देशद्रोही कौन, राहुल या गौतम अदाणी?

– राकेश अचल


आज की सियासत में राजवंश विपक्ष है, लेकिन विपक्ष इतना बिखरा हुआ है कि चाह कर भी सिंघासन को हिला नहीं पा रहा है। देश की संसद तय नहीं कर पा रही है कि आज के दौर में देशद्रोही कौन है? संसद में लंदन के केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भाषण देने वाले राहुल गांधी सत्तापक्ष की नजर में देशद्रोही हैं और विपक्ष की नजर में उद्योगपति गौतम अदाणी। दोनों पक्ष संसद में बहस के बजाय हंगामा कर रहे हैं, क्योंकि ऐसा करने में सांसदों की जेब का नहीं, बल्कि जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा खर्च होता है।
देशद्रोह दुनिया का सबसे बड़ा अपराध है। सवाल ये है कि देश के बाहर अपने देश के दौरे हालात पर बात करना देशद्रोह है या देश को दोनों हाथों से लूटना? देश के बाहर दौरे हालात पर बात करने वाले राहुल गांधी पहले भारतीय नेता नहीं हैं। हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री जब भी विदेश के दौरे पर जाते हैं, इसी तरह के भाषण देते हैं। तब उन्हें कभी नहीं लगता कि वे कोई देशद्रोही काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी ने अपने हर विदेश दौरे में देश की कथित बदहाली के लिए देश के बाहर जाकर कांग्रेस को कोसा। खुद भारत में जन्म लेने पर शर्मिंदगी जताई। लेकिन किसी ने नहीं कहा कि वे देशद्रोही काम कर रहे हैं, लेकिन जब कोई दूसरा ऐसा करता है तो उसे देशद्रोही कहना और साबित करना कितना अच्छा लगता है।
देश के बाहर देश की बात करना कभी देशद्रोह नहीं रहा। आजादी से पहले भी और आजादी के बाद भी। दुनिया को पता होना चाहिए कि कहां, क्या चल रहा है? यदि कोई नेता देश के बाहर जाकर झूठ बोले तो इससे देश की मान-प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती। क्योंकि आज दुनिया वैश्विक धागे में बंधी है, जहां सब कुछ साफ-साफ नजर आता है। चीन जैसे साम्यवादी और तानाशाही के पक्षधर देश भी थ्येन मान चौक के नर संहार को नहीं छिपा पाते। फिर हम तो भारत हैं, जो छिपाने में यकीन ही नहीं करते।
देश की संसद को राहुल गांधी के केम्ब्रिज में दिए गए भाषण को देशद्रोही साबित करने के बजाय दूसरे ज्वलंत मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, पर नहीं दिया जा रहा। राहुल सचमुच कुछ न होते हुए भी सत्तारूढ़ दल के लिए आंख की किरकिरी हैं। आंख की किरकिरी का इलाज आंखें फोड़ लेना नहीं है। यदि किरकिरी है तो उसे हिकमत अमली से आंख के बाहर निकालिये, सिर्फ चिल्लाने से क्या होगा? आज राहुल के मुद्दे पर देश के 16 विपक्षी दल एक हैं और जो एक नहीं हैं वे भी या तो सत्ता के दबाब में मौन हैं या उनके अपने निहीतार्थ हैं, जिनसे बाहर आने का साहस करना उनके लिए आसान नहीं है।
हमारा देश लोकतांत्रिक देश है। इसमें विसंगतियां ही विसंगतियां हैं, लेकिन यही विसंगतियां लोकतंत्र की खूबियां बन गई हैं। मिसाल के तौर पर उड़ीसा को ही ले लीजिए। उड़ीसा का बीजू जनता दल कभी किसी तीन-तरह में नहीं पड़ता, दो दशक से ज्यादा हो गए बीजद को उड़ीसा की सत्ता में रहते हुए। राहुल और मोदी से उसे कोई लेना-देना नहीं है। बस उसकी सरकार सुरक्षित रहे। मोदी के धुर विरोधी तेलंगाना के केसीआर साहब चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सत्ताच्युत हों, किन्तु उन्हें इसके लिए कांग्रेस का साथ नहीं सुहाता।
अपने नाम के साथ कांग्रेस शब्द बाबस्ता करने वाली तृणमूल कांग्रेस हो या वाईएसआर कांग्रेस, मोदी जी के खिलाफ है। लेकिन राहुल के साथ खड़े होने में उसे असुविधा होती है। तेलगू देशम हो या अन्ना द्रमुक सब चाहते हैं कि मोदी जी दिल्ली की सल्तनत से बाहर हो जाएं, लेकिन इसके लिए वे कांग्रेस के साथ खड़े नहीं होना चाहते। ऐसे में राहुल गांधी या गौतम अडानी को देशद्रोही साबित करने के लिए संसद में वाक्य युद्ध लड़े जाने का क्या मतलब है? देश में रहने वाला और वो भी जनता चुना हुआ व्यक्ति देशद्रोही कैसे हो सकता है भाई?
गहराई में जाकर देखें तो आप पाएंगे कि ये देश के मान-सम्मान की लड़ाई नहीं है बल्कि ये हठधर्मिता का मुद्दा है। संसद में देश के असली मुद्दों पर बहस न हो ये सत्ता पक्ष हमेशा से चाहता है। भाजपा ये काम पहली बार नहीं कर रही, भाजपा से पहले जो भी सत्ता में रहा उसने यही किया। फर्क सिर्फ इतना है कि भाजपा इस तरीके का इस्तेमाल निर्दयता से कर रही है। राहुल गांधी से माफी की मांग से महत्वपूर्ण मांग गौतम अडाणी सर के मामले में जेपीसी के गठन की है, लेकिन सबके टेसू जहां अड़े थे, वहीं अड़े हैं। सरकार विपक्ष की मांग नहीं मानेगी और विपक्ष सरकार की मांग नहीं मानने वाला।
अब तो लगता है कि ‘न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी’ न राहुल गांधी माफी मांगेंगे और न भाजपा उन्हें देशद्रोह के आरोप से मुक्त करेगी। न गौतम अडाणी मामले की जांच के लिए जेपीसी बनेगी और न विपक्ष सरकार को काम करने देगा। इस पूरे मामले में जनता असहाय है। सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है। भाजपा यानि सरकारी पार्टी के लिए बिखरा विपक्ष सबसे ज्यादा सुविधाजनक स्थितियां पैदा करता है, कर रहा है। बीते साढ़े आठ साल में विपक्ष को एक करने वाला कोई धुरा मिला ही नहीं है। भारत भाग्य विधाताओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि भुगतने वाले वे नहीं, देश की जनता है।
लोकतंत्र में फैसला संख्या बल के आधार पर होता है। जब तक संसद में संख्या संतुलित नहीं होती, यही सब चलेगा जो आज चल रहा है। संसद देश के मुद्दों पर नहीं देशद्रोह पर बहस करेगी। संसद के बाहर भी ये सब साफ दिखाई दे रहा है। सदैव चुनावी मुद्रा में रहने वाले प्रधानमंत्री जी ने सदन के बाहर अपनी चुनावी रैलियों में साफ संकेत दे दिए हैं कि उनके लिए सबसे बड़ा मुद्दा राहुल गांधी का देशद्रोह है। वैसे भी अब न राम मन्दिर मुद्दा है और न धारा 370। ऐसे में राहुल ही हैं जो आने वाले आम चुनाव में भाजपा का बड़ा पार करा सकते हैं। राहुल को यदि राजनीतिक परिदृश्य से बाहर कर दिया जाए तो फिर भाजपा के पास भुनाने के लिए बचता ही क्या है?
कुल मिलाकर ये तय है कि इस देश की संसद में न राहुल गांधी माफी मांगेगे और न गौतम अदाणी के घोटाले की जांच के लिए जेपीसी बनाई जाएगी। संसद का वक्त यूं ही बर्बाद होता रहेगा। ‘सूत न कपास, जुलाहों में लठ्ठम-लठ्ठ’ होता रहेगा। चुनाव आते ही देश अपने सरे दु:ख-दर्द भूलकर नारों, जुमलों में उलझ जाएगा। सब भूल जाएंगे राहुल का देशद्रोह और गौतम का घोटाला।