-जैन मंदिर परिसर में धर्मसभा के दौरान संतश्री ने किए प्रवचन
भिण्ड, 08 जनवरी। किला गेट आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर बजरिया में विराजमान मेडिटेशन गुरु उपाध्याय विहसन्त सागर महाराज ने सुबह धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि ध्यान और चिंतन का उचित स्थान मरघट है। मरघट पर योगी ध्यान और चिंतन करता है लेकिन स्वाध्याय के लिए यह स्थान अशुद्ध है, लेकिन ध्यान के लिए शुद्ध है।
आचार्य कहते हैं की ध्यान और चिंतन के लिए मरघट के स्थान को क्यों चुना क्योंकि वह साक्षात बैराग्य के भाव को दिखा रहा है। सबसे बडा चिंतन और ध्यान वहीं होता है जहां पर चिता जल रही है, वहीं पर मन में भाव बदल जाते हैं। बैराग्य की साक्षात वस्तु पडी है, शरीर को जलते देख रहा है, चिता जले उससे पहले आपका चिंतन जाग जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां पर व्यक्ति का अंतिम संस्कार होता है वहीं पर बैठकर व्यक्ति ध्यान और चिंतन करे कि जीवन में हम क्या लाए थे और क्या लेकर जाएंगे। इस धरा का धरा पर ही छोड कर चले जाना है। यही सोच मन में रहती है फिर भी हम संसार के प्रपंचों में पडे हैं। यह सब चिंतन मरघट पर करना है लेकिन जैसे ही अंतिम संस्कार हुआ वहां से निकले फिर संसार की बातों में उलझ जाते हैं।
मुनिराज ने कहा कि अभी भी आपके पास भगवान की भक्ति का समय है। स्वाध्याय भक्ति भजन भगवान का कर लो जिससे जीवन समर जाएगा। आचार्य कहते हैं कि दिगंबर साधु मोक्ष मार्ग का साधक है इसलिए यह मनुष्य जीवन मिला है तो मोक्ष मार्ग पर चलो, जिससे जीवन सफल हो जाएगा।