बेटे से बतरस

– राकेश अचल


पागलपन बेहद है बेटा, इसकी कोई हद है बेटा।
चाट रहे हैं जहर रात दिन, समझा जिसे शहद है बेटा।।
घर-घर में बबूल की जड है, घर-घर में बरगद है बेटा।
हनुमान सब खडे सडक पर, कुर्सी पर अंगद है बेटा।।

पागलपन पर हर पागल का, दिल-दिमाग गदगद है बेटा।
धर्म-धुरंधर बडे-बडे हैं, बस कोरा कागद है बेटा।।

अपने लिए राम है अपना, अपना ही अहमद है बेटा।
एक ओर है शिखर पुराना, एक ओर गुंबद है बेटा।।
ये अपना भारत है इसमें, मीठा शब्द-शब्द है बेटा।
सेहत को खराब करता है, ‘मद’ तो आखिर ‘मद’ है बेटा।।