सत्ता के लिए पीले चावलों का सहारा

– राकेश अचल


सब जानते हैं लेकिन कहता कोई नहीं, क्योंकि सच कहने के खतरे हैं। सच ये है कि सत्तारूढ भाजपा 22 जनवरी को ‘अयोध्या चलो’ के बहाने आगामी लोकसभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं तक पहुंच कर पार्टी के मिशन 400 को हासिल करना चाहती है। कांग्रेस इस लक्ष्य को बहुत पहले हासिल कर चुकी है, लेकिन इसके लिए कांग्रेस को कभी पीले चावल नहीं बांटना पडे।
भाजपा के रणनीतिकारों की प्रशंसा करना होगी कि वे हर अवसर को सियासत के लिए इस्तेमाल करने में माहिर है। लेकिन हर अवसर राजनीति के लिए अपने आपको प्रस्तुत कर दे ये सुनिश्चित नहीं होता। भाजपा 1980 से घोषित रूप से राम का नाम लेकर राजनीति कर रही है, इसलिए किसी को इस मुद्दे पर हैरानी नहीं होना चाहिए। 1992 भाजपा की राम राजनीति का चरमोत्कर्ष था, जब अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था। राम का नाम लेकर भाजपा ने 16 मई 1996 को पहली बार दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने में कामयाबी हांसिल की, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी केवल 13 दिन सत्ता में रह पाए। राम का नाम भाजपा के काम एक बार फिर 1998 में और 1999 में भी काम आया, किन्तु भाजपा इसके सहारे राम नाम की राजनीति को आगे नहीं बढा पाई।
राम का नाम 2014 में भाजपा के काम फिर आया। भाजपा प्रचण्ड बहुमत से सत्ता में सहयोगी दलों के साथ सत्ता में वापस लौटी और नौ नवंबर 2019 को देश की सबसे बडी अदालत ने राम मन्दिर विवाद को लेकर अपना अंतिम फैसला सुना दिया। इसी दिन से राम मन्दिर का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस फैसले के बाद भाजपा नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में दूसरी बार सत्ता में वापस लौटी। लगातार दूसरी विजय के बाद भाजपा ने राम को राजनीति का भिन्न अंग बना कर 2024 का आम चुनाव लडने की तैयारी शुरू कर दी और 22 जनवरी 2024 को आधे-अधूरे मन्दिर में रामलला की मूर्ती की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने अपने आपको सत्ता में प्रतिष्ठित करने का अनुष्ठान शुरू कर दिया। इसी अनुष्ठान के तहत देश की जनता को समारोह में आमंत्रित करने के नाम पर तीन हजार क्विंटल चावलों को पीले चावलों में तब्दील कर घर-घर पहुंचाने का अभियान शुरू कर दिया। जबकि समारोह के लिए राम जन्मभूमि मन्दिर न्यास ने केवल आठ हजार लोगों को औपचारिक निमत्रण पत्र भेजे हैं।
भाजपा इन पीले चावलों के जरिए देश के 80 करोड हिन्दू मतदाताओं तक पहुंचने के लिए विहिप और आरएसएस के साथ भाजपा के कार्यकर्ताओं के जरिए 16 करोड हिन्दू घरों तक पहुंचने की है। भाजपा कोरोनाकाल में जनता से ताली और थाली बजवा चुकी है, अब वे 22 जनवरी को देशभर में राम ज्योति जलवाना चाहते हैं। हिन्दू मतदाताओं तक पहुंचने के लिए 15 जनवरी की तिथि तय की गई है। विपक्ष के पास मतदाताओं तक पहुंचाने के लिए पीले चावल नहीं है। कांग्रेस न्याय यात्रा के जरिए मतदाताओं के बीच पहुंचने की कोशिश कर रही है। संघ के जिम्मे पांच लाख गांवों तक पहुंचने की जिम्मेदारी है। भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठन पीले चावलों के अलावा राम मन्दिर की फोटो और ध्वजाएं लेकर निकल रहे हैं। भाजपा के 18 करोड कार्यकर्ता इस अभियान के जरिए अपनी राज्य सरकारों के माध्यम से जनता को नि:शुल्क अयोध्या ले जाने की योजना बनाए बैठी है।
सत्ता में काबिज बने रहने के लिए भाजपा के रामनामी अभियान के सामने कांग्रेस की न्याय यात्रा कितना ठहर पाएगी ये कहना कठिन है, क्योंकि भाजपा की तरह कांग्रेस और शेष विपक्ष के पास घर-घर तक पहुंचने का कोई कार्यक्रम नहीं है। कांग्रेस और विपक्ष के पास न भाजपा जैसा संगठन है और न आरएसएस तथा विहिप जैसे संगठन। कांग्रेस और शेष विपक्ष अभी तक एकजुट भी नजर नहीं आ रहा, जबकि भाजपा की सेना घरों से निकल कर पीले चावल बांटने के सुपर अभियान में जुट भी गई है। देश में ऐसी कोई संवैधानिक संस्था या सिस्टम नहीं है जो भाजपा को राम के नाम पर राजनीति करने से रोक सके। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में लोकतांत्रिक मूल्यों की बिना पर चुनाव लडकर भाजपा को सत्ताच्युत करना मुझे तो टेढी खीर लगता है।
कहने को भाजपा के साथ पूरा देश या मतदाता नहीं है। भाजपा की पहुंच केवल 30-32 करोड मतदाताओं तक ही है, शेष मतदाता संख्या बल में ज्यादा होते हुए भी भाजपा का विजय रथ इसलिए नहीं रोक पाते क्योंकि उनके पास धर्मध्वजाएं नहीं है। उनके पास धर्मनिरपेक्षता का अमोघ अस्त्र भी नहीं है। धर्मनिरपेक्षता पिछले दो आम चुनावों में परास्त हो चुकी है। भाजपा की विचारधारा और राजनीति से इत्तेफाक न रखने वाले लोग चाह कर भी भाजपा की बढत को रोक नहीं पा रहे। दुर्भाग्य ये है कि धर्म का नशा अब चरम पर है और धर्मान्ध लोग असली मुद्दों को न सिर्फ भूल गए हैं बल्कि उन्हें अपने भविष्य की फिक्र भी नहीं है। वे सबके सब अब राम भरोसे हैं और राम का भरोसा गाढा करने के लिए भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठन पहले से ज्यादा काम कर रहे हैं। इन सबको सत्ता का स्वाद समझ आ गया है। भाजपा जिस मुस्तैदी से अक्षत कलश लेकर निकली है उसी तरह से भाजपा अटल बिहारी के अस्थि कलश लेकर भी निकली थी। उसके लिए जनता को बांधे रखने के लिए कलशों में कोई भेद नहीं है, फिर चाहे वे अस्थि कलश हों या अक्षत कलश!
मुझे इस बात को लेकर कोई भ्रम नहीं है कि देश की जनता एक बार फिर मोदी जी के झांसे में आकर 22 जनवरी को अपने घर पर राम ज्योति जला कर भाजपा की विजय यात्रा में आने वाले अंधेरे को दूर करने में सहायक साबित होगी। ये बात और है कि देश पिछले 64 साल में जितना आगे बढा था, उतना ही पिछले दस साल में पीछे जा चुका है। भाजपा के शासन में देश को भगवा रंग में रंगने की कोशिशें के अलावा कुछ हुआ ही नहीं, देश के प्रधान सेवक से लेकर आखरी सेवक तक अपने माथे पर त्रिपुण्ड लगाकर मन्दिर-मन्दिर भटकते दिखाई दे रहे हैं। देश में अगले कुछ वर्षों में संसद और दूसरी संवैधानिक संस्थाओं के ऊपर भी भगवा रंग चढ जाए तो हैरानी नहीं होना चाहिए, क्योंकि राम नाम की बैसाखी अभी भी भाजपा के साथ है।