– राकेश अचल
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का मंत्रिमण्डल न आम है और न सामान्य। इस मंत्रिमण्डल का स्वरूप ‘मोहन-मिश्री’ जैसा है। इसमें बूढे हो चुके गोपाल भार्गव नहीं हैं, तो बूढे होकर भी जवान बने रहने वाले कैलाश विजय वर्गीय शामिल किए गए हैं। यादव मंत्रिमण्डल में बाबूलाल गौर की तरह शिवराज सिंह पूर्व मुख्यमंत्री होने के बावजूद शामिल नहीं हैं, लेकिन अनेक बार के सांसद प्रहलाद पटेल हैं। ये सब भाजपा की सरकारों में ही मुमकिन है। यानि मोहन की पलटन मोहन-मिश्री जैसी है।
भाजपा जब चाहे तब किसी को भी मूषक से शेर और किसी को भी शेर से चूहा बना सकती है। अब अग्निपरीक्षा मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव की है कि वे शेर और चूहों की इस पलटन के साथ कैसे आगामी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए मप्र को यथास्थिति में बनाए रख सकते हैं। बे-मन से विधानसभा का चुनाव लडने वाले कैलाश विजयवर्गीय ने हालांकि अपने विनोदी स्वभाव को जीवित रखते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव की तारीफों के पुल बांधना शुरू कर दिया है और स्वीकार कर लिया है कि मोहन यादव डिग्रियों के मामले में उनसे आगे हैं। लेकिन उनके मन में पोशीदा दर्द अपनी जगह है। जिस समय उनके बेटे के सिर पर मौर (मुकुट) सजना था उस समय वे खुद मंत्री बना दिए गए हैं और बेटे आकाश की विधायकी भी चली गई है। ऐसे में अब पूर्व विधायक आकाश विजयवर्गीय को विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह के बेटों की तरह बिना विधायक बने काम करना पडेगा।
मोहन यादव मंत्रिमण्डल में दया के पात्र पूर्व सांसद राकेश सिंह और प्रहलाद पटेल भी हैं। राकेश सिंह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। वे मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे, लेकिन उनका सपना टूट गया। उनसे ज्यादा सपना टूटने की आवाज पूर्व सांसद प्रहलाद पटेल के यहां से आई है, लेकिन भाजपा हाईकमान ने उसे अनसुना कर दिया। भाजपा कार्यकर्ताओं ने इस आवाज को सुना भी और नहीं भी। क्योंकि सब जानते हैं कि भाजपा की मोदी चरित मानस में होगा वही जो मोदी-शाह मन भाए। कैलाश, प्रहलाद और राकेश सिंह के मंत्रिमण्डल में रहने से मंत्रिमण्डल का वजन बढेगा, लेकिन मोहन यादव के सिर पर एक दो नहीं अपितु तीन-तीन अप्रत्यक्ष तलवारें हमेशा लटकी रहेंगी। जो उन्हें चैन से सोने नहीं देंगी और शायद काम भी न करने दें।
अच्छी बात ये है कि मोहन यादव का मंत्रिमण्डल तीन स्तरीय है। इसमें कैबिनेट स्तर, राजयमंत्री स्वतंत्र प्रभार और चार अन्य राजयमंत्री बनाए गए हैं। नए मंत्रिमण्डल में मोहन यादव का हनुमान कौन बनेगा ये अभी पता नहीं है। वैसे कैलाश विजयवर्गीय एक जमाने में हनुमान की भूमिका में काम कर चुके हैं। कुंवर विजय शाह, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद सिंह पटेल, राकेश सिंह, करण सिंह वर्मा, उदय प्रताप सिंह, श्रीमती सम्पतिया उइके, तुलसीराम सिलावट, ऐदल सिंह कंषाना, सुश्री निर्मला भूरिया, गोविन्द सिंह राजपूत, विश्वास सारंग, नारायण सिंह कुशवाह, नागर सिंह चौहान, प्रद्युम्न सिंह तोमर, राकेश शुक्ला, चैतन्य काश्यप ‘भैयाजी’ और इंदर सिंह परमार ने शपथ ली। राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के रूप में श्रीमती कृष्णा गौर, धर्मेन्द्र भावसिंह लोधी, दिलीप जायसवाल, गौतम टेटवाल, लखन पटैल और नारायण सिंह पंवार ने शपथ ली। राज्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वालों में नरेन्द्र शिवाजी पटेल, श्रीमती प्रतिमा बागरी, अहिरवार दिलीप और श्रीमती राधा सिंह शामिल है।
मप्र में भाजपा सरकार की वापसी का मार्ग खोलने वाले केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोहन मंत्रिमण्डल से कोई ज्यादा निराशा नहीं हुई। उनके समर्थक गोविन्द सिंह राजपूत, तुलसी सिलावट, प्रद्युम्न सिंह तोमर और ऐदल सिंह कंषाना को मंत्री पद मिल ही गया है। सिंधिया वैसे भी ज्यादा कहां चाहते हैं। उन्हें तो दो पायलट और दो फॉलो मिल गए यही बहुत है। अब वे चाहे बुंदेलखण्ड में जाएं, चाहे मालवा में, चाहे ग्वालियर में रहें या या चंबल में अगवानी करने के लिए अनुचर मिल ही गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का खास कौन है और कौन नहीं, ये कहना मेरे लिए कठिन है। क्योंकि उनके तमाम खास विधायकों का नाम मंत्रिमण्डल में नजर नहीं आ रहा।
मोहन मंत्रिमण्डल को लेकर सबका अपना आकलन है, सबका अपना कयास है। आमतौर पर यही समझा जा रहा है कि मंत्रिमण्डल में सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया गया है। आगामी लोकसभा चुनावों को भी मद्देजनर रखा गया है, लेकिन मुझे लगता है कि मोहन मंत्रिमण्डल शिवराज मंत्रिमण्डल से ज्यादा संतुलित है। ये बात अलग है कि मुख्यमंत्री के नाते मोहन यादव को भी दिन-रात अलर्ट रहकर काम करना पडेगा। उन्हें भी सत्ता और संगठन के साथ गुटों में संतुलन बनाकर चलना पडेगा, हालांकि पार्टी हाईकमान ने तमाम छत्रपों को ठिकाने लगाकर मोहन यादव की मुश्किलें आसान कर दी हैं।
नए मुख्यमंत्री मोहन यादव को अन्य मंत्रिमण्डल के साथ ‘फुल स्विंग’ में काम शुरू करना होगा, क्योंकि समय कम है और काम ज्यादा। मुख्यमंत्री को एक तरफ प्रदेश की जनता को सुशासन देना है तो दूसरी तरफ मोदी की गारंटियों को अमली जामा पहनना है और तीसरा सबसे बडा काम अपनी छवि को शिवराज सिंह चौहान की छवि से ज्यादा तरल-सरल बनाना है। अभी मोहन यादव की जो छवि है वो एक मुख्यमंत्री की नहीं है, एक कैबिनेट मंत्री की है, उन्हें इस पुरानी छवि से बाहर निकल कर दिखाना होगा। ये काम कठिन है, लेकिन असंभव नहीं। मोहन यादव अपने नाम के अनुरूप अपनी छवि गढ सकते हैं, लेकिन शर्त एक ही है कि वे अपनी उपलब्धता पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री कि मुकाबले ज्यादा बनाए रखें।
नए मुख्यमंत्री के रूप में सचिवालय यानि बल्लभ भवन के गलियारे सत्ता की दलाली के केन्द्र न बनें, सत्ता के गलियारों में कमलनाथ सरकार के कार्यकाल की तरह सन्नाटा भी न हो, इसके लिए बेहतर है कि मंत्रियों की सचिवालय में उपलब्धता और क्षेत्र में उपस्थिति के दिन सुनिश्चत किए जाएं। नौकरशाही को और ज्यादा सक्रिय बनाया जाए। पुलिस का इकबाल बुलंद करने के लिए पुलिस कि कामकाज में हस्तक्षेप को बंद किया जाए, साथ ही पुलिस कमिश्नर प्रणाली की समीक्षा की जाए कि इसे बंद करना है या इसका विस्तार करना है। बांकी तो सब ठीक है। नए मंत्रिमण्डल को हम सभी की शुभकामनाएं।