– राकेश अचल
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावन की घोषणा से पहले ही महाराष्ट्र लहू-लुहान होने लगा है। मुंबई में एनसीपी (अजित पवार गुट) के नेता बाबा सिद्दीकी की सरे आम गोली मरकर हत्या कर दी गई, हालांकि हत्यारों को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन इस वारदात से पूरी मुंबई सदमे में है, क्योंकि दशहरे पर हुई इस वारदात को सूबे के लिए शुभलक्षण नहीं माना जा रहा।
मैंने कल ही सियासत में ठण्ड रखने की बात कही थी, लेकिन मेरी बात नक्कारखाने में तूती की आवाज से ज्यादा हैसियत नहीं रखती। जनता तो मोदी और मल्लिकार्जुन की आवाजों को सुनकर हलकान है। मोदी कांग्रेस को अर्बन नक्सलियों द्वारा संचालित बता रहे हैं और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे भाजपा को आतंकवादी पार्टी कह दिया है। जनता किसकी बातों पर यकीन करे और किसकी बात पर नहीं? मोदी जी सरकार हैं और खडगे साहब विपक्ष। या तो दोनों अपनी-अपनी लक्ष्मण रेखाएं लांघकर बोल रहे हैं या फिर दोनों की बातों में दम है। जो भी तो परेशान जनता है।
हरियाणा और जम्मू-काश्मीर के बाद विधानसभा चुनावों के जरिए अपने आपको प्रमाणित करने का अगला मुकाम महाराष्ट्र ही है। महाराष्ट्र हर मामले में दूसरे सूबों से अलग है। इस सूबे में देश की आर्थिक राजधानी है, फिल्मी दुनिया है और ये शहर आतंकवाद के हमलों का भी शिकार रह चुका है। यहां नबंवर 2024 में विधानसभा चुनाव होने हैं। सत्तारूढ दल शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और भाजपा के गठबंधन सरकार की दशा इस समय बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन ये गठबंधन दोबारा सत्ता में बनने रहने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए कमर कस कर बैठा हुआ है।
सत्तारूढ गठबंधन के नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या राजनीतिक कारणों से की गई या किसी और वजह से इसका पता फौरन नहीं लगाया जा सकता, पुलिस मामले की जांच कर रही है। मौके से गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ की जा रही है। हत्या का राज देर-सवेर खुलेगा ही, लेकिन समझा जाता है कि इसके पीछे कोई न कोई साजिश, कोई न कोई सियासत जरूर होगी, क्योंकि बाबा सिद्दीकी तीन बार के विधायक और मुंबई में अल्पसंख्यकों के स्थापित नेता ही नहीं थे बल्कि फिल्मी दुनिया में टूटी कडियां जोडने वाले नायक भी थे। वे अनेक खानों के दोस्त भी थे।
सवाल ये है कि सियासत को अर्बन नक्सली और आतंकवादी क्यों बनाया जा रहा है? शुरुआत मोदीजी ने की कांग्रेस को अर्बन नक्सली कह कर। जबाब में खडगे ने भाजपा को आतंकवादी कह दिया। ये कडवाहट की इन्तेहां है। यदि कांग्रेस सचमुच अर्बन नक्सली पार्टी है तो सरकार दस साल से हाथ पर हाथ रखकर बैठी क्यों है। सरकार को कांग्रेस को फौरन प्रतिबंधित कर देना चाहिए था और यदि मोदीजी जल्दबाजी में कांग्रेस के बारे में गलत बात कह गए थे तो उन्हें समय रहते इसे दुरुस्त कर लेना चाहिए था। उन्होंने और उनकी पार्टी ने कांग्रेस को पहली बार अर्बन नक्सलीय नहीं कहा है। ऐसा पहले भी अनेकों बार देखा जा चुका है। लेकिन भाजपा को आतंकवादी पार्टी पहली बार कहा गया है।
भाजपा के ऊपर अभी तक सांप्रदायिक, हिन्दूवादी, सनातनी, अल्प संख्यक विरोधी पार्टी होने के आरोप तो लगे हैं, किन्तु आतंकवादी होने का आरोप पहली बार लगा है। हालांकि भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस को कांग्रेस के तमाम नेता आतंकवादी संगठन अवश्य कह चुके हैं। मुमकिन है कि दोनों दलों की ओर से एक-दूसरे पर लगाए जा रहे आरोपों में कोई दम भी हो और ये भी हो सकता है कि दोनों दल अपनी-अपनी खीज मिटाने के लिए ऐसे गंभीर आरोप लगा रहे हैं। सवाल ये है कि जनता किस दल को क्या माने? एक तरफ सांप नाथ हैं, तो दूसरी तरफ नाग नाथ। जनता की तो फजीहत है। जनता के मुद्दे तो इस स्थिति लतियाव में बहुत पीछे होते जा रहे हैं।
पूर्व विधायक और एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या ने इस बात की आशंका और बढा दी है कि महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव इस बार शांति पूर्वक होंगे भी या नहीं? 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा के लिए 15वी बार चुनाव अगले महीने होना है। मौजूदा भाजपा शिवसेना गठबंधन ने कुल 161 सीटें जीतकर विधानसभा में आवश्यक 145 सीटों के बहुमत को पार कर लिया। व्यक्तिगत रूप से बीजेपी ने 105 और सेना ने 56 सीटें जीतीं। 106 सीटों के साथ विपक्षी कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन बहुमत के आंकडे तक नहीं पहुंचा। व्यक्तिगत रूप से कांग्रेस ने 44 और एनसीपी ने 54 सीटें जीतीं। सत्ता के बंटवारे की व्यवस्था में मतभेदों के कारण 2019 में महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट पैदा हो गया और शिवसेना ने भाजपा के नए मुख्यमंत्री का समर्थन करने से इन्कार कर दिया। विधानसभा में बीजेपी ने बहुमत साबित नहीं किया, शिवसेना और भाजपा गठबंधन से अलग हो गए।
आपको याद ही होगा कि बाद में शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ चुनाव के बाद गठबंधन किया और इस प्रकार 172 का बहुमत हासिल किया। नए गठबंधन का नाम महाविकास अघाडी रखा गया। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के 19वे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। भाजपा महाराष्ट्र में प्रमुख विपक्षी दल बन गई। लेकिन ये सरकार भी बहुत जल्द संकट में 21 जून 2022 को आ गई, शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे, महाविकास अघाडी के कई अन्य विधायकों के साथ सूरत चले गए और गठबंधन को संकट में डाल दिया। उनकी मांग थी की सेना अघाडी गठबंधन को तोड कर बीजेपी के साथ सरकार बनाए जो आलाकमान को कतई मंजूर नहीं था तो शिंदे अघाडी गठबंधन से बगावत करते हुए अपने विधायकों को लेकर सूरत से गुवाहाटी पहुंच गए। खबर आती रही कि शिंदे, फडणवीस जैसे बीजेपी के नेताओं के संपर्क में रहे। 29 जून तक शिंदे समेत अघाडी गठबंधन के 51 विधायकों ने उद्धव सरकार के खिलाफ बगावत कर दी, जिसमें शिवसेना के 39 और 12 निर्दलीय विधायक थे। फलस्वरूप उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पडा। 30 जून को बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री और देवेन्द्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री बनाते हुए नई सरकार बनाई।
महारष्ट्र की जनता अपने जनादेश के साथ हो रहे खिलवाड से अजीज आ चुकी है। मुझे लगता है कि लहूलुहान महाराष्ट्र की जनता इस बार अपने अतीत के फैसलों से सबक लेकर जिसे भी चुनेगी, स्पष्ट बहुमत के साथ चुनेगी और कांग्रेस तथा भाजपा से एक स्थिर सरकार की गारंटी मांगेगी। यदि इस बार भी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में खूनी खेल खेलने की कोशिश की गई तो ये प्रमाणित हो जाएगा कि हमारे जिम्मेदार राजनैतिक दल अर्बन नक्सल या आतंकवादी हैं?