खुद नाच न जाने, कहें ‘आंगन टेढा’

– राकेश अचल


मध्य प्रदेश के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की साफगोई का मैं कायल हूं। मेरी तरह बहुत से लोग कायल होंगे। मैं हमेशा से उन्हें ‘टिनोपाल मंत्री’ कहता आया हूं। लकधक में वे मप्र के नारायण दत्त तिवारी भी हैं। उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में भी साफगोई का मुजाहिरा किया और कहा कि उन्होंने दतिया का चहुमुखी विकास करने के साथ ही हेमा मलिनी तक को नचवा दिया और क्या चाहिए आपको? और ये सच भी है, लेकिन अब उन्हें खुद अपने विधानसभा दतिया का आंगन टेढा दिखाई दे रहा है। टेढे आंगन में कितना नाच पाएंगे ये कहना अभी से मुमकिन नहीं है?
डॉ. नरोत्तम मिश्रा भाजपा के छह बार के विधायक होने के नाते एक जिम्मेदार विधायक माने जाते हैं। वे अपनी दृढता, वाकपटुता और व्यक्तित्व की बिना पर अनेक बार शिवराज सिंह चौहान सरकार के संकट मोचक भी बने, मुख्यमंत्री के प्रतिद्वंदी के रूप में भी उभरे और सरकार के प्रवक्ता भी रहे। उन्हें मैं राजनीति की पहली सीढी चढने वाले दिन से जानता हूं, इसलिए अधिकार पूर्वक कह सकता हूं कि डॉ. नरोत्तम मिश्रा जैसा कोई उत्तम नेता भाजपा के पास दूसरा नहीं है। जो थे उन्हें समय ने हंसिये पर पहुंचा दिया है, लेकिन अब बारी खुद डॉ. नरोत्तम मिश्रा की है। घबडाए हुए डॉ. मिश्रा अब सन्निपात के मरीज नजर आ रहे हैं। एक जमाने में ग्वालियर-चंबल में अनूप मिश्रा, नरेन्द्र सिंह तोमर और डॉ. नरोत्तम मिश्रा को क्रमश: आनन, मुन्ना और गन्ना कहा जाता था।
भाजपा के लकधक नेता और मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को हार-जीत का अनुभव है। वे डबरा विधानसभा क्षेत्र से पहली बार 1990 में विधायक चुने गए थे, लेकिन 1993 में हार गए। 1998 में फिर से विधायक चुने गए। 2003 में भी डबरा की जनता ने उन्हें चुना, लेकिन उमा भारती ने प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद मंत्री नहीं बनाया। उन्हें मंत्री बनने के लिए दो साल इंतजार करना पडा। उन्हें मंत्री बनाया बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्रित्वकाल में। तब से प्रदेश में जब-जब भाजपा की सरकार बनी, डॉ. नरोत्तम मिश्रा को मंत्री पद मिला। इस लिहाज से वे भाजपा की मौजूदा सरकार के वरिष्ठ मंत्री माने जा सकते हैं।
ग्वालियर जिले की डबरा विधानसभा सीट से एक बार चुनाव हार चुके डॉ. नरोत्तम मिश्रा दूसरी बार चुनाव हारते, इससे पहले ही परिसीमन में डबरा विधानसभा सीट आरक्षित घोषित हो गई और वे अपना बोरी-बिस्तर लेकर पडौस के दतिया जिले की दतिया विधानसभा सीट पर चुनाव लडने जा पहुंचे। नसीब अच्छा था इसलिए डॉ. नरोत्तम मिश्रा 2008, 2013 और 2018 का विधानसभा चुनाव दतिया से जीतते रहे और भाजपा सरकार में मंत्री बनते रहे, हालांकि इस बीच वे 2009 के लोकसभा चुनाव में गुना संसदीय सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ बलि का बकरा भी बनाए गए, लेकिन उन्हें अपनी कुर्बानी का समुचित पारितोषक भी मिला।
दतिया में हेमा मालिनी को नचवाने का दंभ भरने वाले डॉ. नरोत्तम मिश्रा का नसीब अच्छा था जो वे 2008 के विधानसभा चुनाव में ‘पेड न्यूज’ की एक शिकायत के बाद अयोग्य ठहराए जाने के बावजूद अदालती लडाई लडते हुए लगातार चुनाव लडते और जीतते रहे। इस बीच दतिया का उन्होंने बहुमुखी विकास भी किया और दतिया को अपनी पुस्तैनी जागीर में भी तब्दील कर लिया। दतिया में डॉ. मिश्रा की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। नतीजा ये हुआ कि दतिया भाजपा में विद्रोह हो गया और दतिया भाजपा के एक युवा नेता अवधेश नायक भाजपा छोडकर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने उन्हें 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए डॉ. नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ अपना प्रत्याशी भी बनाया, लेकिन बाद में उन्हें मैदान से हटाकर डॉ. मिश्रा के खिलाफ उनके चिर प्रतिद्वंदी राजेन्द्र भारती को कांग्रेस का प्रत्याशी बना दिया।
भाजपा के इस देदीप्यमान नक्षत्र को हालांकि 2008 में ग्रहण लग गया था, लेकिन डॉ. मिश्रा खुश नसीब हैं कि वे अयोग्य ठहराए जाने के बाद भी अब तक योग्य बने हुए हैं और उनके पीछे राहु-केतु की तरह लगे राजेन्द्र भारती एक बार फिर से उनके खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। राजेन्द्र भारती को यदि अवधेश नायक का साथ मिल गया तो नरोत्तम मिश्रा को इस विधानसभा चुनाव में दिन में तारे नजर आ सकते हैं। वहीं भीतर ही भीतर से घबडाए हुए हैं, किन्तु इस घबडाहट को वे बाहर नहीं आने दे रहे। डबरा के विकास में डॉ. मिश्रा के योगदान को देखते हुए उन्हें हारना नहीं चाहिए, किन्तु उन्होंने डबरा की राजनीति को जिस तरह से अपनी दासी बना लिया है, उसे देखकर लगता है कि जनता की अकुलाहट उनका फट्टा पलट सकती है।
दतिया मप्र के छोटे जिलों में से एक है। यहां मां बगुलामुखी के मन्दिर के तांत्रिक पीठ के अलावा कुछ नहीं है। दतिया एक पुरानी जागीर है। दतिया पहले श्यामसुंदर श्याम की जागीर रही, इस सीट से कांग्रेस छह बार जीती तो भाजपा पांच बार। समाजवादी भी यहां से जीते और निर्दलीय भी। डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने दतिया को अपनी जागीर बनाया, लेकिन उसे पहचान भी दी। यहां मेडिकल कॉलेज खुला, शहर का विकास भी हुआ, लेकिन बदले में नव सामंतवाद इतनी तेजी से उभरा कि अब यहां के व्यापारियों, उद्योगपतियों को यहां तक कि आम जनता को भी सांस लेने से पहले डॉ. नरोत्तम मिश्रा की इजाजत की जरूरत पडती है। यहां का प्रशासन और पुलिस मप्र सरकार के नहीं, डॉ. मिश्रा के इशारों पर नर्तन करती है। लेकिन इस बार डॉ. मिश्रा खुद नर्तन करते नजर आ रहे हैं। आने वाले तीन सप्ताह में उनका आंगन सीधा होता है या नहीं, ये देखना दिलचस्प हो सकता है। क्या वे इस बार भी हेमा मालिनी को अपने लिए नचवा पाएंगे? आपको भी इस पर नजर रखना चाहिए।