भूमि सुधार के लिए प्राकृतिक खेती ही करें : डॉ. सिंह

-कृषि विज्ञान केन्द्र लहार के वैज्ञानिक ने दी कियाानों को सलाह

भिण्ड, 10 मार्च। कृषक उत्पादक संगठन अटेर द्वारा भारतीय संस्कृति और प्राकृतिक कृषि विषय आयोजित संगोष्ठी में संचालक नमोनारायण दीक्षित ने बताया कि रासायनिक खेती के कारण जमीन, थल और वायु अर्थात संपूर्ण पर्यावरण प्रदूषित हो गया है। उत्पादन लागत बढ गई है, खेती का धंधा घाटे का होता जा रहा है। किसान खेती को छोडने को मजबूर हैं। इन परिस्थितियों में किसान क्या करें इसलिए संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. एसके सिंह ने किसानों से अपील करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में खेती कृषि ऋषि पद्धति से की जाती थी। आजादी के बाद हरित क्रांति का नारा देते हुए हमारे वैज्ञानिकों, नीति निर्धारकों तथा किसानों के संयुक्त प्रयासों से रासायनिक खेती आरंभ की गई, जिसके कारण भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ। वहीं दूसरी ओर विगत 50 वर्षों में रासायनिक खेती ने मानव स्वास्थ्य, जीव-जगत, पर्यावरण तथा मृदा स्वास्थ्य को जो गंभीर क्षति पहुंचाई है, उसके भयावह दुष्प्रभावों ने हमें अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु नए सिरे से सोचने के लिए विवश किया है हमें फिर से उस प्राकृतिक, शाश्वत कृषि परंपरा की ओर लौटना होगा, जो स्वर्णिम भारत का आधार थी।
इस अवसर पर डॉ. वीपीएस रघुवंशी ने कहा कि गाय को भारतीय संस्कृति और धार्मिक शास्त्रों में गौमाता का स्थान दिया गया है। गौमूत्र और गोबर से कयी प्रकार के जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण भी दिया गया। रामशरण पुरोहित, भारत सिंह भदौरिया ने भी किसानों को संबोधित किया। सूरतराम शर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया। गौशाला के अध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ शर्मा ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर अवधेश सिंह कुशवाह, गंभीर सिंह भदौरिया, यतीन्द्र गुर्जर, रणजीत दुबे सहित कई किसानों ने भाग लिया।