मुन्ना की नैतिकता सवालों के घेरे में

– राकेश अचल


केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर यानि हमारे मुन्ना भैया हमारे ग्वालियर शहर की शान और पहचान हैं, लेकिन उनके बेटे के एक के बाद एक विवादास्पद वीडिओ आने के बाद न केवल तोमर की बल्कि भाजपा और ग्वालियर की शान को भी बट्टा लग गया है। ये दोनों वीडियो दस हजार करोड रुपए के लेन-देन के बावत हैं। ये वीडियो तोमर की नैतिकता पर लगा सबसे बडा सवालिया निशान हैं। ये वीडियो राजनीतिक साजिश भले हों, किन्तु अब तोमर जनता की नजरों में गिरकर उठने वाले नहीं हैं।
राजनीति में हालांकि नैतिकता अब विलुप्तप्राय चिडिया का नाम है, किन्तु नरेन्द्र सिंह तोमर जैसे नेताओं से उम्मीद की जाती है कि वे नैतिकता की इस चिडिया को अब तक जैसे-तैसे पालकर रखे हुए होंगे। मंै तो तोमर को उनके छात्र जीवन से जानता हूं, जब वे पार्षद थे तब से मेरी उनकी निकटता रही है। हम एक-दूसरे का सम्मान भी करते रहे हैं, लेकिन अब मेरे मन में भी उथल-पुथल है, सवाल है। और मुमकिन है कि ग्वालियर के ही नहीं बल्कि पूरे देश के मन में भी ऐसी ही उथल-पुथल और सवाल होंगे।
आज से ठीक 25 साल पहले ग्वालियर की राजनीति और ग्वालियर राजघराने के सबसे निर्मल नेता स्व. माधवराव सिंधिया के खिलाफ भी एक बार जनता के मन में ऐसी उथल-पुथल तब हुई थी, जब उनका नाम एक हवाला डायरी में आया था। लेकिन हम सबको याद है कि माधवराव सिंधिया ने बिना कोई सफाई दिए नैतिकता के आधार पर केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से अपना त्यागपत्र दे दिया था। उस समय देश के प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिम्हाराव थे। इस्तीफा देने से सिंधिया का कद बढा था। वे कांग्रेस से निकाले जाने के बाद हुए लोकसभा चुनाव में जीते थे और आज की भाजपा ने भी उनका नैतिक रूप से समर्थन करते हुए अपना अधिकृत प्रत्याशी सिंधिया के सामने से हटा लिया था।
आज 25 साल बाद सिंधिया जैसी हैसियत भाजपा में नरेन्द्र सिंह तोमर की है। वे महाबली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमण्डल के सबसे निर्मल और गंभीर मंत्री हैं, हालांकि एक कृषि मंत्री के रूप में वे अब तक के सबसे नाकाम मंत्री भी साबित हुए। भाजपा और संघ की उनके ऊपर सदा कृपा रही है। इसी वजह से तोमर को अब तक एक से बढकर एक जिम्मेदारियां भी मिलीं और वे लगभग सभी पर खरे भी उतरे। किन्तु पहली बार उनके दामन पार ऐसा दाग लगा है जिसे आसानी से छुटाया नहीं जा सकता। तोमर के बेटे आखिए इस लेन-देन के पात्र कैसे बने? ये सवाल सभी के मन में हैं। तोमर विधानसभा चुनावों के चलते ये वीडियो आने के बाद यदि एक पल गंवाए बिना नैतिकता के आधार पर सिंधिया की तरह अपने पद से इस्तीफा दे देते तो उनकी साख बच जाती। लेकिन उन्होंने ऐसा न कर सबसे बडी भूल कर दी।
भाजपा की एक ओर दो इंजिन की सरकारों के अनेक मंत्रियों के बेटे-बेटियां इस तरह के लेन-देन में लिप्त हैं, लेकिन अब तक कोई पकड में नहीं आया। किसी का वीडियो वायरल नहीं हुआ। भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा के लडकों के ऊपर पर मौखिक रूप से लेन-देन के आरोप लागते रहे, किन्तु उनके वीडियो नहीं बने। प्रदेश के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र के पुत्र को भी उनका अभिकर्ता माना जाता है, किन्तु वे भी तोमर के पुत्रों की तरह किसी जाल में फंसे नहीं। ये खुशनसीबी है उनकी। वे भी इस तरह से ट्रेप हो सकते थे जिस तरह से की तोमर के पुत्र हुए। ये रोग केन्द्र के तमाम मंत्रियों के बेटों को लगा हुआ है। कोई इससे बच भी नहीं सकता, क्योंकि अविश्वास के युग में कोई मंत्री अपने बेटे के अलावा किसी और पर भरोसा कर भी नहीं सकता।
भाजपा के लिए नरेन्द्र सिंह तोमर की जो सेवाएं हैं, उन्हें देखते हुए भाजपा हाईकमान उनके सौ खून माफ कर सकती है और कर भी रही है। वीडियो वायरल होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नरेन्द्र तोमर का चुनाव प्रचार करने मुरैना तक गए भी। जाहिर है कि मोदी जी को इन वीडियो को लेकर तोमर के प्रति कोई संदेह नहीं है। होना भी नहीं चाहिए। लेकिन इन वीडियो के आने के बाद बिना जांच-पडताल के मामले पर धूल डालने की कोशिश तोमर के खिलाफ ही जाएगी। भाजपा को भी इस कोशिश का खमियाजा भुगतना पड सकता है। भाजपा तोमर जैसे समर्पित और निष्ठावान कार्यकार्ता और नेता के लिए ये खमियाजा भुगत भी लेगी, किन्तु तोमर को निजी रूप से हुई क्षति को भाजपा नहीं बचा सकती। तोमर को जिस तरह से मीडिया के सवालों के सामने मुंह छिपाकर निकलना पड रहा है, वो सब वेदनादायक है। मैंने पिछले 40 साल में तोमर को कभी भी ऐसी शर्मनाक परिस्थितियों से जूझते नहीं देखा।
आगामी 17 नवंबर को विधानसभा के लिए प्रदेश में मतदान है। मुमकिन है कि ये दोनों वीडियो वायरल होने के बाद भी नरेन्द्र सिंह तोमर विधानसभा का चुनाव जीत जाएं, किन्तु यदि वे ये चुनाव हारते हैं तो ये उनके जीवन का सबसे बडा घाटा होगा। हमारे यहां कहा जाता है कि ‘पूत सपूत तो क्यों धन संचय, पूत कपूत तो क्यों धन संचय?’ पर राजनीति में काम करने वाले इस कहावत पर ध्यान नहीं देते। वे घर में सपूतों के होते हुए भी उन्हें धन संचय के काम में न लगाकर कपूत बना देने की गलती करते है। भाजपा में ही नहीं बल्कि हर दल में ये बीमारी है। कांग्रेस में भी थी, तृणमूल कांग्रेस में भी है। सपा में भी है और बसपा में भी। पुत्र मोह कोई नई चीज नहीं है। महाभारत काल से अब तक पुत्र मोह के लिए हर कोई धृतराष्ट्र बन जाता है। अब इस फेहरिस्त में नरेन्द्र सिंह तोमर का भी नाम शामिल हो गया है। मैं इसे उनका दुर्भाग्य मानता हूं। ये भाजपा के लिए भी शुभ नहीं है और हमारे ऐतिहासिक ग्वालियर के लिए भी।
हम सब जानते हैं कि ये वीडियो आने के बाद न कोई ईडी, सीबीआई ग्वालियर आएगी और न किसी का कुछ बिगडेगा। न कोई जेल जाएगा और न कोई राजनीति से बेदखल किया जाएगा। लेकिन इसे नैतिकता और अनैतिकता से जोडकर हमेशा देखा जाएगा। ये वीडियो उन तमाम राजनेताओं के लिए सबक हैं जो अपने बेटों के जरिये सत्ता की एजेंसी चलाते हैं। गनीमत ये है कि दूसरे नरेन्द्र के कोई पुत्र नहीं है अन्यथा ऐसे वीडियो उनके भी बनाए और वायरल किए जा सकते थे, क्योंकि राजनीति में कोई भी किसी भी सीमा तक जाकर प्रहार कर सकता है।