रामदास महाराज ने 14 साल की उम्र में ली थी गुरु दीक्षा

– गुरू ने नहीं करने दी नौकरी और बना दिया दंदरौआ धाम का महंत

भिण्ड, 09 जुलाई। जिले के दंदरौआ धाम के महंत 1008 महामण्डलेश्वर रामदास महाराज का बचपन से ही आध्यात्म में लगाव था। उन्होंने 14 साल की उम्र में धाम के उस समय के महंत पुरुषोत्तम दास महाराज से गुरू दीक्षा ग्रहण की। बाद में पढाई जारी रखी और अंतत: उन्हें इसी धाम का महंत पद सौप दिया गया।
गुरू पूर्णिमा के पावन महोत्सव पर महामंडलेश्वर रामदास महाराज ने अपने संत जीवन की यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि बाल अवस्था में मात्र 14 साल की उम्र में अपने गृह गांव मंडरोली से प्राथमिक शिक्षा लेने के बाद सन 1974 में गुरू दीक्षा लेने के लिए दंदरौआ धाम पहुंचे। जहां गुरू पुरुषोत्तम दास महाराज ने उन्हें दीक्षा देकर अपना शिष्य स्वीकार किया। इसके बाद उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा। माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के बाद उन्होंने संस्कृत विद्यालय ग्वालियर से संस्कृत व्याकरण में आचार्य उपाधि ली। उसके बाद उन्होंने संस्कृत विद्यालय ग्वालियर से ही ज्योतिषाचार्य उपाधि में प्रथम स्थान प्राप्त किया। तत्पश्चात रामदास महाराज ने एमजेएस कॉलेज भिण्ड से संस्कृत से एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की।

इसके बाद जहां से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की उसी संस्कृत विद्यालय ग्वालियर में ज्योतिषाचार्य के पद पर उनका चयन हो गया, लेकिन गुरु पुरुषोत्तम दास महाराज ने नौकरी करने जाने नहीं दिया। गुरू महाराज ने उनसे कहा कि हमारे ऊपर से निकाल कर ही नौकरी करने जा सकते हो। तब रामदास जी महाराज ने गुरू आदेश स्वीकार कर नौकरी का विचार त्याग दिया और दंदरौआ धाम की सेवा में जुट गए। सन् 1984 में रामदास महाराज के गुरू पुरुषोत्तम दास महाराज ने दंदरौआ धाम के मंहत के पद पर विराजमान कर दिया। इस बात की जानकारी उनके माता-पिता को भी नहीं दी गई। बाद में जब उनके माता-पिता को इसका पता चला तो उन्होंने भी अपनी स्वीकृति दे दी। यहां बता दें कि महंत रामदास महाराज तीन भाईयों और दो बहनों में सबसे छोटे भाई हंै। आध्यात्मिक प्रवृत्ति के चलते उन्होंने शादी भी नहीं की।
2003 में मिली महामण्डलेश्वर की उपाधि
दंदरौआ धाम के महंत रामदास महाराज को सन 2003 में नासिक महाकुंभ में अयोध्या स्थित राम मन्दिर ट्रस्ट के अध्यक्ष नृत्य गोपालदास महाराज द्वारा महामण्डलेश्वर की उपाधि प्रदान की गई।