तेरी पार करेंगे नैया, भज कृष्ण कनैहिया : डॉ. शास्त्री

कांक्सी सरकार के दरबार में चल रही श्रीमद् भागवत कथा

भिण्ड, 24 अगस्त। लहार क्षेत्र के प्रसिद्ध कांक्सी सरकार के दरबार में संत रामशरण दास उर्फ लल्लू महाराज के साकेत धाम गमन की स्मृति में दंदरौआ महंत 1008 रामदास महाराज की अध्यक्षता में सरकार के प्रतिनिधि बालकृष्ण दास उर्फ प्रभू महाराज के सानिध्य में आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा वाचक डॉ. सुरेश शास्त्री ने सुदामा चरित्र की कथा का वाचन किया।
उन्होंने कहा कि जीवन में कितना भी धन ऐश्वर्य की संपन्नता हो, लेकिन यदि मन में शांति नहीं है तो वह व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता। जिसके पास धन की कमी भले ही हों, सुख सुविधाओं की कमी हो परंतु उसका मन यदि शांत है तो वह व्यक्ति वास्तव में परम सुखी है। जो हमेशा मानसिक असंतुलन से दूर रहेगा।
कथा प्रसंग मे परम भक्त सुदामा चरित्र पर प्रकाश डालते हुए महाराज ने कहा कि सुदामा के जीवन में धन की कमी थी, निर्धनता थी लेकिन वह स्वयं शांत ही नहीं परमशांत थे। इसलिए सुदामा हमेशा सुखी जीवन जी रहे थे। क्योंकि उनके पास ब्रह्म (प्रभुनाम) रूपी धन था। धन की तो उनके जीवन में न्यूनता थी परंतु नाम धन की पूर्णता थी। हमेशा भाव से ओत प्रोत होकर प्रभु नाम में लीन रहते थे, उनके घर में वस्त्र आभूषण तो दूर अन्न का एक कण भी नहीं था। जिसे लेकर वो प्रभु द्वारिकाधीश के पास जा सकें परंतु सुदामा की धर्मपत्नी सुशीला के मन में इच्छा थी, मन में बहुत बडी भावना थी कि हमारे पति भगवान द्वारिकाधीश के पास खाली हाथ न जाएं। सुशीला चार घर गई और चार मुट्ठी चावल मांगकर लाई और वही चार मुट्ठी चावल को लेकर सुदामा प्रभु द्वारिकाधीश के पास गए और प्रभु ने उन चावलों का भोग बडे ही भाव के साथ लगाया, उन भाव भक्ति चावलों का भोग लगाकर प्रभु ने यही कहा कि हमारा भक्त हमें भाव से पत्र पुष्प, फल अथवा जल ही अर्पण करता है, तो में उसे बडे ही आदर के साथ स्वीकार करता हूं। प्रभु ने चावल ग्रहण कर सुदामा को अपार संपत्ति प्रदान कर दी।
कथा वाचक ने इस पावन सुदामा प्रसंग पर सार तत्व बताते हुए समझाया कि व्यक्ति अपना मूल्य समझे और विश्वास करे कि हम संसार के सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति है। कथा पारीक्षत ऊषा रमाकांत शर्मा ने सभी को धन्यवाद प्रेषित किया इस मौके पर हजारों श्रृद्धालु मौजूद रहे।