शा. एमजेएस महाविद्यालय हिन्दी विभाग ने शुरू किया ‘एमजेएस हिन्दी सम्मान’

अंचल के प्रसिद्ध कवि-कथाकार डॉ. गजेन्द्र सिंह को मिला हिन्दी सम्मान

भिण्ड, 02 अक्टूबर। शहर के प्रमुख महाराजा जीवाजी राव सिंधिया शा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिण्ड में ‘हिन्दी पखवाडा’ धूमधाम से मनाया गया। इस वर्ष भी महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने पखवाडे के अंतर्गत होने वाली कविता, कहानी, निबंध और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में बढ-चढकर हिस्सा लिया।
भारत के इतिहास में पहली बार जनभाषा ‘हिन्दी’ को राजभाषा का दर्जा, स्वतंत्र भारत की संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर 1949 को दिया था। इसके लिए संविधान के भाग 17 में अनुच्छेद 343 से 351 तक प्रावधान किए गए। अनुच्छेद 343 में कहा गया है कि भारत संघ की राजभाषा ‘हिन्दी’ होगी और उसकी लिपि ‘देवनागरी’ 14 सितंबर 1953 को हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। तबसे ही ‘हिन्दी दिवस’ 14 सितंबर को मनाया जाता है।

‘हिन्दी दिवस’ मनाने के पीछे का प्रमुख कारण देश में अंग्रेजी भाषा के बढते चलन को कम करना और हिन्दी को बढावा देना है। महात्म ागांधी ने हिन्दी को जन-जन की भाषा कहा था। हिन्दी दिवस पर देशभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, कई जगह हिन्दी पखवाडा आयोजित किया जाता है। प्रति वर्ष 14 से 30 सितंबर तक मनाया जाने वाला ‘हिन्दी पखवाडा’ के अंतर्गत छात्र-छात्राओं और आम नागरिकों में राष्ट्र भाषा हिन्दी के अधिकतम प्रचार-प्रसार हेतु महाविद्यालयों में कविता, कहानी, निबंध लेखन और वाद-विवाद प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं, तो वहीं भारत सरकार अपने ‘मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों (पीएसयू), राष्ट्रीयकृत बैंकों और नागरिकों को उनके योगदान और हिन्दी को बढावा देने के लिए ‘राजभाषा कीर्ति पुरस्कार’ और ‘राजभाषा गौरव पुरस्कार’ भी प्रदान करती है।
इसी उपलक्ष्य में एमजेएस हिन्दी विभाग द्वारा महाविद्यालय में काव्य पाठ, कहानी पाठ, हिन्दी वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के साथ-साथ हिन्दी निबंध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया। निबंध प्रतियोगिता का शीर्षक था- ‘राष्ट्र निर्माण में हिन्दी भाषा का योगदान’ जिसमें महाविद्यालय के छात्र-छात्रा और प्राध्यापकों की भागीदारी एवं सहयोग उत्साह जनक रहा।
इसी क्रम में एमजेएस हिन्दी विभाग द्वारा प्रतिवर्ष जिले के किसी एक हिन्दी विद्वान को ‘एमजेएस हिन्दी सम्मान’ देने की घोषणा की है। इसके अंतर्गत विभाग सम्मानित हिन्दी विद्वान को शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति-पत्र और 1100 रुपए की सम्मान राशि प्रदान करेगा। एमजेएस हिन्दी विभाग ने इस वर्ष अपना यह सम्मान अंचल के प्रसिद्ध हिन्दी विद्वान डॉ. गजेन्द्र सिंह परमार को प्रदान किया है। ईद और रविवार की छुट्टियां होने के चलते डॉ. गजेन्द्र सिंह परमार को यह सम्मान दो अक्टूबर गांधी जयंती के दिन महाविद्यालय के न्यू हॉल कक्ष क्र.दो में एक सादा कार्यक्रम में विद्वान साहित्यकार को सम्मानित किया गया। साथ ही विद्वान अतिथि की दो पुस्तकें ‘सागर मंथन’ (निबंध संग्रह) और ‘डूबते उतराते’ (कहानी संग्रह) का विमोचन किया गया। साथ ही कथाकार ए. असफल की त्रैमासिक पत्रिका ‘किस्सा-कोताह’ के ‘मणिपुर अंक’ का विमोचन हुआ। अंत में परमार के काव्य पाठ के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
अपने सम्मान वक्तव्य में डॉ. परमार ने उपस्थित प्राध्यापक और छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा-कि हिन्दी विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा है। यह अपने आपमें अत्यंत तार्किक भाषा है। दुनिया की किसी भी भाषा के क्रियापद से कर्ता के लिंग का पता नहीं चलता, किन्तु हिन्दी भाषा ही ऐसी भाषा है, जिसके क्रियापद से ही वाक्य के लिंग का ज्ञान हो जाता है। हिन्दी माध्यम से स्नातकोत्तर करने वाले विद्यार्थियों को आज बिल्कुल हीन भाव मन में लाने की आवश्यकता नहीं। इसे अपनाकर आपके कैरियर के सैकडों मार्ग खुल जाते हैं।
कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापकों के साथ-साथ छात्र-छात्राओं की उपस्थिति उत्साह जनक रही। कार्यक्रम के अध्यक्ष कथाकार ए. असफल, मुख्य अतिथि डॉ. गजेन्द्र सिंह परमार और विशिष्ट अतिथि बृजेश कुमार रहे। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष ए. असफल ने कहा कि भिण्ड के लिए यह गौरव का विषय है कि एमजेएस महाविद्यालय के हिन्दी विभाग में जितेन्द्र विसारिया जैसे विद्वान प्रोफेसर हैं। आप छात्र-छात्राओं को उनकी विद्वता का दोहन करना चाहिए। उम्मीद है वे इस विभाग में शिवमंगल सिंह सुमन और ओम प्रभाकर की परंपरा को समृद्ध करेंगे। कार्यक्रम का संचालन सचिन सिंह भदौरिया तथा अंत में अतिथियों का आभार हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र कुमार विसारिया ने प्रकट किया।
डॉ. गजेन्द्र सिंह परमार का संक्षिप्त परिचय
प्रसिद्ध कवि-कथाकार गजेन्द्र सिंह परमार 31 अक्टूबर 1955 को जिले के ऐतिहासिक गांव नुन्हाटा में जन्मे, परमार की प्रारंभ से लेकर स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा अंचल के विद्यालयों के साथ-साथ एमजेएस महाविद्यालय में हुई। हिन्दी, राजनीति और इतिहास में प्रथम श्रेणी पास डॉ. गजेन्द्र सिंह ने अपनी पीएचडी आगरा विश्वविद्यालय से प्रसिद्ध नवगीतकार प्रवर्तकों में से एक हिमांशु मिश्र के निर्देशन में की। हिन्दी की लोकप्रिय औपन्यासिक शैली में विभिन्न विषयों पर कोई 23 उपन्यास लिखने वाले परमार हिन्दी के पारंपरिक छंद काव्य के भी सिद्धहस्त रचनाकार हैं। ‘दीपों का दर्द’ (काव्यसंग्रह) ‘निर्वासन’, ‘अशोक वाटिका’, ‘विभीषण’ (खण्डकाव्य), ‘ज्योतिकलश’ (छंदसंग्रह), ‘अवसान’ (गीतसंग्रह), ‘डूबते उतराते’ (कहानी संग्रह) तथा ‘दैत्यवंश महाकाव्य का साहित्यिक विश्लेषण’ (शोधग्रंथ) आपकी प्रमुख रचनाएं हैं।