समाज में सोहार्द वातावरण स्थापित करने केलिए प्रेम की भक्ति जरुरी: संतोष शास्त्री

भिण्ड, 25 नवम्बर|मंशापूर्ण हनुमान जी ग्राम जखमोली में श्रीमद् भागवत कथा का व्यास गद्दी से पांचवें दिन के प्रसंग में महारासकी लीला का वर्णन किया गया| जिसमें 33 कोटि देवता और तीनों लोक भगवान कृष्ण के संग नाचे इस अदभुत वर्णन के बाद उद्धव गोपी संवाद के वर्णन में गोपियों का उद्धव से सवाल करना और उद्धव का निरुतर हो जाना मनमोहक प्रसंग से लोगों के आंसू छलक आए इसके उपरांत भक्ति भावना की और प्रेम की पराकाष्ठा को राधा जी ने उद्धव के सामने प्रस्तुत कर दिया उद्धव वापस लौटे कथा के अगले प्रसंग में भगवान कृष्ण को अक्रूर वृंदावन से मथुरा ले गए मथुरा में कुब्जा का उद्धार धोबी का वध करने के वर्णन किया गया इसके बाद मथुरा के राजा कंसका वध उग्रसेन को राज दिया गया जरासंध और भगवान कृष्ण का 17 बार युद्ध करना भगवान का मथुरा छोड़कर द्वारका में पहुंचने का वृत्तांत सुनाया गया बलराम और रेवती का विवाह कथा के अंतिम प्रसंग में श्रद्धालुओं ने आनंद लिया उधर कथा व्यास संतोष शास्त्री ने संगीत के माध्यम से गिरिजा पूजन को गई रुक्मणी को अपने संगीत से सजाया और रुक्मणी जी का विवाह हुआ इस दौरान लोगों ने रुक्मणी जी के विवाह में साड़ी और उनके कपड़े भी भेंट किए भात पहनाया गया कथा प्रसंग में आचार्य संतोष शास्त्री कहते हैं रुक्मणी न कृष्ण को जानती थी ना कृष्ण उनको जानते थे एक ब्राह्मण के माध्यम से जानकारी हुई तो भक्त और भगवान का मिलन कैसे हो सके एक पत्र ने भगवान का पूरा रहस्य उद्घाटन किया भगवान रुक्मणी का हरण करने रथ लेकर रुक्म प्रदेश पहुंचे घनघोर युद्ध के बाद भी रुक्मणी को ले आए और उनका विवाह पाणिग्रहण संस्कार हुआ शास्त्री जी कहते हैं कि आज की कथा में प्रेम का प्रसंग दो बार प्रकट हुआ है एक तो राधा जी ने उद्धव के साथ किया है तो दूसरी बार रुक्मणी जी ने भगवान कृष्ण के साथ किया है प्रेम ईश्वर है और प्रेम ही समाज की वह धुरी है जिसमें समाज में एक उत्कृष्टता आती है और लोग सनातन का आदर्श स्थापित करसकते हैं जहां प्रेम नहीं वहां न तो ईश्वर रहता है और ना ही समाज में उत्कृष्टताआती है इसलिए प्रेम भाव समाज के बीच रखना भगवान की भक्ति की सिढी है जिसे हम चाहे तो अपना सकते हैं और एक आदर्श समाज की स्थापना कर सकते हैं|
26 नवंबर को कथा के अंतिम पड़ाव पर सुदामा चरित्र का वर्णन किया जाएगा|