भिण्ड, 28 जुलाई। श्रावण मास के पावन अवसर पर भारत तिब्बत सहयोग मंच युवा विभाग द्वारा कैलाश मुक्ति संकल्प अभियान संपूर्ण देशभर में चलाया जा रहा है। इस अभियान के अंतर्गत कैलाश मानसरोवर जैसे पवित्र धार्मिक धाम को चीन के धार्मिक प्रतिबंधों और दमनकारी नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए जनचेतना का राष्ट्रव्यापी आह्वान किया जा रहा है। यह जानकारी भारत तिब्बत सहयोग मंच युवा विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष अर्पित मुदगल ने बोरेश्वर धाम में आयोजित पत्रकारवार्ता में दी।
उन्होंने कहा कि शिव के धाम पर ड्रेगन की तानाशाही अब स्वीकार नहीं की जाएगी। अभियान की शुरुआत राष्ट्रीय संगठन महामंत्री पंकज गोयल द्वारा कैलाश मुक्ति श्रावण संकल्प पत्र का विमोचन कर गूगल डिजिटल हस्ताक्षर अभियान तथा ऑनलाइन डिजिटल श्रावण संकल्प सर्टिफिकेट नई दिल्ली कार्यलय से जारी कर प्रारंभ की गई। कैलाश मुक्ति अभियान की इस कडी में अटेर स्थित प्राचीन धाम बोरेश्वर महादेव में शिव महापुराण कथा के माध्यम से जनता में आध्यात्मिक जागरण और राष्ट्रीय चेतना का संदेश दिया जा रहा है। अभियान पूर्णत: अहिंसक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वरूप में संचालित है, जिसका उद्देश्य केवल कैलाश की मुक्ति नहीं, बल्कि तिब्बत की स्वतंत्रता और भारत की सुरक्षा को एक व्यापक विमर्श में लाना है।
भारत तिब्बत सहयोग मंच का यह स्पष्ट मत है कि कैलाश मानसरोवर कोई पर्यटक स्थल नहीं, बल्कि करोडों भारतीयों की आस्था और भक्ति का जीवंत केन्द्र है। वर्ष 1959 से चीन ने तिब्बत पर सैन्य कब्जा कर कैलाश मानसरोवर को एक राजनीतिक-नियंत्रित क्षेत्र बना दिया है। भारतीय श्रद्धालुओं को वहां जाने के लिए वीजा ही नहीं, बल्कि ‘तिब्बत ट्रेवल परमिट’ लेना पडता है। इस प्रक्रिया में अत्यधिक आर्थिक व्यय, धार्मिक प्रतिबंध, सीमित संख्या और डिजिटल सेंसरशिप जैसी कई बाधाएं हैं, जो सीधे-सीधे धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन हैं।
युवा मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष अर्पित मुदगल ने प्रेस से चर्चा में बताया कि शिव-पार्वती की पूजा, रुद्राभिषेक, मंत्रोच्चार, जल अर्पण जैसे धार्मिक कर्मकाण्डों पर चीन की ओर से आपत्ति जताई जाती है। यात्रियों को सीसीटीव्ही निगरानी में यात्रा करनी पडती है तथा कई बार मौसम या प्रशासनिक कारणों का हवाला देकर यात्रा को रोक भी दिया जाता है। यात्रा पर चीन की यह संप्रभुता भारतीय आस्था का अपमान है और इसका राष्ट्रीय प्रतिकार आवश्यक है। इस अभियान के अंतर्गत 16 जुलाई से 16 अगस्त तक विशेष श्रावण कार्ययोजना लागू की गई है, जिसमें प्रतिदिन कथा स्थल से डिजिटल अभियान ‘मैं कैलाश के साथ हूं’ जनसंपर्क अभियान, कांवड यात्राओं के साथ संकल्प अभियान, दीपयज्ञ, जूम बैठकें, पोस्टर विमर्श, सोशल मीडिया गतिविधियां और अंतत: 16 अगस्त को जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपकर राष्ट्रव्यापी जनजागरण का समापन प्रस्तावित है।
मुदगल ने इस अभियान को धर्मयुद्ध बताते हुए कहा कि भारत का युवा वर्ग अब केवल दर्शक नहीं, बल्कि धर्म और आस्था का सक्रिय सेनानी बनेगा। उन्होंने कहा कि यह संघर्ष चीन से युद्ध का नहीं, बल्कि हमारे ईश्वर के धाम पर लगाई गई बेडडयों को शांति, विवेक और संकल्प के माध्यम से तोडने का है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह अभियान किसी सरकार या दल के विरुद्ध नहीं है, बल्कि चीन की तानाशाही नीतियों के विरोध में भारत की धार्मिक चेतना की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है। मीडिया बंधुओं से आग्रह किया गया कि वे इस विषय को केवल अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति नहीं, बल्कि भारत के सांस्कृतिक सम्मान और करोडों श्रद्धालुओं की भक्ति से जोडकर प्रस्तुत करें।
इस अभियान को लेकर कथावाचक प्रशांत तिवारी ने कहा कि शिव पुराण में कैलाश को भगवान शिव का आध्यात्मिक निवास बताया गया है, यह किसी राष्ट्र की भौगोलिक सीमा का हिस्सा नहीं, संपूर्ण सनातन संस्कृति की सांस्कृतिक आत्मा है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जब धर्म और संस्कृति पर बंधन लगते हैं तो राष्ट्र भी दुर्बल होता है।