भिण्ड, 01 जनवरी। श्री 1008 पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर मेहगांव में विराजमान गणाचार्य विराग सागर महाराज एवं म.प्र. शासन के राजकीय अतिथि मेडिटेशन गुरू विहसंत सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में नववर्ष के अवसर पर श्री 1008 शांतिनाथ महामंडल विधान का आयोजन प्रतिष्ठाचार्य संदीप शास्त्री के निर्देशन में विधि विधान के साथ सम्पन्न किया गया। इस अवसर पर गणाचार्य विराग सागर महाराज ने कहा कि जैन धर्म श्रमण परंपरा से निकला है इसकेे प्रवर्तक 24 तीर्थंकर है जिनमें प्रथम भगवान ऋषभदेेव आदिनाथ तथा अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी है जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता सिद्ध करने वाले अनेक उल्लेख साहित्य और विशेेषकर पौराणिक साहित्यों में प्रचुर मात्रा मेें श्वेताम्बर और दिगम्बर जैन पंथ के दो संप्रदाय है तथा इनके ग्रंथ समयसार व तत्वार्थसूत्र है जैनों के प्रार्थना स्थल जिनालय व मंदिर कहलाते हंै। आचार्य श्री कहा कि अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धांत है कि इसे बढ़ी सख्ती से पालन किया जाता है खानपान आचार नियम में विशेष रूप से देखा जा सकता है जैन दर्शन में कण कण स्वतंत्र है इस सृष्टि या किसी जीव का कोई कर्ताधर्ता नही है सभी जीव अपने कर्मों का फल भोगते है इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को भगवान की आराधना जप तप ध्यान विधान पूजन करते रहना चाहिए जिससे कर्मों की निर्जरा होती है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि मेहगांव नगरी में भले ही जैन समाज कम हो लेकिन श्रद्धा अपार है यहां समाज ने जिस प्रकार से द्रण संकल्प लेेकर 19 जनवरी से 24 जनवरी तक भव्य पंचकल्याणक कराने के लिये श्रीफल चड़ाकर अनुमति ली है शीघ्र ही भिण्ड नगर में 13 जनवरी से 17 जनवरी के पश्चात मेहगांव के भी भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन सम्पन्न होगा।