मोह कर्मों का राजा है : मुनि विश्रांत सागर

भिण्ड, 29 सितम्बर। मोह कर्मों का राजा है, कर्मों मेें सबसे बड़ा बलवान मोह है। मोह ही मोक्ष में सबसे बड़ा बाधक, शत्रु है, संयम को नष्ट कर देता है, सम्यकत्व को भी नष्ट कर देता है क्योंकि मोह के दो भेद हैं, दर्शन मोह और चारित्र मोह। दर्शन मोह समीचीन आस्था को नष्ट करके सम्यकत्व को नहीं होने देता है तथा चारित्र मोह सम्यक चारित्र को नहीं होने देता है, जब तक मोह है, तब तक मोक्ष नहीं होगा। साधु कितनी भी साधना कर लेवे, कठोर तपस्या करे और मोही बना रहे, मोह को नष्ट न करें। घर परिवार के प्रति मोह, शरीर के प्रति मोह बना रहे तो संसार से पार नहीं हो सकता है। यह बात मुनि श्री विश्रांत सागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।


मुनि श्री विश्रांत सागर महाराज ने कहा कि इन्द्रियों में रसना इन्द्रिय को वश में करना बहुत कठिन है, गुप्तियों में वचन गुप्ति, काय गुप्ति वश में करना आसान है, परंतु मन गुप्ति वश में करना बहुत दुर्लभ है तथा चार व्रतों का पालन करना परंतु ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना बहुत कठिन है। उसी तरह आठ कर्मों में सात कर्मों को नष्ट करना बहुत आसान है, परंतु मोह कर्म को नष्ट करना बहुत कठिन है। मोह कर्म को नष्ट कर दिया तो सभी कर्मों को नष्ट आसानी से किया जा सकता है। जैसे राजा को नष्ट कर दिया तो सैनिक तो अपने आप नष्ट हो जाते हैं। इसलिए मोह कर्म को नष्ट करो, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। धर्मसभा में ग्वालियर, गुना, कोटा के शहर के सुधि श्रोता के अलावा भिण्ड के अशोक महामाया, महेन्द्र जैन, लक्ष्मी नागरायण जैन, अगर चन्द्र जैन, सुधीर जैन, आशीष जैन, टिंकल जैन, टीटू जैन, निक्कू जैन, श्रीमती नीतू, श्रीमती शशि दिल्ली, रेखा आदि श्रृद्धालु उपस्थित रहे।