रिश्वत लेने वाले बाबू को चार वर्ष का सश्रम कारावास

न्यायालय ने बाबू पर दस हजार का जुर्माना भी लगाया

सागर, 30 सितम्बर। विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) जिला सागर आलोक मिश्रा की अदालत ने वेतनवृद्धि के एरियर एवं सातवें वेतनमान के निर्धारण करने के ऐवज में रिश्वत लेने वाले आरोपी सहायक ग्रेड-तीन सुरेन्द्र सिंह को दोषी करार देते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7, 12, 13(1)(बी), सहपठित धारा 13(2) के अंतर्गत चार वर्ष का सश्रम कारावास एवं दस हजार रुपए जुर्माने से दण्डित किया है। मामले की पैरवी प्रभारी उपसंचालक (अभियोजन) धर्मेन्द्र सिंह तारन के मार्गदर्शन में सहायक जिला अभियोजन अधिकारी लक्ष्मी प्रसाद कुर्मी ने की।
जिला लोक अभियोजन सागर के मीडिया प्रभारी के अनुसार घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि छह मई 2019 को आवेदक छात्रावास अधीक्षक बीना सतीश गोलंदाज ने पुलिस अधीक्षक लोकायुक्त कार्यालय सागर को संबोधित एक लिखित शिकायत आवेदन इस आशय का दिया कि उसकी वार्षिक वेतनवृद्धि एक जुलाई 2018 को लगनी थी, जो कि नौ माह बाद मार्च 2019 में लगाई गई। उक्त वेतनवृद्धि के एरियर और सातवें वेतनमान का निर्धारण करने हेतु अभियुक्त सुरेन्द्र सिंह ने 10 हजार रुपए की मांग की, वह अभियक्ुत को रिश्वत नहीं देना चाहता, बल्कि रंगे हाथों पकड़वाना चाहता है। इसलिए कार्रवाई किए जाने का निवेदन किया। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विपुस्था सागर ने उक्त आवेदन पर अग्रिम कार्रवाई हेतु निरीक्षक मंजू सिंह को अधिकृत किया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकार्डर दिया गया, इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकार्ड करने हेतु निर्देशित किया। तत्पश्चात आवेदक द्वारा मांग वार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकि कार्रवाईयां की गईं एवं ट्रेप कार्रवाई आयोजित की गई। नियत दिनांक को आवेदक ने अभियुक्त को राशि दी व आवेदक का इशारा मिलने पर ट्रेप दल के सदस्य मौके पर पहुंचे और निरीक्षक मंजूसिंह ने अपना व ट्रेप दल का परिचय देकर अभियुक्त का परिचय प्राप्त करने के उपरांत, आवेदक से रिश्वत राशि के संबंध में पूछे जाने पर आवेदक ने बताया कि अभियुक्त सुरेन्द्र सिंह ने 10 हजार रुपए की रिश्वत राशि अपने हाथ में लेकर पहने हुए फुल पेंट की जेब में रख ली है, तब मौके पर कार्रवाई प्रारंभ की गई। उक्त आधार पर प्रकरण पंजीबद्ध कर मामला विवेचना में लिया गया। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्षा मौका तैयार किया गया, अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7, 12, 13(1)(बी), सहपठित धारा 13(2) का अपराध आरोपी के विरुद्ध दर्ज कर विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। जहां विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। विचारण उपरांत विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) सागर आलोक मिश्रा के न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुए उपरोक्त सजा से दण्डित किया है।