– राकेश अचल
बिहार विधानसभा चुनाव में हार का डर सत्तारूढ दल को इतना ज्यादा सता रहा है कि केन्द्र ने नए उपराष्ट्रपति का चुनाव बिहार विधानसभा से पहले कराने का निर्णय ले लिया गया है। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को घोषणा की कि उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 9 सितंबर को होंगे। उपराष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना 7 अगस्त को जारी की जाएगी और नामांकन पत्र दाखिल करने की अंतिम तिथि 21 अगस्त होगी। नतीजे मतदान के दिन 9 सितंबर को ही घोषित हो जाए। याद होगा कि जगदीप धनखड के 22 जुलाई को इस्तीफा देने के बाद यह पद रिक्त है।
मेरी जानकारी के मुताबिक भारत में उपराष्ट्रपति का पद अधिकतम छह महीने तक रिक्त रह सकता है। संविधान के अनुच्छेद 68 के अनुसार, उपराष्ट्रपति के पद रिक्त होने की स्थिति में, जैसे कि इस्तीफा, निधन या अन्य कारणों से, नया उपराष्ट्रपति चुनने के लिए छह महीने के भीतर चुनाव कराना आवश्यक है। इस दौरान, राष्ट्रपति या कोई अन्य निर्धारित व्यक्ति उपराष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन कर सकता है।
सरकार अगर चाहती तो उपराष्ट्रपति का चुनाव नए साल में भी हो सकता था, लेकिन सरकार ये चुनाव बिहार विधानसभा चुनाव से पहले करा लेना चाहती है, ताकि चुनाव का गणित न बिगडे। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जो सूचनाएं सरकार के पास हैं वे चिंता पैदा करने वाली हैं। हालांकि एक राज्य के विधायकों की संख्या में हेर फेर का उपराष्ट्रपति चुनाव पर कोई ज्यादा असर नहीं पडता, लेकिन यदि हवा उल्टी चल पडे तो उसे रोकना य अनुकूल बनाना कठिन तो हो ही जाता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत निर्वाचन आयोग भारत के उपराष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव कराता है। इसमें संविधान के अनुच्छेद 66(1) के अनुसार, भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मण्डल द्वारा किया जाता है, जिसमें राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य, राज्यसभा के मनोनीत सदस्य और लोकसभा के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। इसमें राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव नियम की बात करें तो 1974 के नियम 40 के अनुपालन में निर्वाचन आयोग को इस निर्वाचक मण्डल के सदस्यों की एक अद्यतन सूची, उनके नवीनतम पते सहित, तैयार करने और बनाए रखने का अधिकार है।
इससे पहले चुनाव आयोग ने बताया था कि उसने उप राष्ट्रपति चुनाव, 2025 के लिए निर्वाचक मण्डल की सूची को अंतिम रूप दे दिया है। इन सदस्यों को एक सतत क्रम में सूचीबद्ध किया गया है। सभी सदस्यों को वर्णमाला क्रम में उनके संबंधित सदनों के राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश के आधार पर व्यवस्थित किया गया है।
इससे पहले धनखड ने 21 जुलाई को उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था, जबकि उनके कार्यकाल की समाप्ति में अभी दो साल से ज्यादा का समय बांकी था। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपना इस्तीफा दिया था। धनखड के इस्तीफे के दो दिन बाद ही चुनाव आयोग ने नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। हालांकि, धनखड ने अपने पांच साल के कार्यकाल के केवल दो साल के भीतर इस्तीफा दिया, फिर भी उनके उत्तराधिकारी को पूरा पांच साल का कार्यकाल मिलेगा, न कि शेष बचा है।
आगामी चुनाव में सत्तारूढ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को स्पष्ट बढत हासिल है। 543 सदस्यीय लोकसभा में पश्चिम बंगाल के बशीरहाट की एक सीट रिक्त है, जबकि 245 सदस्यीय राज्यसभा में पांच रिक्तियां हैं। राज्यसभा की पांच रिक्तियों में से चार जम्मू-कश्मीर से और एक पंजाब से है। पंजाब की यह सीट पिछले महीने हुए उपचुनाव में राज्य विधानसभा के लिए चुने जाने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) के नेता संजीव अरोडा के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी। दोनों सदनों की प्रभावी सदस्य संख्या 782 है और जीतने वाले उम्मीदवार को 391 मतों की आवश्यकता होगी, बशर्ते सभी पात्र मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करें।
लोकसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को 542 सदस्यों में से 293 का समर्थन प्राप्त है। सत्तारूढ गठबंधन को राज्यसभा में 129 सदस्यों (प्रभावी सदस्य संख्या 240) का समर्थन प्राप्त है, बशर्ते कि मनोनीत सदस्य राजग उम्मीदवार के समर्थन में मतदान करें। सत्तारूढ गठबंधन को कुल 422 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 66(1) में प्रावधान है कि उपराष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से होगा तथा ऐसे चुनाव में मतदान गुप्त मतदान द्वारा होगा। इस प्रणाली में मतदाता को उम्मीदवारों के नाम के सामने अपनी प्राथमिकताएं अंकित करनी होती है।
मजे की बात है कि धनकड का इस्तीफा अभी भी रहस्यपूर्ण बना हुआ है। सरकार आनन-फानन में उपराष्ट्रपति के पद पर संघ का कोई नया प्रचारक बैठाकर संगठन और संघ में मोशा की जोडी को लेकर पनप रहे असंतोष को कम करना चाहती है। सितंबर का महीना वैसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत को वानप्रस्थी बना रहा है। दोनों सितंबर में ही 75 साल के हो जाएंगे। संघ ने परोक्ष रूप से मोदी पर पद छोडने के लिए दबाब बनाया है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसा हो पाएगा। बहरहाल सितंबर का महीना भारतीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण तो बन ही गया है।