– राकेश अचल
सेवा कीजिये तो मेवा जरूर मिलती है, ये हमारे बुजुर्गों का अनुभवजन्य वाक्य है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक पूर्व अधिकारी मनोज श्रीवास्तव पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की कृपा बरसते देख तमाम लोगों के पेट में दर्द हो रहा है। राज्य शासन द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी मनोज कुमार श्रीवास्तव को 1 जनवरी 2025 से छह वर्ष या 66 वर्ष की आयु पूर्ण होने, जो पहले हो तक की अवधि के लिए आयुक्त राज्य निर्वाचन आयोग के पद पर नियुक्त किया गया है।
मनोज श्रीवास्तव को मैं तब से जानता हूं जब से वे भातीय प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित हुए। मनोज जी 1987 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं। वे पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर प्रमुख सचिव के पद से अप्रैल 2021 में सेवानिवृत्त हुए थे। छोटे कद के मनोज श्रीवास्तव ने वास्तव में बडे-बडे कामों को अंजाम दिया। सामान्य परिवार से भाप्रसे में आना उनकी अद्वितीय मेधा का ही परिणाम है। वे मप्र के तमाम मुख्यमंत्रियों के प्रिय रहे, क्योंकि उन्हें अपने हर आका की मंशा भांपना भलीभांती आता है।
उनकी सरकारी सेवाओं की एक लंबी और गौरवपूर्ण सूची है। उन्होंने मप्र सरकार के विभिन्न विभागों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है। वे जब इंदौर कलेक्टर थे तब उनके ऊपर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की महती कृपा थी। मुख्यमंत्री के निर्देश पर उन्होंने इंदौर में अतिक्रमण विरोधी मुहिम चलाकर दिग्विजय विरोधी तमाम बिल्डरों की अनेक बहुमंजिला इमारतों को बारूद से उडा दिया था। वे अपनी प्रतिभा के बूते ही प्रदेश के जनसंपर्क आयुक्त, मुख्यमंत्री सचिवालय में सचिव और वाणिज्य कर विभाग के प्रमुख सचिव जैसे पदों पर कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा वे पशुपालन समिति और कई अन्य प्रशासनिक इकाईयों में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
मनोज श्रीवास्तव को प्रदेश सरकार के अलावा संघ और भाजपा का समर्थन कोई एक दिन में हासिल नहीं हुआ। इसके पीछे उनकी लम्बी साधना है। वे हर मुख्यमंत्री के सुर में सुर मिलाने में सिद्धहस्त अधिकारी रहे हैं। वे अध्येता हैं। खूब पढ़ते हैं, खूब लिखते हैं। उनकी दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। एक जमाने में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर को खुश करने के लिए धर्म और राष्ट्रगीत वंदेमातरम तक पर लघु पुस्तिकाएं लिखीं। वे जिस पद पर रहे उस पद पर अपने आपको प्रमाणित करके ही निकले। उन्हें प्रशासनिक सेवा में हर समय मेवा ही नहीं मिली, वनवास भी मिला। वे राजस्व मंडल में भी सजा भुगतने वाले प्रशासनिक अधिकारीयों में शामिल हैं, किन्तु उन्होंने राजस्व मंडल में भी कमल का धमाल किया था। वे सेवानिवृत्त के बाद सोशल मीडिया पर भी खूब सक्रिय हैं।
मनोज श्रीवास्तव मुझसे उम्र में छोटे हैं किन्तु ज्ञान में बहुत बडे हैं। मेरे जैसे अज्ञानियों का अनुभव है कि मप्र में भाजपा और संघ की रीति-नीति पर प्रदेश में सबसे ज्यादा और मुखरता से जितना काम पत्रकारों में विजय मोहन तिवारी ने किया उतना ही काम प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों में मनोज श्रीवास्तव ने किया। दोनों भाजपा की सनातन थ्योरी के उदघोषक हैं। जो काम वे सरकारी सेवा में नहीं कर पाए उसे उन्होंने सेवानिवृत्त होने के बाद कर दिखाया। इसका नतीजा ये हुआ कि तिवारी जी प्रदेश के सूचना आयुक्त बन गए और मनोज श्रीवास्तव पहले प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग के सदस्य बनाए गए और बाद में प्रदेश के निर्वाचन आयुक्त।
प्रशासनिक हल्कों में खबर गर्म है कि मनोज श्रीवास्तव के पद पर नियुक्ति से पहले इस पद के लिए पूर्व मुख्य सचिव वीरा राणा और रिटायर्ड एसीएस मलय श्रीवास्तव के नामों पर भी चर्चा हो रही थी। दरअसल, 30 सितंबर को वीरा राणा के रिटायरमेंट के दिन उन्हें राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाए जाने का आदेश जारी होने वाला था, लेकिन अनुराग जैन को मुख्य सचिव बनाए जाने के बाद समीकरण बदल गए और मनोज श्रीवास्तव के नाम की लॉटरी खुल गई। मनोज श्रीवास्तव का भाजपा और संघ प्रेम सबके ऊपर भारी पडा।
भाजपा और संघ की नीतियों के मुखर समर्थक मनोज श्रीवास्तव ने अपना संघ और भाजपा प्रेम सेवा में रहते हुए उजागर नहीं होने दिया था। उन्हें उनकी सेवाओं के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा दिए जाने वाले स्वामी विवेकानंद पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। मनोज श्रीवास्तव को काउंसिल फॉर इंटरनेशनल कल्चरल रिलेशंस एंड नेहरू सेंटर, साउथ बैंक्स, लंदन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विमानन पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्तमान में वह महात्मा मांधी द्वारा स्थापित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के हिन्दी भवन से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका अक्षरा के प्रधान संपादक हैं। मनोज जी ने एक-दो नहीं बल्कि पूरी 38 पुस्तकें लिखीं। उन्हें उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए मप्र सरकार का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ‘कबीर सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है। वह सहित्य के क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं, कभी-कभी उनकी सक्रियता से ईष्र्या भी होने लगती है।
मप्र में भाजपा के जितने भी मुख्यमंत्री रहे वे नौकरशाही पर निर्भर रहे। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती रही हों या बाबूलाल गौर या शिवराज सिंह, सबने अपनी-अपनी पसंद के नौकरशाहों को सेवानिवृत्त होने के बाद न केवल पुनर्नियुक्तियां दीं, बल्कि उनका कार्यकाल भी बढ़वाया। संघ और भाजपा की कृपा हासिल करने वाले मनोज श्रीवास्तव कोई पहले या आखिरी नौकरशाह नहीं है। उनसे पहले राकेश साहनी हों या दी सिल्वा, इकबाल सिंह बैंस हों या डॉ. भगीरथ प्रसाद या सरदार सिंह डंग्स। भाजपा नौकरशाहों को राजनीति में भी लाई और उन संवैधानिक पदों पर भी जिनसे उसे मनमाना काम कराना है। मुझे मनोज श्रीवास्तव के राज्य निर्वाचन आयुक्त बनने की खबर ने आल्हादित कार दिया है। मैं उन्हें बधाई भी देता हूं और उम्मीद भी करता हूं कि वे भाजपा की सेवा तो करेंगे, लेकिन पूरी तरह कठपुतली नहीं बनेंगे। बन भी जाएं तो कोई उनका क्या बिगाड लेगा?