दास्तां खुशियों की : ऊषा के मुरझाए सपने अब हो गए हैं हरे

ग्वालियर, 5 अगस्त। ऊषा चौका-चूल्हे तक सीमित थीं तो उनके पति खेतीहर श्रमिक थे। साल भर की जी-तोड मेहनत के बाबजूद दोनों मिलकर बमुश्किल 60 हजार रुपए कमा पाते थे। इससे बडी कठिनाई के बीच उनके परिवार की रोजी-रोटी चल पाती थी। अब ऊषा की वार्षिक आमदनी 6 लाख रुपए से भी ज्यादा हो गई है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने उनके जीवन में खुशियों के रंग भर दिए हैं।
सफलता की यह सच्ची कहानी ग्वालियर जिले के विकास खण्ड भितरवार के ग्राम निकोडी निवासी ऊषा रावत व उनके पति महेश रावत की है। ऊषा बताती हैं कि हमारे घर में खुशहाली लाने में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने बडा सहारा दिया है। मिशन के तहत गांव में गठित हुए ‘समाधि बाबा स्व-सहायता समूह’ से जुडने के बाद हमारे दिन फिरने लगे। ऊषा कहती हैं कि समूह से जुडने के बाद मैंने सबसे पहले नर्सरी प्रबंधन का प्रशिक्षण लिया और समूह से 50 हजार रुपए का लोन लेकर नर्सरी का काम शुरू कर दिया। नर्सरी से हुई आमदनी से हमने अपने परिवार का खर्चा चलाया और लोन भी चुकता कर दिया।
ऊषा बताती हैं कि यह लोन चुकता करने के बाद मेरी हिम्मत बढ गई और हमने कुटुंब संकुल स्तरीय संगठन से 9 बार में साढे 7 लाख रुपए का लोन लेकर अपने व्यवसाय को आगे बढाया। नर्सरी की सफलता से प्रेरित होकर डेयरी व्यवसाय भी हमने शुरू कर दिया। शुरुआत में पांच भैंसें खरीदीं, अब हमारे पास कुल 12 दुधारू पशु हैं। पशुओं के लिए हम अपने खेत में नेपियर घास उगाकर चारे की व्यवस्था कर लेते हैं। नर्सरी व डेयरी से हमें हर माह लगभग 40 से 50 हजार के बीच आमदनी हो जाती है।
ऊषा का कहना है कि आमदनी बढी तो मैंने अपने पति को मजदूर से ट्रेक्टर मालिक बना दिया। वे कहती हैं कि मैंने अपने पति को पिछले साल 45 एचपी का सोनालिका ट्रेक्टर खरीदकर दिया है। ऊषा कहती हैं कि बिटिया को अच्छी शिक्षा दिलाने का सपना भी परवान चढ रहा है। मेरी बेटी कॉलेज में पहुंच गई है। जीवन में आए सुखद बदलाव से गदगद ऊषा बोलीं कि सरकार द्वारा शुरू किए गए आजीविका मिशन से मिली मदद से स्थापित हुई नर्सरी व डेयरी से हमारे परिवार के मुरझाए सपने हरे हो गए हैं।