भारत में कानून का नहीं बुलडोजर का ही राज है मी लॉर्ड

– राकेश अचल


देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई भले ही ये कहते हैं कि भारतीय न्याय व्यवस्था बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन से संचालित होती है, लेकिन ये आधी हकीकत और आधा फसाने जैसा है, क्योंकि मुख्य न्यायाधीश की बार-बार चेतावनी के बावजूद भारत में बुलडोजर संहिता हाल ही में बनी भारतीय न्याय संहिता पर हावी है।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई पिछले 10 दिनों के अंदर दूसरी बार बुलडोजर कार्रवाई की निंदा कर चुके है। इस बार उन्होंने विदेश जाकर यह बयान दिया है। मॉरीशस में ‘सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन’ विषय पर सर मौरिस रॉल्ट स्मृति व्याख्यान 2025 का उदघाटन करते हुए उन्होंने ‘बुलडोजर न्याय’ की निंदा करने वाले अपने ही फैसले का उल्लेख किया। कानून के शासन का सिद्धांत और भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा उसकी व्यापक व्याख्या पर प्रकाश डालते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा, इस फैसले ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि भारतीय न्याय व्यवस्था बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन से संचालित होती है। जस्टिस गवई इन दिनों मॉरीशस की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर हैं।
आपको याद दिला दूं कि बुलडोजर न्याय मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कथित अपराधों को लेकर अभियुक्तों के घरों को गिराना कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करता है, कानून के शासन का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि यह भी माना गया कि कार्यपालिका अन्य भूमिका नहीं निभा सकती।
प्रधान न्यायाधीश ने 1973 के केशवानंद भारती मामला सहित उच्चतम न्यायालय के विभिन्न ऐतिहासिक फैसलों का उल्लेख किया। जस्टिस गवई ने कहा कि सामाजिक क्षेत्र में ऐतिहासिक अन्याय के निवारण के लिए कानून बनाए गए हैं और हाशिए पर पड़े समुदायों ने अपने अधिकारों का दावा करने के लिए अक्सर इनका और कानून के शासन की भाषा का सहारा लिया है। उन्होंने कहा, राजनीतिक क्षेत्र में, कानून का शासन सुशासन और सामाजिक प्रगति के मानक के रूप में कार्य करता है, जो कुशासन और अराजकता के बिल्कुल विपरीत है।
जस्टिस गवई भले ही मारीशस में बुलडोजर न्याय पर भाषण दे रहे हैं, लेकिन यूपी के बरेली में पिछले सप्ताह जुमे की नमाज के बाद हुए बवाल के बाद अब बीडीए ऐक्शन मोड में आ गया है। बवाल के दौरान तौकीर को शरण देने के आरोप में चर्चा में आए फरहत खां के फाइक इंक्लेव स्थित मकान पर कार्रवाई तय मानी जा रही है। बताया गया है कि मौलाना तौकीर ने इसी मकान में पनाह ली थी। बीडीए ने गुरुवार तक का समय देते हुए फरहत खां को मकान खाली करने का नोटिस दिया था। बीडीए सीलिंग की कार्रवाई करेगा। इसके साथ बुलडोजर भी चल सकता है।
उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट की चेतावनियों के बावजूद बुलडोजर का इस्तेमाल बंद नहीं कर रही। संभल में एक मस्जिद पर बुलडोजर चल ही चुका है। कानून के राज में बुलडोजर का वजूद मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गवई को झूठा साबित करने की साजिश भी हो सकती है, क्योंकि उनकी मां ने आरएसएस के शताब्दी समारोह में जाने से इंकार कर दिया है। उप्र की ही तरह मप्र सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट की परवाह नहीं है। मप्र की राजधानी भोपाल में मछली नाम के एक मुस्लिम अपराधी की संपत्ति बुलडोजर रोंद ही रहा है। मछली पर लव जिहाद चलाने का आरोप है। लेकिन मप्र में सरकार मगरमच्छों पर बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं करती।
भारत में बुलडोजर न्याय भाजपा की डबल इंजिन की सरकारों में बहुत ज्यादा प्रचलित है। भाजपा की सरकारें त्वरित न्याय के लिए बुलडोजर का गैरकानूनी इस्तेमाल एक समुदाय विशेष के खिलाफ धड़ल्ले से कर रही हैं और सुप्रीम कोर्ट मूक दर्शक बना है, अभी तक भारत में बुलडोजर प्रेमी किसी सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई न होने से भाजपा सरकारों की हिम्मत और बढ़ती जा रही है।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गवई के पास बुलडोजर संहिता के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए गिने चुने दिन बचे हैं। गले महिने 23 नवंबर 2025 को वे सेवानिवृत हो जाएंगे। अब देखना ये है कि जस्टिस बीआर गव ई कोई नजीर बनाते हैं या फिर अपने पूर्ववर्ती मुख्य न्यायाधीशों की तरह हार मानकर बैठ जाएंगे।