भिण्ड, 05 फरवरी। अमाहा में मां रणकौशला देवी मन्दिर परिसर में श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन कथा वाचक रमाकांत तिवारी ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता कैसे निभाई जाए, यह भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जी से समझ सकते हैं।
उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। सुदामा ने द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढने लगे। द्वार पर द्वारपाल ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हंै। इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है। अपना नाम सुदामा बता रहा है। जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना तो प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे। सामने सुदामा सखा को देखकर उन्हें सीने से लगा लिया। सुदामा ने कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें सीने से लगा लिया और प्रभु अपने महल में ले गए और उनका अभिनंदन किया। इस कथा को सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए।
महाराज ने बताया कि भागवत में बताए उपदेशों एवं उच्च आदर्शों को जीवन में ढालने से मानव जीवन जीने का उद्देश्य सफल हो जाता है। सुदामा चरित्र के प्रसंग में कहा कि अपने मित्र का विपरीत परिस्थितियों में साथ निभाना ही मित्रता का सच्चा धर्म है। मित्र बह हे जो अपने मित्र को सही दिशा प्रदान करे, मित्र की गलती पर उसे रोके और सही राह पर उसका सहयोग दे। कथा में हजारों श्रद्धालुओं की भीड रही। कथा में परीक्षित बनने का सौभाग्य माया खेमरिया पत्नी स्व. लल्लूप्रसाद खेमरिया को प्राप्त हुआ। भागवत कथा रोजाना की भांति आज भी भंडारा आयोजित किया गया।