हरियाणा में हिंसा : आग से आग लगाते चलो का मतलब

– राकेश अचल


हरियाणा न मणिपुर है, न बंगाल है, न गुजरात है। हरियाणा में न चुनाव हैं लेकिन हरियाणा नफरत की आग में झुलस गया है। वहां दो समुदायों के बीच की हिंसा में दो लोग मारे जा चुके हैं और बहुत सी सार्वजनिक संपत्ति का नुक्सान हुआ है। सबसे बडा नुक्सान हुआ है सामाजिक सौहार्द का, जो हरियाणा की पहचान है। हरियाणा में भी मणिपुर की तरह इंटरनेट बंद है। इस सबके लिए कौन जिम्मेदार है, अगर ये लिख दिया जाए तो आपको लगेगा कि मैं काना हो गया हूं और मुझे सिर्फ भाजपा दिखाई देती है।
हरियाणा में भाजपा के मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा की डबल इंजन की सरकार है। खट्टर साहब तमाम खटपट के बावजूद बीते नौ साल से हरियाणा के मुख्यमंत्री हैं। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विश्वास पात्र न होते तो शायद ही इस पद पर होते। हरियाणा का इतिहास सांप्रदायिकता का कम सौहार्द का ज्यादा रहा है। हरियाणा पुरातन और आधुनिकता का अनूठा संगम है, लेकिन इस बार हरियाणा भी सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस गया, मोटे तौर पर इस हिंसा के लिए राज्य सरकार ही जिम्मेदार है, लेकिन अभी चूंकि पूरे घटनाक्रम की जांच पडताल नहीं हुई है, इसलिए इसे राज्य की बदनसीबी ही मान लीजिए। हरियाणा मेवात के नूंह इलाके में सोमवार को हिंसा भडकी। मेवात में भगवा यात्रा के दौरान दो गुटों में टकराव हुआ, अचानक से हुई पत्थरबाजी में कई लोग घायल हो गए। मौके पर पुलिस प्रशासन की मौजूदगी के बावजूद भी भारी पथराव हुआ। पथराव से शुरू हुआ बवाल इतना बढ़ गया कि कई गाडियों में भी आग लगा दी गई। बवाल के बाद नूंह और मेवात क्षेत्र में इंटरनेट सेवाएं दो अगस्त तक के लिए निलंबित कर दी गई हैं। नूंह के बाद शाम तक हिंसा की आग सोहना तक फैल गई। मेवात हिंसा में दो होम गाड्र्स की मौत हो गई है, जबकि 10 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हुए। हरियाणा पुलिस ने हिंसा में आम नागरिकों के घायल होने वालों की कोई संख्या नहीं बताई, मुमकिन है कि आम जनता का कोई आदमी घायल न हुआ हो।
हरियाणा के पांच हजार साल के इतिहास में डनगों का कोई अध्याय नहीं है। हरियाणा आंदोलनों की जमीन जरूर है, लेकिन सांप्रदायिक हिंसा के लिए यहां कभी कोई नहीं जगह नहीं रही। 2017 में जरूर हत्या और बलात्कार जैसे संगीन अपराधों के लिए दोषी गुरमीत रामरहीम सिंह को यौन उत्पीडन का दोषी ठहराए जाने के बाद हरियाणा के पंचकुला में हिंसा शुरू हुई थी, जो बाद में उत्तरी भारत के अन्य राज्यों में फैलने लगी, जिसमें हरियाणा, पंजाब और राजधानी नई दिल्ली शामिल है। इस उपद्रव के कारण कम से कम 31 लोग मारे गए और 300 से अधिक लोग घायल हुए। प्रदेश सरकार निष्क्रिय साबित हुुई। लेकिन हाल की हिंसा एकदम चौंकाने वाली है, क्योंकि राज्य को भगवा रंग में रंगने की सरकारी कोशिशों की वजह से ये हिंसा जन्मी। दुनिया जानती है कि हरियाणा में पहले कभी भगवा यात्राएं नहीं निकलती थीं। ये धार्मिक उन्माद भाजपा सरकार बनने के बाद हुआ। केवल हरियाणा में ही नहीं बल्कि देश के जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, वहां यही सब हो रहा है। भाजपा की डबल इंजन सरकारें विकास कार्यों से ज्यादा भगवा यात्राओं पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा करने में भरोसा करती हैं और इसका असर सामाजिक सदभाव पर पडता ही है, और पड रहा है। राज्य सरकार भले ही ‘हरियाणा एक और हरियाणवी एक’ का नारा देती हो, लेकिन ये नारा भी केन्द्र सरकार के उस नारे की तरह है जो ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात करता है, लेकिन धरातल पर इसके विपरीत होता है।
कांग्रेस हिंसा को लेकर राज्य सरकार पर हमला बोल चुकी है। ये कांग्रेस का राजनीतिक दायित्व है। कांग्रेस ने कहा है कि मेवात के नूंह, मानेसर व गुडगांव से आ रही हिंसा, आगजनी, तोडफोड और दंगे की खबरें अत्यंत चिंता जनक भी हैं और दिल दहलाने वाली भी। ये सीधे-सीधे कानून व्यवस्था की नाकामी है, खट्टर सरकार की नाकामी का नतीजा है। मेरी या आपकी दिलचस्पी शायद हिंसा को लेकर राजनीति में न हो लेकिन ये हकीकत है कि राज्य में हिंसा सत्ता पोषित दिखाई दे रही है, परिस्थितजन्य साक्ष्य हैं कि हिंसा राज्य सत्ता कि संरक्षण की वजह से भडकी। पुलिस को आज कि इंसान कि मानवाधिकार में शामिल इंटरनेट को बंद करना पडा। पुलिस इसके अलावा और कर भी क्या सकती है?
हरियाणा की हिंसा को लेकर कांग्रेस कि इस आरोप में भी दम दिखाई देता है कि भाजपा-जजपा सरकार ने प्रदेश को पहले जातीय दंगों की आग में धकेला और अब धार्मिक दंगों की ज्वाला में हरियाणा का अमन चैन झुलसाया जा रहा है। कांग्रेस कहती है कि आजादी के 75 साल में पहली बार हरियाणा की धार्मिक दंगों की भेंट चढ़ाने की साजिश हो रही है। ये शांतिप्रिय हरियाणा के इतिहास में काला दिन है। अच्छी बात ये है कि कांग्रेस ने इस हिंसा के बाद मुख्यमंत्री खट्टर जी का इस्तीफा नहीं मांगा, बल्कि मांग की है कि दंगाई चाहे किसी भी धर्म या जाति से हों, उनके खिलाफ कडी से कडी कार्रवाई होनी चाहिए। खुद मुख्यमंत्री खट्टर को आगे बढ़ कानून व्यवस्था स्थापित करने व शांति बनाने का कार्य करना चाहिए। कांग्रेस का ये कहना भी प्रासंगिक है कि खट्टर को जानना चाहिए कि ये वक्त हाथ धर कर बैठने का नहीं है। वक्त की मांग है कि मुख्यमंत्री आगे आएं, सभी पक्षों से वार्तालाप करें, शांति बनाएं, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करें तथा स्तिथि को समझ राजधर्म निभाएं।
दरअसल कांग्रेस भूल जाती है कि भाजपा की सरकारों का राजधर्म अलग किस्म का होता है। 2002 के गुजरात दंगों के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने भी आज के प्रधानमंत्री और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को राजधर्म की याद दिलाई थी, लेकिन क्या हुआ पूरी दुनिया जानती है। आपात स्थितियों में भाजपा का राजधर्म मौन धारण करने का होता है। मणिपुर के मामले में भी ये साबित हो चुका है और हरियाणा कि मामले में भी। हमारे प्रधानमंत्री हरियाणा हो या मणिपुर सबको एक नजर से देखते हैं और मौन रहते हैं। उनकी तीसरी आंख से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुई कथित अराजकता तो दिखाई देती है, लेकिन बांकी राज्यों की नहीं।
हरियाणा में हिंसा के लिए कौन जिम्मेदार है इसका अनुमान आप इस बात से सहज लगा सकते हैं कि मेवात में शिव मन्दिर के सामने से बृजमण्डल यात्रा निकाली जा रही थी, तभी यात्रा पर पथराव हो गया। इस बृजमण्डल यात्रा में बजरंग दल के कई कार्यकर्ता पहुंचे थे। मोनू मानेसर ने पहले ही वीडियो शेयर कर यात्रा में अधिक से अधिक लोगों से पहुंचने की अपील की थी। मोनू मानेसर की अपील से नाराज नूह के स्थानीय लोगों ने जमकर आज बवाल काटा और तभी यह पथराव हुआ। जानबूझकर तनाव पैदा करने वाले मोनू मानेसर बहुत भले आदमी हैं। वे नासिर-जुनैद हत्याकाण्ड में आरोपी हैं। आपको याद होगा कि हरियाणा के भिवानी में लोहारू के बारवास गांव के पास एक जली हुई बोलेरो में 16 फरवरी को दो कंकाल मिले थे। मृतकों की पहचान नासिर (25) और जुनैद (35) के तौर पर हुई थी। इन दोनों की हत्या के बाद ही मोनू मानेसर चर्चा में आया था। हाल ही में उसने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर मेवात इलाके में होने वाली एक महारैली में शामिल होने का सभी को न्योता दिया था। इतना ही नहीं मोनू मानेसर ने कहा था कि मैं खुद भी इस रैली में शामिल होऊंगा। मोनू इन दिनों फरार चल रहा है। मोनू मानेसर के आने की संभावना रही। मगर, उसे पुलिस ने सुबह ही उसे मानेसर में रोक दिया, गिरफ्तार नहीं किया। यदि पुलिस मोनू को समय रहते पकड लेती तो मुमकिन है कि मोनू न कोई वीडियो जारी कर पाता और न हरियाणा के दामन पर सांप्रदायिक हिंसा का दाग लगता।
हरियाणा की हिंसा ने संकेत दे दिया है कि आने वाले दिनों में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होना हैं, वहां भी सब कुछ ठीक रहने वाला नहीं है। इन पांचों राज्यों में भाजपा की जमीन खिसकती दिखाई दे रही है। इसलिए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री संसद की अनदेखी कर इन राज्यों में धूनी रमा कर बैठे हैं। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वो हमारे मित्र अरुण जैमिनी और सतीश त्यागी के हरियाणा को नफरत की आग में झुलसने से बचाए।