@ राकेश अचल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर सबको चौंका दिया। उनकी झोली से नए मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव निकला। मोहन यादव का नाम कोसों दूर तक इस पद के लिए चर्चा में नहीं था। उनका मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल होने का तो सवाल ही नहीं था, लेकिन मोदी कि मन में मध्यप्रदेश ही नहीं मोहन यादव भी थे। भाजपा के नवनिर्वाचित विधायक तक ने ख्वाब में न सोचा था कि उनका नया नेता कोई तोमर, कोई पटेल, कोई विजयवर्गीय नहीं, बल्कि मोहन यादव होगा। मोहन यादव भाजपा को मोदी और शिवराज सिंह के नाम पर मिले जनादेश के ध्वजवाहक बाहर है। हम उनका स्वागत करते हैं। मोहन यादव भाजपा की नई चुनौती का सामना करने के लिए एक टटका चेहरा है।
मप्र की राजनीति में मोहन यादव एक निर्दोष चेहरा हैं। वे बार-बार उज्जैन से विधायक चुने गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमण्डल में उच्च शिक्षा मंत्री भी रहे है। मोहन यादव एन्टायर पालटिक्स में परास्नातक नहीं हैं, बल्कि उन्होंने बाकायदा बीएससी, एलएलबी, एमबीए की उपाधि के साथ ही पीएचडी की उपाधि भी हांसिल की है। मोहन का छोटा और सुखी परिवार है। वे सनातनी हिन्दू हैं और पिछड़ा वर्ग से आते हैं। मोहन यादव के सामने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में बहुत बड़ी जिम्मेदारी मिली है। वे अपने पूर्व के मुख्यमंत्री की तरह न अनुभवी हैं और न चाल-फरेब जानते हैं। उनके पास सवा करोड़ बहनों का अगाध स्नेह भी नहीं है, लेकिन उन्हें आरएसएस और मोदी-शाह की जोड़ी का विश्वास प्राप्त हुआ है।
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह का उत्तराधिकारी बनने के लिए भाजपा के एक से बढ़कर एक अनुभवी नेता कतार में थे, लेकिन सबकी भाग्य रेखा कट गई, केंद्रीय मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर हों या प्रहलाद पटेल या राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय। सबके अरमानों पर पानी फिर गया। और ठीक ही फिरा। ये सब बीते तीन दसक से भाजपा की सेवा कर रहे थे, अब इन्हें आराम की जरूरत भी थी। मोहन यादव भाजपा की झोली से ठीक वैसे ही निकले हैं जैसे अतीत में हरियाणा के लिए मनोहर लाल खट्टर निकले थे, या हाल ही में छत्तीसगढ़ के लिए विष्णु साय निकले हैं। ये चौंकाने वाले नाम हैं, लेकिन आने वाले दिनों की चुनौतियों का सामना करने के लिए एकदम सही चुनाव हैं।
मोदी एवं शाह की जोड़ी ने तलवारबाज जगदीश देवड़ा और बिन्ध्य के पंडित जी राजेंद्र शुक्ल को भी सोच- समझकर उप मुख्यमंत्री बनाया है। दोनों उप मुख्यमंत्री बच्चों की बाइस्किल में लगने वाले उन पहियों की तरह हैं जो सवार का संतुलन बनाए रखने के लिए लगाए जाते हैं और समय आने पर निकाल कर रख भी दिए जाते हैं। उप मुख्यमंत्रियों की उपादेयता तभी तक है जब तक कि मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव अकेले सरकार चलना नहीं सीख लेते। पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह को पार्टी ने विधानसभा अध्यक्ष बनाकर समझदारी का काम किया है, क्योंकि एक तो तोमर बोलते कम हैं, ज्यादातर उनके मुंह में ‘चैतन्य चूर्ण’ रहता है, ऊपर से उनके ऊपर गंभीरता का ठप्पा लगा हुआ है।
मोहन यादव के सामने एक मुख्यमंत्री के रूप में एक से बढ़कर एक नई चुनौतियां है। सबसे बड़ी चुनौती मोदी की गारंटी पर अमल करने की। दूसरी बड़ी चुनौती पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सवा करोड़ बहनों की राखी की लाज रखने की है और तीसरी बड़ी चुनौती आकंठ तक कर्ज के बोझ से दबे मध्य प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की है। इन सबसे बड़ी चुनौती पांच माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में 2019 का इतिहास दुहराने की है। मुझे उम्मीद है कि समय और सत्ता मोहन यादव को इन तमाम चुनौतियों का सामना करने लायक बना देगी। उनके दाएं-बाएं बैठाए गए उप मुख्यमंत्री उन्हें झपकी नहीं लेने देंगे। मध्यप्रदेश के 19वे मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव को हमारी शुभकामनाएं कि वे जिस कसौटी पर कसे जा रहे हैं उसके ऊपर खरे उतरें।