पुराने थाना प्रांगण में चल रही है श्रीमद् भागवत कथा
भिण्ड, 20 जून। जीवन में संग ही गुण और दोष का कारक है, जीवन को गुणों का आधार बनाकर जीवन के प्रत्येक छड़ खुशियों के साथ जीना ही श्रष्ठ जीवन है। यह बात बाग वाले हनुमानजी मन्दिर पुराने थाना प्रांगण मेहगांव में चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण के दौरान कथा व्यास श्रीकृष्ण चन्द्र शास्त्री ने राजा परीक्षत की कथा का वर्णन करते हुए कही।
कथा व्यास श्रीकृष्ण चन्द्र शास्त्री ने कहा कि राजा परीक्षित को सात दिवस का समय जीवन शेष होने की खबर से संतजन, तपस्वी मुनियों ने एकत्रित होकर राजा परीक्षत की मुक्ति हेतु विषय पर गहन चिंतन, मनन के बाद भी उचित निर्णय लेना मुश्किल था कि राजा की मुक्ति का अल्प समय में उचित निर्णय लेना चाहिए, शुकदेवजी के आने पर संपूर्ण सभा खड़ी होकर स्वागत करने लगी। शुकदेवजी की उम्र 16 साल होकर उनके चहरे पर तेज और मासूमियत से आठ साल के सुकुमार अवस्था में प्रतीत हो रहे थे, शुकदेव महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन में कल्याण का मार्ग मात्र भगवान श्रीकृष्ण गोविन्द के प्रति भाव सहित आराधना होनी चाहिए। तन-मन से गोबिन्द मय होकर गोबिन्द हमारे है, हम गोबिन्द के हैं, इस प्रकार जीवन का पल-पल कल्याण के मार्ग को प्रशस्त बनाता है।
उन्होंने कहा कि भगवान का सानिध्य प्राप्त करने या भगवान का होने के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य होना जरूरी नहीं है, मात्र भगवान का होने के लिए भगवान का होना जरूरी है, सत्संग ही एकमात्र ऐसा साधन है जो सीधे भगवान से मनुष्य को जोडऩे का काम करता है, सांसारिक जीवन विष की वेल है, विष की वेल पर अमृत फल नहीं लग सकता, भगवान भाव के भूखे हैं, भगवान श्रीकृष्ण की सेवा में दुर्योधन ने नाना प्रकार के भोजन की व्यवस्था की, लेकिन भगवान का विदुरजी के घर भोजन हेतु पधारे, भोजन करने की दो ही परिस्थितियां हैं, एक भोजन करने वाले के पेट में भूख हो, दूसरे भोजन कराने वाले के हृदय में श्रद्धा हो। संत सरलता की मूर्ति होते हैं, उनकी सहजता और सरलता ही संसार में उनको बड़ा बनाती है, इसलिए मनुष्य को जीवन में सरल सहज उदार भाव में जीवन को हर पल खुशियों के साथ जीना चाहिए, यही जीवन का सार है। इस श्रीमद् भागवत कथा के परीक्षत श्रीमती रेखा-सतीश कांकर सरसेड़ हाल मेहगांव हैं।