किसान भाईयों से अपील- ग्रीष्मकालीन धान की बजाय मूंग, तिल एवं सन व ढेंचा उगाएं

* ग्रीष्मकालीन धान से खेत की उर्वरा शक्ति को होता है बडा नुकसान
* हरसी बांध में पानी कम होने से ग्रीष्मकालीन धान के लिए पानी मिलने में आएगी कठिनाई

ग्वालियर, 28 मार्च। किसान भाईयों को ग्रीष्मकाल में धान की बजाय ग्रीष्मकालीन दलहनी फसलें जैसे मूंग, तिल व ढेंचा उगाने की सलाह दी गई है। इन फसलों से खेत की मृदा (मिट्टी) का उर्वरा संतुलन बना रहता है। साथ ही ये फसलें कम पानी, कम समय और कम मेहनत में अच्छा व लाभदायक उत्पादन देती हैं।
उप संचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास आरएस शाक्यवार ने बताया कि ग्रीष्मकालीन धान में पानी की अत्यधिक जरूरत पडती है। मौजूदा वर्ष में हरसी जलाशय में पानी की उपलब्धता कम है और इस वजह से क्षेत्र का जल स्तर भी नीचे है। ग्रीष्मकालीन धान व उसके बाद खरीफ में धान की फसल लगाने से पोषक तत्वों का अत्यंत दोहन हो जाता है और मृदा की उर्वरता अर्थात उत्पादन क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो जाती है। साथ ही ग्रीष्मकालीन धान में पेस्टीसाइड एवं दवाईयों के अधिक उपयोग से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है।
ग्रीष्मकाल में धान की बजाय मूंग उगाने से खरीफ में समय से धान लगाई जा सकती है। जाहिर है खरीफ के धान की समय से कटाई हो जाती है और गेहूं की बुवाई कर अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इससे फसल चक्र के सिद्धांत का भी पालन हो जाता है जो खेत की उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिए अत्यंत जरूरी है। किसान भाई ग्रीष्मकाल में मूंग के अलावा तिल की फसल भी उगा सकते हैं। साथ ही खरीफ में जिस रकबे में धान प्रस्तावित है, उसमें हरी खाद प्राप्त करने के लिए सन या ढेंचा उगा सकते हैं। इसे खेतों में पढऩे पर मृदा की उर्वरता उच्च स्तर पर पहुंच जाती है। इसलिए जिले के किसान भाईयों से मौजूदा वर्ष में गर्मी की धान न लगाने और उसके स्थान पर मूंग, तिल अथवा सन या ढेंचा लगाकर अधिक उत्पादन प्राप्त करने और पर्यावरण व मृदा संरक्षण में सहयोग देने की अपील की गई है।