इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी में रहे छात्र संघ के अध्यक्ष भरत पिता के लिए कर रहे प्रचार

भिण्ड विधानसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं पिता चौ. राकेश सिंह

भिण्ड, 07 नवम्बर। विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों के प्रचार में उनके परिजन भी कंधे से कंधा मिलाकर डोर टू डोर कैंपेन कर रहे हैं। भिण्ड विधानसभा क्षेत्र में भी प्रचार को अनोखा रंग दिखाई दे रहा है. यहां इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग से पढाई कर लौटे भरत चतुर्वेदी अपने पिता कांग्रेस प्रत्याशी चौ. राकेश सिंह चतुर्वेदी के लिए डोर-टू-डोर प्रचार कर रहे हैं।
भरत चतुर्वेदी ने 17 साल की उम्र में ही भिण्ड छोडकर फिलोसॉफी, पॉलिटिकल, इकोनोमिक (पीपीई) डिग्री लेने विदेश चले गए थे। उन्होंने वहां पढाई के साथ-साथ राजनीति में भी कदम रखा। उन्होंने स्टूडेंट ऑफ ट्रस्टी का चुनाव लडा और जीत गए। इसके बाद उन्होंने स्टूडेंट ऑफ प्रेसिडेंट का चुनाव लडा, इस चुनाव को जीतकर भिण्ड का बेटा इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी का प्रेसिडेंट बना।
भरत चतुर्वेदी को राजनीति विरासत में मिली है, वे अपने दादा चौ. दिलीप सिंह चतुर्वेदी और पिता चौ. राकेश सिंह चतुर्वेदी के नक्शे कदम पर चलकर राजनीति के दांव-पेंच भी सीखने लगे हैं, दादा दिलीप सिंह चतुर्वेदी ने 1955 में लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रेसिडेंट का चुनाव जीता था, यहीं से चौधरी परिवार की राजनीति की शुरुआत हुई। उनके बाद भरत के पिता चौ. राकेश सिंह चतुर्वेदी महज 27 साल की उम्र में भिण्ड विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। चौ. राकेश ने भिण्ड से छह बार चुनाव लडा और चार बार जीते, यह उनका सातवां चुनाव है। उनके इसी सातवें चुनाव के लिए भरत भिण्ड के हर गली मोहल्ले में युवाओं की टोलियां बनाकर प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं। प्रचार के दौरान भरत चतुर्वेदी ने कहा कि जनता की जो सेवा हमारे बाबा, पिता और परिवार ने की, मैं भी वही करने की कोशिश कर रहा हूं। मैं भी लोगों से आशिर्वाद ले रहा हूं।
बता दें कि भिण्ड विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकिट पर चुनाव लड रहे चौ. राकेश सिंह चतुर्वेदी दिग्विजय सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं। वे विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष का दायित्व भी संभाल चुके हैं, उन्हें उत्कृष्ट विधायक का अवॉर्ड भी प्राप्त है, इसलिए वह अपनी योग्यता और अनुभव के दम पर फिर से चुनाव मैदान में उतर रहे हैं, इस तरह उनका 10 साल का राजनीतिक वनवास खत्म हो रहा है।