पूर्व प्रधानमंत्री का अंतिम संस्कार विवाद : सरदार की नहीं, सरकार की मिट्टी पलीत

– राकेश अचल


देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अपनी जीवन यात्रा के पूर्ण होने के बाद भी मौन ही रहे, उनके अंतिम संस्कार स्थल को लेकर देश की सरकार ने जो संकीर्णता दिखाई उससे दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री सरदार डॉ. मनमोहन सिंह की नहीं, बल्कि देश की सरकार की मिट्टी पलीत हो गई। डॉ. मनमोहन सिंह की पार्थिव देह का अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर हुआ तो भी उन्हें कोई फर्क नहीं पडा, लेकिन ये सवाल जरूर खडा हो गया कि देश के किसी पूर्व प्रधानमंत्री के अंतिम संस्कार को लेकर सरकार के पास कोई मान्य नियमावली है या सब कुछ मनमानी से होता है?
कांग्रेस ने डॉ. मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार ऐसे स्थल पर करने के लिए सरकार से आग्रह किया था जहां उनका स्मारक बनाया जा सके, लेकिन सरकार ने कांग्रेस का आग्रह नहीं माना और दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री का अंतिम संस्कार एक सामान्य नागरिक की तरह निगम बोध श्मशान में करा दिया। सरकार का हाथ कोई रोक नहीं सकता और डॉ. मनमोहन सिंह ने ऐसी कोई वसीयत छोडी नहीं थी जिसमें उन्होंने अपने अंतिम संस्कार के लिए कोई खास स्थान की इच्छा जताई होती। ऐसे में सरकार का निर्णय ही अंतिम होना था सो हुआ।
मुझे याद है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का अंतिम संस्कार 17 अगस्त 2018 को विजयघाट पर किया गया था, लेकिन तब अटलजी की पार्टी की सरकार थी और कल जब डॉ. मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार किया गया तब उनकी पार्टी की सरकार नहीं थी, अन्यथा वे भी किसी विजय घाट पर ही अग्नि की समर्पित किए जाते। दुर्भाग्य ये है कि संकीर्णता का प्रदर्शन करने वाली सरकार अब डॉ. मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के फैसले पर खेद प्रकट करने के बजाय पूरी बेशर्मी से राजनीति कर रही है। पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर छुटभैया भाजपा नेता तक अपनी सरकार के फैसले का बचाव करने में लगे हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए स्थल के चयन और उनके नाम पर स्मारक को लेकर सियासी घमासान मच गया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने जहां केन्द्र सरकार पर पूर्व प्रधानमंत्री की स्मृति का ‘अपमान’ करने का आरोप लगाया। वहीं बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पलटवार करते हुए कहा कि राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पूर्व प्रधानमंत्री के दुखद निधन पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं।
नड्डा ने कहा कि केन्द्र सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए जगह आवंटित की थी और उनके परिवार को इसकी जानकारी भी दी थी। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस की ऐसी ओछी सोच की जितनी भी निंदा की जाए कम है। कांग्रेस, जिसने मनमोहन सिंह को उनके जीवित रहते कभी वास्तविक सम्मान नहीं दिया, अब उनके सम्मान के नाम पर राजनीति कर रही है।’ इससे पहले कांग्रेस ने केन्द्र सरकार पर देश के पहले सिख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए उचित स्थान न देने का आरोप लगाया है, जहां बाद में उनका स्मारक बनाया जा सकता था। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी ने केन्द्र सरकार ने मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर करवाकर ‘भारत माता के महान सपूत और सिख समुदाय के पहले प्रधानमंत्री’ का सरासर अपमान किया है।
दुनियाभर में आज तक सभी पूर्व राष्ट्र प्रमुखों की गरिमा का आदर करते हुए उनके अंतिम संस्कार अधिकृत समाधि स्थलों में किए जाते हैं, ताकि हर व्यक्ति बिना किसी असुविधा के अंतिम दर्शन कर श्रद्धांजलि दे पाए। लेकिन इस मुद्दे पर सियासत केवल भारत में होती है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने आरोप लगाया कि मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए यथोचित स्थान उपलब्ध नहीं करा कर सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री के पद की गरिमा, मनमोहन सिंह जी की शख्सियत, उनकी विरासत और खुद्दार सिख समुदाय के साथ न्याय नहीं किया। आपको बता दें की राष्ट्रिय स्मारक स्थल के लिए यूपीए सरकार के जमाने में 2013 में अलग से जिस जगह का आवंटन किया गया था वहीं पर 2018 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का अंतिम संस्कार किया गया था, लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर कराया गया।
सरकार के फैसले से डॉ. मनमोहन सिंह के परिजन दुखी हैं या नहीं, लेकिन पूरा सिख समुदाय अपने आपको अपमानित अनुभव कर रहा है। दु:ख की बात तो ये है कि अपनी सरकार के गलत फैसले के खिलाफ केन्द्रीय मंत्रिमण्डल के अकेले सिख मंत्री हरदीप सिंह पुरी भी कुछ नहीं बोले। बोलते कैसे, इतना साहस ही नहीं था उनमें। वे कोई डॉ. मनमोहन सिंह थोडे ही हैं।
लगता है कि सरकार डॉ. मनमोहन सिंह की मिट्टी पलीत करना चाहती थी, किन्तु उसके फैसले से खुद सरकार की मिट्टी पलीत हो गई। पूरी दुनिया ने देखा कि निगम बोध घाट पर कैसे प्रबंध थे। डॉ. मनमोहन सिंह के परिजनों तक के बैठने का इंतिजाम नहीं था। दूरदर्शन को छोड किसी दूसरे टीवी चैनल के कैमरे अंदर नहीं जाने दिए गए। डॉ. मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए स्थल चयन के पीछे सरकार की कौन सी मानसिकता थी इसका आंकलन समय करेगा, किन्तु अब ये सवाल भी मुंह बांए खडा है कि क्या भविष्य में भी देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के अंतिम संस्कार के समय इसी तरह के विवाद खडे होंगे या इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट प्रोटोकॉल तय किया जाएगा? क्योंकि मरना तो सभी को है, कोई अमरौती खाकर नहीं आया और कोई भला आदमी मरने से पहले अपने अंतिम संस्कार के लिए वसीयत लिखने से रहा। भाजपा कि सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी का अंतिम संस्कार विजयघाट पर कराया था और अब आठ साल बाद 20 करोड की लागत से स्मारक बनवा रही है ग्वालियर में।