– राकेश अचल
कांग्रेस की ग्रह-दशा खराब है या कुछ और, लेकिन कांग्रेस सन्निपात में है। हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में तीन राज्यों में कांग्रेस की अप्रत्याशित पराजय और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के बाद से जहां भाजपा का उत्साह द्विगुणित हुआ है, वहीं कांग्रेस को लगता है जैसे काठ मार गया है। सवाल ये है कि क्या कांग्रेस आने वाले दिनों में अपने आपको आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार कर पाएगी या नहीं?
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में भाजपा हाईकमान ने जिस तरह से अप्रत्याशित जीत दर्ज की थी, उसी तरह एक सप्ताह बाद मुख्यमंत्री के रूप में अप्रत्याशित नामों का ऐलान भी कर दिया। इन दोनों राज्यों में जिन लोगों को मुख्यमंत्री बनाया गया है वे नवनिर्वाचित विधायकों के मन के मुख्यमंत्री नहीं हैं, उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही आरएसएस ने चुना है। मुझे लगता है कि इन दोनों राज्यों में भाजपा ने अगले साल होने वाले आम चुनाव के हिसाब से फौरी इंतजाम किया है। आम चुनाव के परिणामों के बाद इन राज्यों के भविष्य को लेकर एक बार फिर सोचा जाएगा।
भाजपा के लिए विधानसभा चुनावों में तीन राज्यों की सत्ता में लौटना एक बडी उपलब्धि है। लेकिन इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के फैसले पर मुहर लगने के बाद एक और उपलब्धि हासिल हुई है। मुमकिन है कि केन्द्र सरकार जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का काम फटाफट निबटाकर लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा के चुनाव करा दे। सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी अप्रत्याशित नहीं था। सभी को लग रहा था कि बडी अदालत सरकार के फैसले के खिलाफ नहीं जाएगी, क्योंकि इस मुद्दे को लेकर प्रभावित पक्ष कोई बडा प्रतिरोध खडा नहीं कर सका था और देश की जनभावना भी इस मामले में सरकार के साथ थी।
सत्तारूढ भाजपा के लिए आगामी आम चुनाव बहुत कठिन नहीं है। भाजपा के पास पैसे की कमी शुरू से नहीं है, और अब तीन नए एटीएम उसे और मिल गए हैं (प्रधानमंत्री जी राज्य सरकारों को एटीएम कहते हैं)। जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने अपने हिसाब से विधानसभा सीटों की संख्या बढाने का इंतजाम पहले से कर लिया है। नए परिसीमन का लाभ स्वाभाविक रूप से भाजपा को मिलेगा। जब से राज्य में धारा 370 हटी है तभी से राज्य के तमाम राजनीतिक दलों में बिखराव देखने में आ रहा है, इसका लाभ भी भाजपा उठाएगी ही। भाजपा के लिए नया साल अनुकूल साबित हो सकता है।
दूसरी तरफ अपनी पराजय से आहत कांग्रेस का नेतृत्व अभी तक रंजोगम से बाहर नहीं निकल पाया है। कांग्रेस ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से माहौल बनाया था उससे लग रहा था कि भाजपा चारों खाने चित हो जाएगी, लेकिन हुआ एकदम उलटा। जो दशा भाजपा की होना थी, वो दशा कांग्रेस की हो गई। कांग्रेस की अप्रत्याशित पराजय की वजह से कांग्रेस तेलंगाना में जीत का जश्न भी ढंग से नहीं मना सकी। कांग्रेस की पराजय ने आईएनडीएआईए (इण्डिया) गठबंधन को भी कमजोर किया है। कांग्रेस भी अब अपने सहयोगी दलों से ‘बार्गेनिंग’ करने की स्थिति में नजर नहीं आ रही। अब कांग्रेस को सहयोगी दलों के सामने विनम्रता से पेश आना होगा।
बदले हुए हालात में भी अगले साल होने वाले आम चुनाव में केवल कांग्रेस है जो भाजपा का मुकाबला कर सकती है, भले ही इस समय कांग्रेस सन्निपात में है। कांग्रेस के सामने असल संकट संगठन का है। कांग्रेस विचारधारा के रूप में देशभर में मौजूद है, लेकिन संगठन के रूप में उसकी दशा भाजपा के मुकाबले बहुत जर्जर है। कांग्रेस की आर्थिक दशा भी अब पहले जैसी नहीं रही। कांग्रेस के पास राज्यों में प्रभावी नेतृत्व का भी संकट है। अकेले गांधी परिवार अब कांग्रेस की नैया पार नहीं लगा सकता, हालांकि एक हकीकत ये भी है कि कांग्रेस के पास राहुल गांधी के अलावा कोई ऐसा दूसरा चेहरा नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे की तरह चिर-परिचित और लोकप्रिय हो।
नए साल में क्षेत्रीय दलों की दशा में भी अंतर आने वाला है। बसपा ने उत्तर प्रदेश में नई तैयारी से उतरने के संकेत दिए है। बसपा सुप्रीमो बहन मायावती ने न केवल अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है, बल्कि ये संकेत भी दे दिए हैं कि वो अभी चुनावी राजनीति से बाहर नहीं हुई है। लोकसभा चुनाव में उसकी भूमिका पहले जैसी ही होगी। याद रहे कि बसपा अभी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है, लेकिन उसके पास विकल्प सीमित हैं। कांग्रेस के अलावा यदि इंडिया गठबंधन के तमाम सदस्य यदि अपने-अपने राज्य में भाजपा से जूझे तो मुमकिन है कि विपक्ष को कुछ सन्निपात में कांग्रेस और उत्साहित भाजपा हांसिल हो जाए। विपक्ष के पास ये आखरी मौका है भाजपा को रोकने का। यदि इस चुनाव में भाजपा की बढत न रुकी तो फिर आगे भी शायद ही इसे रोका जा सके।
बहरहाल नया साल बहुत कुछ नया लेकर आने वाला है। नए साल में रामजी को नया मन्दिर मिल रहा है, जम्मू-कश्मीर की जनता को पूर्ण राज्य मिल रहा है, देश को एक बार फिर मोदी मैजिक देखने को मिलेगा। मुमकिन है कि इस बीच कांग्रेस भी देश के लिए कुछ नया लेकर सामने आए। मुमकिन है कि भाजपा की आंख कि किरकिरी महुआ मोइत्रा वापस लौटकर संसद में आ जाएं। मुमकिन है कि नए साल में तिहाड में विचाराधीन कैदी के रूप में बंद आम आदमी पार्टी के सांसद और मंत्री भी जमानत हासिल कर बाहर आ जाएं।