संसद में बहस : सवाल भी सरकारी और जबाब भी

– राकेश अचल


हमने जब लिखना-पढना शुरू किया था तब संसद की कार्रवाई सजीव देखने को नहीं मिलती थी। इसके लिए या तो संसद की पत्रकार दीर्घा में बैठो या अतिथि दीर्घा में। जो दिल्ली से दूर थे उन्हे संसद समीक्षा सुनने के लिए आकाशवाणी पर रात 11 बजे तक जागना पडता था, अन्यथा संसद की कार्रवाई की रपट अगले दिन अखबार में ही पढने को मिलती थी। हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि आम आदमी घर बैठे टीवी पर और चलते-फिरते मोबाइल पर संसद की बहसें सुन और देख पाएगा।
आपको बता दें कि संसद के भीतर की कार्रवाई हमने पत्रकार बनने के दस साल बाद देखी। भारत में संसद की कार्रवाई का सीधा प्रसारण 20 अगस्त 1989 को शुरू हुआ। इस दिन पहली बार लोकसभा की कार्रवाई का रेडियो पर सीधा प्रसारण किया गया था। इसके बाद, 25 अगस्त 1994 से लोकसभा की कार्रवाई का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण शुरू हुआ। राज्यसभा की कार्रवाई का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण 7 दिसंबर 1994 से शुरू हुआ। यह प्रसारण दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से किया गया, और बाद में लोकसभा टीवी (2006 में शुरू) और राज्यसभा टीवी (2011 में शुरू) जैसे समर्पित चैनलों ने इसे और व्यापक बनाया।
इस हिसाब से पिछले 45 साल में हमने संसद में पहली बार देखा और सुना कि एक तो बहस सत्तापक्ष ने शुरू की और दूसरे खुद ही सवाल गढे और खुद ही उनके जबाब भी दे दिए। ये संसदीय इतिहास की संभवत: पहली उलटबांसी है। सरकार ने विपक्ष को बताया कि उसे कैसे सवाल करना चाहिए और कैसे नहीं? संसद के मौजूदा मानसून सत्र में बहुचर्चित, विवादित ऑपरेशन सिंदूर पर बडी ना-नुकुर के बाद सरकार बहस के लिए राजी हुई, लेकिन बहस का बिस्मिल्लाह खुद सरकार ने किया। सरकार को लगा कि एक नई परंपरा शुरू कर विपक्ष के सवलों से बचा जा सकेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
आठ घण्टे की बहस में सरकार खुद अपने तथ्यों से उलझ गई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक प्रधानाचार्य की तरह बहस का आगाज जिस ढंग से किया उससे समझ में आ गया कि वे जो भी बोल रहे हैं वो दिल से नहीं बोल रहे। उनसे जबरन बुलवाया जा रहा है। ठीक उसी तरह, जैसे कुछ दिन पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड से इस्तीफा लिखवाया गया था। राजनाथ अनाथ और असहाय नजर आ रहे थे। वे संसद के भीतर-बाहर उठाए जा रहे एक भी सवाल का जबाब नहीं दे पाए, उल्टे वे ऑपरेशन सिंदूर में लडाकू विमानों के गिराए जाने के अमरीकी दावे की यह कहकर पुष्टि कर बैठे कि ‘परीक्षा में अच्छे अंक लाते समय पेंसिल टूटती है, रबर घिसती है।’
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष और देश को ही नहीं, बल्कि अपनी पार्टी को भी निराश किया। भावुक राजनाथ सिंह ये सच भी कह गए कि भाजपा हो या कोई और दल, हमेशा सत्ता में नहीं रह सकता। हम भी नहीं रहेंगे। रक्षा मंत्री भूल गए कि मोदी-शाह की जोडी तो अगले 50 साल तक सत्ता छोडना ही नहीं चाहती। रक्षा मंत्री की रसना सूख रही थी, सफेद झूठ बोलते हुए लडखडा रही थी। उन्हें पानी पीकर उसे गीला करना पडा।
संसद में किसने क्या कहा, ये पूरे देश ने देखा और सुना है, इसलिए मैं उसकी व्याख्या नहीं करना चाहता। मैं तो ये रेखांकित करने की कोशिश कर रहा हूं कि एक घबडाई हुई सरकार कैसे अपने ही बिछाए जाल में उलझती चली जाती है। देश के अब तक के सबसे कमजोर विदेश मंत्री एस जयशंकर के बचाव में तो खुद देश के गृहमंत्री अमित शाह को खडा होना पडा। वे दुखी होकर बोले कि आपको देश के विदेश मंत्री पर भरोसा नहीं है? अब शाह को कौन यकीन दिलाए कि देश का विश्वास तो खुद प्रधानमंत्री मोदी जी खो चुके हैं। यदि ऐसा न होता तो वे आज एक बैशाखियों वाली सरकार न चला रहे होते।
मैंने एस जयशंकर से पहले विदेश मंत्री के रूप में एसएम कृष्णा, प्रणव मुखर्जी, डॉ. मनमोहन सिंह, नटवर सिंह, यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह, इन्द्रकुमार गुजराल, पीवी नरसिम्हाराव, अटल बिहारी वाजपेयी को देखा है, उनसे पहले यशवंत राव चव्हाण और स्वर्ण सिंह का नाम सुना था। लेकिन एस जयशंकर जैसा मिमियाने वाला विदेश मंत्री पहली बार देखा। जयशंकर ने सरकार को सदन के बाहर भी उलझाया और सदन के भीतर भी। आपको याद होगा कि इन्हीं विदेश मंत्री ने देश को बताया था कि ऑपरेशन सिंदूर शुरू करने से पहले पाकिस्तान को विधिवत इसकी इत्तला दी गई थी। ये ही विदेश मंत्री सदन में कह गए कि ऑपरेशन सिंदूर के चलते 9 मई को अमेरिका के उपराष्ट्रपति वेंस ने प्रधानमंत्री मोदी को बताया था कि पाकिस्तान भारत पर बडा हमला करने वाला है। इसका मतलब साफ है कि भारत सरकार की इंटेलीजेंस को कुछ पता ही नहीं था।
बहरहाल आप इस बहस के अंत में देश के प्रधानमंत्री का एक खीज भरा प्रवचन जरूर सुनेंगे, जिसमें विपक्ष के किसी प्रश्न का उत्तर नहीं होगा। प्रधानमंत्री सदन में कांग्रेस के अतीत का मुजाहिरा करेंगे, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर, सीज फायर को लेकर न ट्रंप का नाम अपनी जबान पर आने देंगे और न चीन का। संसद अब झूठ कहने और झूठ सुनने के लिए अभिशप्त हो गई है। संसद में अब एक भी ऐसा सूरमा नहीं है जो देश के धमकीबाज मंत्रियों से कह पाए कि चुप हो जाओ, जितनी तुम्हारी उम्र है उससे ज्यादा हमने राजनीति की है। अब सदन में न चंद्रशेखर हैं, न लालू यादव। न मुलायम सिंह हैं न शरद यादव।