– राकेश अचल
बैंकॉक में तीन दिवसीय विश्व हिन्दू कांग्रेस का सम्मेलन संपन्न हो गया और इसकी गूंज पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के प्रचार में नहीं सुनाई नहीं दी, ये हैरानी की बात है। कम से कम तेलंगाना में तो इसे सुनाई देना था। वहां अभी चुनाव प्रचार चल रहा है। तेलंगाना के तिलों में कितना तेल है, इसका पता भी शायद इस सम्मेलन के निर्णयों की गूंज से पता चल जाता।
बैंकॉक दुनिया में किस बात के लिए मशहूर या बदनाम है ये बताने की जरूरत नहीं है। कम से कम भारत के लोगों को तो बैंकॉक के बारे में गहरी जानकारियां हैं। यहां दुनिया की अधिकतर व्यापारिक कंपनियां अपने अफसरों को, कारिंदों को मनोरंजन के लिए भेजती हैं, ताकि वे तरोताजा होकर ज्यादा स्फूर्ति के साथ कामकाज में अपना दिल लगाएं। लेकिन यहां विश्व हिन्दू कांग्रेस का सम्मेलन भी हो सकता है ये मेरे लिए अकल्पनीय है। विहिका ने यहां न सिर्फ सम्मेलन किया, बल्कि हिन्दू संगठनों के बीच एकता को मजबूत करने के संकल्प भी लिया, इस दौरान सनातन धर्म के खिलाफ आंतरिक नफरत और पूर्वाग्रहों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने का संकल्प भी लिया गया।
विश्व हिन्दू कांग्रेस में 61 देशों के 2100 से अधिक प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया। अब अगली विश्व हिन्दू कांग्रेस 2026 मुंबई में आयोजित की जाएगी। ये काम यदि इसी वर्ष कर लिया जाता तो भारत और भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा होता, क्योंकि इस समय भारत में पांच राज्यों के चुनाव हैं, लेकिन भाजपा का नसीब कि ऐसा हो नहीं पाया। भारत के हिन्दुओं को मोहन जी को भागवत का रसास्वादन करने का अवसर भी नहीं मिला। विश्व हिन्दू कांग्रेस का उदघाटन शुक्रवार को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने किया था, आध्यात्मिक नेता माता अमृतानंदमयी देवी ने समापन। आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने दुनियाभर में रहने वाले हिन्दुओं से लोगों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने की अपील की। उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म शांति और खुशी का मार्ग खोलता है और संपूर्ण मानवता को सभी प्राणियों के अस्तित्व की आत्मा मानता है।
आपको बता दें कि विश्व हिन्दू कांग्रेस के संस्थापक स्वामी विज्ञानानंद हैं। वे कांग्रेसी हैं या संघी ये जानना जरूरी नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘कोविड महामारी के दौरान हिन्दुओं तक पहुंचने की प्रक्रिया धीमी हो गई थी। हम अब इस प्रक्रिया को पुनर्जीवित कर रहे हैं।’ स्वामी विज्ञानानंद का एजेंडा संघ के एजेंडे से मेल खता है। स्वामी विज्ञानानंद कहते हैं कि विश्व हिन्दू कांग्रेस का ध्यान उन ईसाई संगठनों के नियंत्रण में मन्दिर की भूमि को पुन: प्राप्त करने पर भी होगा, जिन्होंने कॉलेजों और अन्य संस्थानों का निर्माण किया है। विज्ञाननंद ने कहा, ‘ये मन्दिर की जमीनें हैं, जिनकी लीज डीड समाप्त हो चुकी है। ये हमारी कानूनी जमीन है, उन्हें इसे वापस सौंपना होगा’।
दरअसल जंगल में मोर नाच गया लेकिन किसी ने देखा नहीं, क्योंकि जिस देश और समाज के लिए ये कांग्रेस आयोजित की गई थी उस भारत में लोग पांच राज्यों के चुनावों के अलावा उत्तराखण्ड में एक सुरंग में फंसे 41 लोगों की जिंदगियों को लेकर तनाव में हैं। भारत का हिन्दू मीडिया भी इसीलिए विश्व हिन्दू कांग्रेस को ज्यादा स्थान नहीं दे पाया, अन्यथा बैंकाक में डॉ. मोहन भागवत ने भारत के हिन्दुओं के लिए काम की अनेक बातें कहीं। भागवत ने कहा कि अंग्रेजों के बनाए गए कानून को बदलना होगा। इस दिशा में प्रयास चल रहा है। अंग्रेजों के तंत्र में बहुत सारी गडबडियां हैं। तंत्र को भारत के आधार पर रचने की आवश्यकता है। उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बाह्य व आंतरिक सुरक्षा सहित कई अन्य ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए। संपत्ति के न्याय वितरण पर जोर देते हुए कहा कि समृद्ध लोग गरीबों की मदद करें। भागवत ने जिन विषयों को छुआ वे संघ के भी मुद्दे हैं और भाजपा के भी और अब विश्व हिन्दू कांग्रेस के भी। लेकिन भगवत कथा को राजनीति की चिल्ल-पौं ले डूबी।
ये जानकार अच्छा लगता है कि स्वयं को सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन कहने वाले आरएसएस के प्रमुख आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बाह्य व आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों को लेकर भी सजग हैं और काम करना चाहते हैं। मुझे लगता है कि यदि भाजपा 2024 में तीसरी बार सत्ता में लौट आए तो डॉ. भागवत का काम बन सकता है, सपना पूरा हो सकता है। 2024 में उन्हें भारत में भाजपा की सरकार बनने का पूरा भरोसा भी है, इसीलिए उन्होंने 2026 में विश्व हिन्दू कांग्रेस का आयोजन भारत में करने का संकल्प किया है। विश्व हिन्दू कांग्रेस के बारे में आपको एक महत्वपूर्ण बात और बता दूं कि यहां हर प्रतिनिधि को एक संदेश के साथ लड्डू के डिब्बे वितरित किए गए। जिन पर लिखा गया था- ‘दुर्भाग्य से हिन्दू समाज एक नरम लड्डू जैसा दिखता है, जिसे आसानी से टुकडों में तोडा जा सकता है। फिर आसानी से निगल लिया जा सकता है।’ इसमें आगे लिखा गया- ‘एक बडा कठोर लड्डू मजबूती से बंधा और एकजुट होता है और इसे टुकडों में नहीं तोडा जा सकता है। हिन्दू समाज एक बडे कठोर लड्डू की तरह होना चाहिए, जिसे तोडना मुश्किल हो और दुश्मन ताकतों के खिलाफ खुद की रक्षा करने में सक्षम हो।’
खैर हिन्दू समाज का लड्डू मजबूत बनेगा या नहीं ये हम सब तीन दिसंबर के बाद देखेंगे। अभी तो आप देखिये कि हिन्दू नेता बैंकॉक से लौटे हैं तरोताजा होकर। बैंकॉक लोग जाते ही तरोताजा होने के लिए हैं, फिर चाहे वे हिन्दू हों, मुसलमान हों, सिख हों, ईसाई हों या किसी और धर्म के हो। बैंकॉक में बुद्धत्व पुजता है हिन्दुत्व नहीं। फिर भी बैंकॉक सुखानुभूति करने वाला देश है। जो लोग बैंकॉक नहीं गए हैं वे एक बार वहां जरूर जाएं।