– राकेश अचल
राजनीति में महात्वकांक्षा का बडा महत्व है और इस समय भाजपा देश की सबसे बडी महात्वाकांक्षी राजनीतिक दल है। भाजपा रोडमैप बनाकर राजनीति करती है और भाजपा ने अभी से मान लिया है कि भाजपा बिहार भले जीत ले लेकिन तमिलनाडु को नहीं जीत सकती। भाजपा के लिए तमिल अस्मिता को सिंदूरी रंग में रंगना आसान नहीं है। इसीलिए भाजपा के चाणक्य कहिये या भामाशाह यानि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मान लिया है कि डीएके को हराना भाजपा के बूते की बात नहीं है, लेकिन शाह को भरोसा है कि तमिल जनता ही डीएमके को हराएगी।
अमित शाह के हाव-भाव, बोलचाल मैं रत्तीभर पसंद नहीं करता, किंतु मै उनकी हाडतोड मेहनत और दृढ इच्छाशक्ति का मुरीद हूं। किसी दूसरे दल के पास अमित शाह जैसा मेहनती नेता नहीं है। शाह दूर की कौंडी लेकर चलते हैं। आलोचनाओं से घबडाते नहीं हैं। तमिलनाडु को लेकर भी उन्होंने जमीनी हकीकत जान ली है, लेकिन तमिलनाडु में सत्ता हासिल करने का लक्ष्य नहीं छोडा है।
अमित शाह के सपनों वाले तमिलनाडु की राजनीति के बारे में जान लीजिए। तमिलनाडु में अगले साल 2026 में विधानसभा चुनाव हैं। तमिलनाडु का राजनीतिक परिदृश्य 2025 में द्रविड विचारधारा, क्षेत्रीय अस्मिता और केन्द्र-राज्य संबंधों पर केन्द्रित है। तमिलनाडु में प्रमुख राजनीतिक दल द्रविड मुन्नेत्र कडगम यानि डीएमके वर्तमान में सत्तारूढ पार्टी है। एमके स्टालिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हैं। आपको याद होगा कि वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके ने 10 साल बाद सत्ता हासिल की थी , जिसका कारण एआईएडीएमके की सत्ता-विरोधी लहर और गठबंधन रणनीति थी। डीएमके तमिल अस्मिता, भाषाई गौरव, और सामाजिक न्याय पर जोर देती है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के त्रिभाषा फार्मूले का विरोध करती है, इसे हिन्दी थोपने की साजिश मानते हुए हाल ही में डीएमके ने केन्द्र सरकार पर परिसीमन और जनगणना 2027 को लेकर तमिलनाडु के संसदीय प्रतिनिधित्व को कम करने का आरोप लगाया है।
अखिल भारतीय अन्ना द्रविड मुन्नेत्र कडगम प्रमुख विपक्षी दल है। जिसका नेतृत्व एडप्पादी के. पलानीस्वामी कर रहे हैं। 2021 में सत्ता गंवाने के बाद से ही एआईएडीएमके 2026 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में सक्रिय है। हाल ही में केन्द्र में बीजेपी के साथ गठबंधन करने का ऐलान किया है। अमित शाह इस गठबंधन के योजनाकार हैं। हालांकि इस गठबंधन को लेकर दोनों दलों में कुछ मतभेद भी हैं। खासकर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई इन मतभेदों की जड हैं। आपको पता ही है कि भारतीय जनता पार्टी का तमिलनाडु में प्रभाव सीमित रहा है, लेकिन के. अन्नामलाई के नेतृत्व में पार्टी ने वोट शेयर को 3.66 फीसदी से बढाकर 11.1 फीसदी किया है।
तमिलनाडु में द्रविड दलों की मजबूत जडों के कारण बीजेपी को सत्ता में आने के लिए कठिन चुनौतियों का सामना करना पड रहा है। बीजेपी ने तमिल संस्कृति और रामसेतु जैसे प्रतीकों के जरिए अपनी पैठ बनाने की कोशिश की, लेकिन हिन्दी विरोध और द्रविड अस्मिता जैसे मुद्दों ने इसे मुश्किल बनाया। तमिलगा वेट्री कझगम तमिल सुपर स्टार विजय ने 2024 में अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू की, जिसे 2026 के विधानसभा चुनाव में एक नया विकल्प माना जा रहा है। विजय की पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं लड रही, लेकिन क्षेत्रीय मुद्दों और सामाजिक कल्याण पर जोर दे रही है। सर्वे में विजय को 18 फीसदी लोगों की पसंद बताया गया, जो डीएमके के बाद दूसरा स्थान है।
तमिलनाडु में हिन्दी विरोध का लंबा इतिहास रहा है, जो 1937 से शुरू हुआ। 2025 में डीएमके ने नई शिक्षा नीति के त्रिभाषा फार्मूले को हिन्दी थोपने की कोशिश करार दिया, जिसे केन्द्र ने खारिज किया। स्टालिन ने इसे तमिल अस्मिता और द्रविड गौरव से जोडकर ‘भाषा युद्ध’ की बात कही। परिसीमन और जनगणना 2027 के मुद्दे पर भी स्टालिन भाजपा पर हमलावर हैं। स्टालिन ने केन्द्र पर आरोप लगाया कि 2027 की जनगणना और परिसीमन से तमिलनाडु की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, जिससे दक्षिण भारत की राजनीतिक ताकत कमजोर होगी। केन्द्र ने इन आशंकाओं को निराधार बताया और गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा दिया कि दक्षिणी राज्यों को नुकसान नहीं होगा।
तमिलनाडु सरकार और केन्द्र के बीच टकराव के तमाम मुद्दे हैं। स्टालिन ने प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को, खासकर तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कार्पोरेशन मामले में राज्य के अधिकारों में दखल बताया। सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की कार्रवाई पर अस्थायी रोक लगाई, इसे संघीय ढांचे का उल्लंघन माना। डीएमके ने केन्द्र पर राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाया, जबकि बीजेपी इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई बताती है। तमिलनाडु की राजनीति में द्रविड विचारधारा और तमिल भाषा का गौरव केन्द्रीय मुद्दा रहा है। डीएमके और एआईएडीएमके दोनों इस अस्मिता को मजबूत करने में लगे हैं। तमिलनाडु का नाम ‘तमिझगम’ करने का प्रस्ताव भी विवाद का कारण बना, जब राज्यपाल आरएन रवि ने इसे समर्थन दिया, जिसे डीएमके ने राष्ट्रीय एकता के खिलाफ माना।
सत्तारूढ दल के रूप में डीएमके को अपनी सामाजिक कल्याण योजनाओं और तमिल अस्मिता के मुद्दे पर भरोसा है, लेकिन कर्ज का बोझ और भ्रष्टाचार के आरोप चुनौतियां हैं। हालांकि एआईएडीएमके-बीजेपी गठबंधन 2026 में मजबूत चुनौती पेश कर सकता है, लेकिन अन्नामलाई और पलानीस्वामी के बीच तनाव गठबंधन की एकजुटता को प्रभावित कर सकता है। नवगठित टीवीके के नेता विजय की लोकप्रियता और युवा समर्थन नई राजनीतिक गतिशीलता ला सकता है, लेकिन संगठनात्मक अनुभव की कमी एक चुनौती होगी। आपको पता ही होगा कि सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तमिलनाडु में द्रविड आंदोलन का गहरा प्रभाव है, जो 1916 में गैर-ब्राह्मण घोषणापत्र से शुरू हुआ। डीएमके और यू एआईएडीएमके दोनों द्रविड विचारधारा से निकले हैं, लेकिन छोटे दल जैसे पीएमकेवीसीके और एमडीएमके भी जातीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रभाव रखते हैं। तमिल भाषा और संस्कृति के प्रति संवेदनशीलता राजनीतिक रणनीतियों का आधार रही है। अब देखना ये है कि भाजपा तमालनाडु में खेला कर पाती है या नहीं?