दम घुटती दिल्ली को कौन बचाएगा?

– राकेश अचल


आज-कल मैं लोकतंत्र से ज्यादा दिल्ली को लेकर परेशान हूं, क्योंकि दिन-ब-दिन दिल्ली का दम घुटते देख रहा हूं। दिल्ली कभी खांसती है, कभी खखारती है, कभी बलगम थूकती है, कभी हांफती है। ये दिल्ली देश की राजधानी है, इसकी ऐसी दशा कम से कम मुझसे तो देखी नहीं जाती। ऐसी ही हालत कोविड काल में आम आदमी की हुई थी। आम आदमी को तो टीकाकरण ने बचा लिया था किन्तु दिल्ली को कौन और कैसे बचाएगा?
वर्षों पहले जब मैं चीन गया था, तब वहां ऐसी ही दशा मैंने बीजिंग की देखी थी। वहां रात को आसमान से अम्ल की वर्षा होती थी। सडक किनारे खडी कारों को सुबह पहचानना कठिन होता था, क्योंकि कारों पर धूल की गहरी परत के साथ पानी की बूंदों की ऐसी वर्षा होती थी कि कारों पर कोलाज बन जाता था। मंै तीन दिन बीजिंग में था, लेकिन मैंने वहां एक दिन भी ढंग से सूरज को मुस्कराते नहीं देखा। सूरज बीजिंग में हमेशा धुंध के नीचे ही दबा सिसकता दिखाई देता था। यहां तब भी लोग मास्क लगते थे, जब दुनिया में कोविड नहीं था। उस समय मुझे अपनी दिल्ली की बहुत याद आती थी, क्योंकि दिल्ली भी बीजिंग होती दिखाई देने लगी थी। दिल्ली केवल आम आदमी पार्टी की दिल्ली नहीं है। दिल्ली भाजपा और कांग्रेस की भी दिल्ली नहीं है। दिल्ली मुगलों की भी दिल्ली नहीं है, दिल्ली तोमरों की भी दिल्ली नहीं है। दिल्ली पूरे देश की दिल्ली है। यहां देश के सभी प्रांतों के लोग रहते हैं। दिल्ली में देश की आत्मा धडकती है। कोई एक करोड 70 लाख लोग दिल्ली की जान हैं और आज इन सभी की जान सांसत में है। आज-कल तो दिल्ली हांफने के साथ कांपने भी लगी है। दिल्ली में कभी भी भूकंप के झटके महसूस किए जाने लगते हैं।
दिल्ली की गंभीर हालत को देखते हुए सर्दी शुरू होने से पहले ही दिल्ली में प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुंच गया। गुरुवार शाम पांच बजे दिल्ली में एक्यूआई 402 दर्ज किया गया। पूर्वानुमान के अनुसार प्रदूषण को बेहद खराब स्तर पर बने रहना था। पांच बजे स्थितियां बिगडती देखकर कमिशन फॉर एयर क्वॉलिटी एण्ड मैनेजमेंट (सीएक्यूएम) ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई और दिल्ली एनसीआर में जीआरएपी के स्टेज-3 को लागू करने का फैसला ले लिया गया। इसके तहत अब दिल्ली-एनसीआर में निजी निर्माण पर रोक होगी। दिवाली से पहले लोग रंगाई-पुताई, ड्रिलिंग का काम भी नहीं करवा सकेंगे। जीआरएपी प्रदूषण से निबटने का ऐसा सिस्टम है, जिसमें प्रदूषण का लेवल बढने के साथ बंदिशें अपने आप लागू हो जाती हैं। दिल्ली में जब भी बीमारी बढती है, सबसे पहले बच्चों का स्कूल जाना बंद हो जाता है।
करीब 1483 वर्ग किलो मीटर में फैली दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बडा महानगर है। दिल्ली के एक तरफ दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाडियां हैं तो पूर्व में पहले से बीमार यमुना नदी बहती है। दिल्ली पहले भी गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पडने वाला मुख्य पडाव था और आज भी है। दिल्ली के बिना देश बनता ही नहीं है। दिल्ली के बिना मुगल भी अधूरे थे, अंग्रेज भी और आज भाजपा और कांग्रेस के लिए दिल्ली जरूरी है। लेकिन एक बीमार दिल्ली का उपचार करने की फुर्सत किसी के पास नहीं है। दिल्ली सरकार के दो मंत्री जेल में है। दिल्ली के मुख्यमंत्री को जेल भेजने की तैयारी है, लेकिन इसका दिल्ली की गंभीर रूप से खराब हो चुकी आवो-हवा से कोई लेना देना नहीं है। आम आदमी पार्टी की सरकार को जेल में डालने से यदि दिल्ली का स्वास्थ्य ठीक हो जाता तो इसे भी बर्दास्त कर लिया जाता, किन्तु ऐसा कुछ हो नहीं रहा।
दिल्ली की बीमारी कोई नई नहीं है। दिल्ली सर्दियां शुरू होने से पहले हर साल बीमार होती है। दिल्ली का दम घुटने का एक कारण पराली का धुआं है तो दूसरा कारण सडकों पर आई वाहनों की बाढ भी है। दिल्ली कब जहरीली गैसों के चैंबर में तब्दील हो जाए, कोई नहीं जानता। दिल्ली में कब दिन में अंधेरा छा जाए ये भी किसी को पता नहीं है। यहां दिन में तारे नजर आना आम बात है। गौतमबुद्ध नगर, गुरुग्राम, गाजियाबाद, झझर, फरीदाबाद सबके सब प्रदूषित हो गए हैं। दिल्ली और दिल्ली के आस-पास मेरे तमाम प्रियजन और परिजन रहते हैं। मुझे उन सबकी चिंता लगी रहती है। सरकार को भी सभी की चिंता होती है लेकिन सरकार सब कुछ अकेले नहीं कर सकती। जनता को भी कुछ-कुछ करना होता है, जो जनता करती नहीं। हमारी जनता सनातनी और धार्मिक है। वो करवा चौथ हो या दशहरा बिना पटाखे चलाए रह नहीं सकती, भले ही फेंफडे धुएं से काले पड जाएं, सिकुड जाएं। प्रतिबंधों का जनता पर कोई असर नहीं होता।
आज की दिल्ली कल की दिल्ली से अलग है। मुगलों की दिल्ली में भी इतना दम नहीं घुटता था जितना आज घुट रहा है। अंग्रेजों की दिल्ली में भी दम तो घुटता था लेकिन आज की तरह नहीं। आज की दिल्ली में तो सब कुछ अपना है। आजादी है, संविधान है, सरकार है, लेकिन दम फिर भी घुट रहा है। महाभारत काल में इन्द्रप्रस्थ कही जाने वाली दिल्ली आज-कल प्रदूषणप्रस्थ बन चुकी है। मुझे कभी-कभी लगता है कि दिल्ली का लाल किला नेताओं की तरह बोल नहीं पाता, अन्यथा प्रदूषण से घबडाकर वो भी अन्यंत्र जाने की मांग कर बैठता।
एक जमाने में हमारा ग्वालियर भी एनसीआर का हिस्सा बनाया जाने वाला था, लेकिन अच्छा हुआ कि हमारे निकम्मे नेताओं की वजह से ऐसा नहीं हुआ, अन्यथा आज हमारे शहर का भी दम दिल्ली की तरह ही घुट रहा होता। दिल्ली की बीमारी कोई नई नहीं है। हमारे पत्रकार साथी बताते हैं कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) आम तौर पर जनवरी से सितंबर के बीच 101-200 के स्तर पर रहती है, यह तीन महीनों में बहुत खराब (301-400), गंभीर (401-500) या यहां तक कि खतरनाक (500+) के स्तर में भी हो जाती है। अक्टूबर से दिसंबर के बीच तो दिल्ली मरते-मरते बचती है। दिल्ली को अस्थमा है, दिल्ली को नजला है, दिल्ली को ब्रोन्काइट्स है। दिल्ली के फेंफडे दागदार है। दिल्ली का दिल फिर भी जैसे-तैसे धडक रहा है। कल्पना कीजिये यदि दिल्ली को यूक्रेन और फिलिस्तीन की तरह यदि कभी बारूद का समान करना पडे तो क्या हाल होगा दिल्ली का। सो प्लीज दिल्ली को बचाइए, सरकारें तो आती-जातीं रहेंगी, किन्तु अगर दिल्ली ही न रही तो फिर क्या होगा? दूसरे शहरों का क्या होगा?