीय को 75 बार और राहुल गांधी को सिर्फ 6 मर्तबा दिखाया। अरे बाबा माननीय का और बुद्दू बक्से का आभार मानिये, उसे थेंक्यू कहिये कि उसने आपको 6 मर्तबा तो दिखाया! मान लीजिये यदि वो एक मर्तबा भी नहीं दिखाता तो आप क्या कर लेते? माननीय राष्ट्रपति ने ही लोकसभा अध्यक्ष को उनके चुने जाने पर बधाई दी और आपको विपक्ष का नेता चुने जाने पर बधाई नहीं दी तो क्या आप राष्ट्रपति के खिलाफ महभियोग प्रस्ताव सदन में लेकर आएंगे? शायद नहीं। इसलिए ये गिनती करना छड़ दे कांग्रेस कि बुद्दू बक्से के कैमरे ने किस चेहरे को या किस दल को कितनी बार दिखाया।
लोकसभा और राज्यसभा के अंतरंग चित्रों को दिखाने का दायित्व बुद्दू बक्से पर है। वो ही गोदी मीडिया के बांकी के चैनलों को ये दृश्य प्रसाद की तरह बांटा है, इसलिए आप बुद्दू बक्से के साथ ही गोदी मीडिया पर भी छह बार ही दृष्टिगोचर होंगे। इससे ज्यादा दिखने का शौक है तो केवल दो बार ही भारत जोड़ो यात्रा क्यों की, दो चार और कर लेते? 100 पर ही क्यों अटक गए? 400 नहीं तो कम से कम 200 ही पार कर लेते? लेकिन कांग्रेस ने ये सब नहीं किया। अब अरण्यरोदन से क्या लाभ? कैमरे कांग्रेस पर, कांग्रेस के नेताओं पर रहम नहीं खाने वाले। रहम तो सरकार भी नहीं खाने वाली। सरकार भी आने वाले दिनों में फिर से ‘ऑपरेशन लोटस’, ‘ऑपरेशन झाडू’ और ‘ऑपरेशन ईडी-सीबीआई’ शुरू करने वाली है, कांग्रेसी और आईएनडीआईए के घटक दल यदि बच सकते हैं तो बचकर दिखाएं, अन्यथा उनके लिए विभिन्न जेलों में जगह आरक्षित है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश को मैं जाती तौर पर बहुत पसंद करता हूं, क्योंकि वे दूसरे दलों के चीखने वाले नेताओं से अलग नजर आते हैं। रमेश जी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए दावा किया कि जब राष्ट्रपति मुर्मू अभिभाषण दे रही थीं तो उस वक्त पीएम मोदी को अधिक और राहुल गांधी को कम बार दिखाया गया। जयराम रमेश ने पोस्ट में लिखा- 51 मिनट के राष्ट्रपति के संबोधन में किसको कितनी बार दिखाया गया? नेता सदन नरेन्द्र मोदी-73 बार, प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी-6 बार, सरकार-108 बार, विपक्ष-18 बार संसद टीवी सदन की कार्यवाही दिखाने के लिए कैमराजीवी की आत्ममुग्धता के लिए नहीं। मैं हैरान हूं कि रमेश भाई राष्ट्रपति का अभिभाषण सुन रहे थे या ये गिन रहे थे कि कैमरा कितनी बार, किसके चेहरे पर ठहरा? वैसे ये काम भी कठिन है। अब वे इसके खिलाफ अदालत तो जा नहीं सकते, इसलिए मेरा मशविरा है कि यदि कांग्रेस के पास चुनाव बाद कुछ पैसे बचे हों तो वो अपने लिए कुछ कैमरे खरीद ले या कोई न्यूज चैनल शुरू कर दे। क्योंकि सरकार और सरकारी चैनलों से तो कोई उम्मीद की नहीं जा सकती।
कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश से बेहतर काम तो राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने किया। उन्होंने राष्ट्रपति जी का अभिभाषण दत्तचित्त होकर सुना और आरोप लगाया कि राष्ट्रपति के ‘मोदी सरकार लिखित’ अभिभाषण को सुनकर ऐसा लगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव के जनादेश को नकारने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह दावा भी किया कि प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति से ‘झूठ बुलवाकर’ अपनी वाहवाही करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि देश की जनता उन्हें नकार चुकी है। इस मामले में मैं खरगे जी से इत्तफाक रखता हूं, क्योंकि मैंने भी उनकी तरह राष्ट्रपति जी का भाषण पूरे ध्यान से सुना। एक बार भी, एक पल के लिए भी टीवी के सामने से नहीं उठा। राष्ट्रपति जी ने हर बार ‘मेरी सरकार’ कहा। ‘हमारी सरकार’ नहीं। अब ये टीडीपी और जेडीयू वाले जाने कि इस सरकार में वे शामिल हैं या नहीं? क्योंकि ये ‘मेरी सरकार’ है ‘हमारी सरकार’ नहीं। अब जो सरकार हमारी है ही नहीं उससे किसी को कोई उम्मीद करना ही क्यों चाहिए। पहले देश में हमारी सरकार बनिए, तब कोई बात कीजिये।