सूर्य अटल है, चांद अटल हैं, अटल देश का प्यार…

सुशासन दिवस पर काव्य गोष्ठी आयोजित

भिण्ड, 26 दिसम्बर। सुशासन दिवस के अवसर पर शहर के झांसी मोहल्ला में स्थित कवि प्रदीप वाजपेयी युवराज के निवास पर काव्य मंजूषा साहित्य बल्लरी के तत्वावधान में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता दशरथ सिंह कुशवाह ने एवं संचालन अंजुम मनोहर ने किया। कार्यक्रम का आयोजन सुरेन्द्र कुमार वाजपेयी एवं श्रीमती गौतमी वाजपेयी ने किया। इस अवसर पर भारतीय साहित्य सदन के संयोजक प्रमोद शुक्ल मंगल विशेष रूप से मौजूद रहे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शिवबहादुर सिंह शिव एवं विशिष्ट अतिथि महावीर तन्हा ने सर्वप्रथम मां सरस्वती एवं भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन कर शुभारंभ किया। तदुपरांत प्रदीप वाजपेयी युवराज ने सरस्वती वंदना का पाठ करते हुए कहा-सूर्य अटल है, चांद अटल हैं, अटल है गंगाधर, अटल हिमालय से अटल अटल देश का प्यार। ऋतुराज बाजपेई ने गीत मैं मधुमास का कैसे लिखूं, दर्द की आंखों का पानी लिख रहा हूं, तुम भले महके हुए संदर्भ हो, मैं बहुत प्यासी कहानी लिख रहा हूं, रचना पढ़ी। शायर महावीर तन्हा ने सियासत पर यूं कहा- सल्तनत हाथ से निकले हुए अर्सा गुजरा, अब तो ये राजमहल जाने का अंदेशा है।
रामदत्त जोशी विकल ने कहा- जब सूना-सूना होता है, अपनों के लिए मन रोता है, जब सुधि के कमल खिल जाते हैं, मन मानसरोवर होता है। संचालन कर रहे अंजुम मनोहर ने अटल सत्य है कि मौत का जिसने वरण किया है, मानवता का सही अर्थों में अनुशरण किया है, कविता पढ़ी। शिवबहादुर सिंह शिव ने गीत के माध्यम से कहा- वायु बोली हर हराकर तरु गिराना जानती हूं, तेग बोली झपट में लाशें बिछाना जानती हूं, किंतु पैरों तले माटी सकुच बोली तभी यह, शुष्क छोटे बीज को मैं तरु बनाना जानती हूं। डॉ. शशिबाला राजपूत ने- अटल अटल की अटल कहानी, दुनिया सदा कहेगी, कर्म भूमि में अटल रहे जो मंजिल उसे मिलेगी। मनोज स्वर्ण ने गीत के माध्यम से प्रकृति का चित्रण कुछ इस प्रकार किया- ये वृद्ध वृक्ष हैं जन्नत हैं इसके पांव में, कितना मिलता है सुकून आके इनकी छांव में..। अध्यक्षता कर रहे दशरथ सिंह कुशवाह ने देश की महानता पर कहा-जागो ये देश महान है, भारत को अभिमान हैं, जो खण्डित करना चाहे इसको एक चुनौती है मेरी।