– डॉ. दीपांका
हमारे यहां गाय, भैंस प्रजाति के सभी पशु मुख्यत: भूषा व धान के पुआल जैसे चारे पर निर्भर रहते हैं। यह चारे पशु चाव से नहीं खाते तथा इनसे पर्याप्त पोषण तत्व भी नहीं मिल पाता, परिणाम स्वरूप इन चारों पर पलने वाले पशु से उत्पादन तो दूर अपना सामान्य स्वास्थ बनाए रखना भी संभव नहीं हो पाता।
पशुओं को स्वस्थ रखने तथा उसकी उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिए उनके आहार भी भिन्न पोशक तत्वों का होना अति आवश्यक है। इस तत्वों में मुख्यत: कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज तत्व व विटामिन का होना नितांत आवश्यक है। हमारे पशु आहार में कार्बोहाइड्रेट की समस्या नहीं है। लेकिन प्रोटीन खनिज एवं विटामिन ए, डी, ई, व, के की विशेष कमी है। ‘सी’ तथा ‘बी’ श्रेणी के विटामिन इनके पेट में स्वत: बन जाते हैं। बछिया एवं बछडों का पोषण बछडे के जन्म के तुरंत पश्चात उसे सर्वप्रथम खीस पिलानी चाहिए। जन्म के पश्चात जो प्रथम दूध मिलता है उसे खीस कहते हैं। नवजात को जन्म के दो-चार घण्टे के अंदर ही खीस पिलाना अत्यंत आवश्यक है। यदि किसी कारणवश खीस उपलब्ध नहीं है तो बछडे को दूसरी गाय की भी खीस पिला सकते हैं। यदि संभव न हो तो एक अण्डा, एक पाव शुद्ध पानी, आधा चम्मच अरणी का तेल, आधा लीटर दूध में मिलाकर पिलाना चाहिए।
गर्भवती गाय एवं भैंस का पोषण
गाय का गर्भकाल समय 282 दिन तथा भैंस का 305 दिन होता है। मादा पशु के शरीर में बच्चे का विकास गर्भकाल के प्रथम छह-सात महीने में धीमी गति से होता है पर अंतिम तीन महीने में विकास बहुत तीव्रता से होता है। गर्भवती पशुओं की देखभाल व उनकी पोषण की तरफ अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि एक स्वस्थ बच्चे के लिए मां के द्वारा ही उसको पोषण तत्व प्राप्त हो सकते हैं। गर्भवती पशु को ब्याने से लगभग 60 दिन पहले दूध लेना बंद कर देना चाहिए, एक से डेढ किलोग्राम दाना मिश्रण प्रतिदिन खिलाना चाहिए।
दुधारू पशुओं का पोषण
दलहनी तथा गैर दलेहनी चारे के मिश्रण का समावेश होना चाहिए, पांच लीटर तक दूध देने वाले पशुओं को केवल अच्छी प्रकार के हरे चारे पर रखकर दूध प्राप्त किया जा सकता है। पांच लीटर से अधिक दूध देने वाले पशु को प्रति दो या ढाई लीटर दूध पर किलोग्राम अतिरिक्त दान देना चाहिए। दाने में एक भाग खली, एक भाग अनाज व एक भाग चोकर होने पर यह संतुलित व सस्ता रहता है। दाने में दो प्रतिशत खनिज लवण एवं एक प्रतिशत नमक का होना अत्यंत आवश्यक है। बरसीम व अन्य दलहनी चारे को भूसे में मिलाकर देना चाहिए। इससे पशुओं को अफरा की समस्या नहीं रहती। पशुओं के दाना व चारे को मिश्रित करके खिलाना चाहिए या दूसरे शब्द में कहें तो सानी बना कर देना चाहिए।