– डॉ. दीपांका
भारत में पशु पालन पुरातन काल से आजीविका का साधन रहा है और आज भी व्यापक रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्र बन चुका है। वर्तमान परिदृश्य में किसानों के साथ-साथ शिक्षित लोग भी नौकरी छोड कर वैज्ञानिक तरीके से पशु पालन करते हैं। इसमें बकरी पालन व्यवसाय को अधिक अपना रहे हैं। यहां व्यवसाय के जरिये दूध से लेकर मीट तक बेच कर मोटी कमाई की जा रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बकरी को गरीबों की गाय कह कर संबोधित किया है। बकरी का दूध पौष्टिक अल्सर के इलाज में कारगण है, क्योंकि बकरी के दूध का पीएच क्षारीय प्रकृति का होता है। डेंगू जैसी बीमारी में प्लेटलेट्स काउंट घटने पर डॉक्टर बकरी के दूध का सेवन करने की सलाह देते हैं।
बकरी पालन में लाभकारी नस्लों का प्रयोग करके किसानों को अधिक लाभ की संभावनाएं बढ जाती हैं। जैसे- बीटल, जमुनापारी, जिनके रख-रखाव में अतिरिक्त जगह, चारे व आधुनिक संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती। पशु पालकों के बकरी पालन में केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी) फरह, मथुरा की चार अलग-अलग डिवीजन बकरी और भेड पालन की साइंटिफिक तरीके से ट्रेनिंग देता है। साथ ही गोट फार्म खोलने में मदद करते हुए सीआइआरजी प्योर ब्रीड के बकरे और कबरी भी उपलब्ध कराता है। बकरी पालन के लिए एनएलएम योजना के तहत सरकार द्वारा चार लाख रुपए के लोन की राशि प्रदान की जाती है, जिसके लिए पशु पालक को आवेदन करना होता है। केन्द्र सरकार बकरी पालन के लिए 15 फीसदी तक सब्सिडी देती है। मध्य प्रदेश सरकार बकरी पालन के लिए लगभग 60 प्रतिशत सब्सिडी देती है। केन्द्र द्वारा संचालित योजना पशु क्रेडिट कार्ड पर रियायतों का विकल्प चुन कर पशु पालक लाभ उठा सकते हैं।
बकरी पालन लघु पशु पालकों के लिए एक स्वास्थ्यप्रद व्यवसाय है। जिनके पास अतिरिक्त संसाधनों का अवभाव विद्यमान है। बकरी पालन आवश्यकता के साथ-साथ स्थानीय बकरी की प्रजातियों के विकास को बढावा देता है, जिससे उनके संरक्षण व संवर्धन में सहायक हो सके।