– राकेश अचल
भाजपा के कुशासन से देश को मुक्त करने के लिए विपक्षी एकता की सबसे बडी धुरी कांग्रेस है। कांग्रेस यदि अपने पारम्परिक रास्ते से भटकी तो रास्ते में ही अटक जाएगी। आम चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन के साथी आम आदमी पार्टी के साथ उसका व्यवहार और मध्य प्रदेश में कांटे से कांटा निकालने की नीति पर चलना कांग्रेस के लिए घातक हो सकता है। मप्र में ककांग्रेस अचानक धर्मभीरु होती दिखाई दे रही है, जबकि दिल्ली में कांग्रेस प्रवक्ता अलका लाम्बा ने ‘आप’ के खिलाफ सभी सात सीटों पर अपने प्रत्याशी खडे करने की बात कही है। हालांकि कांग्रेस हाईकमान ने लाम्बा के बयान को खारिज कर दिया है।
इस समय देश में पांच विधानसभाओं के चुनावों के साथ ही आम चुनावों की तैयारियां भी सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं। सबसे ज्यादा तैयारी भाजपा को करना पड रही है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने आप खुद को तीसरे टर्म का प्रधानमंत्री घोषित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीसरे टर्म की घोषणा यदि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा या आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत करते तो और बात होती। लेकिन लगता है कि मोदी अब पार्टी और संघ दोनों से ऊपर उठ चुके हैं। वे जो कहेंगे पार्टी और संघ के लिए अकाट्य होगा। मोदी जी की वापसी में मप्र की अहम भूमिका रहने वाली है।
बात कांग्रेस की चल रही थी। कांग्रेस ने मप्र में सत्ता में वापस आने के लिए कर्नाटक का पैटर्न छोडकर अपने आपको भगवा रंग में रंगने की कोशिश शुरू कर दी है। प्रदेश के सबसे बचकाने किशोर बाबा धीरेन्द्र शास्त्री को छिंदवाडा बुलाकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक तरह से अपने और कांग्रेस के पांवों पर कुल्हाडी मार ली है। धीरेन्द्र शास्त्री उर्फ बागेश्वर धाम के सुप्रीमो घोषित तौर पर भाजपा के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। वे भाजपा के प्रिय बाबा हैं, क्योंकि आज-कल सबसे ज्यादा भीड उन्हीं की और आकर्षित हो रही है। भीड को आकर्षित करने के लिए ही कमलनाथ धीरेन्द्र को आपने यहां ले गए। उनकी आरती उतारी, पांव पखारे। यही काम भाजपा कर रही है। भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से लेकर उनके मंत्रिमण्डल के तमाम सदस्य धीरेन्द्र की चुंबक से भीड को खींचने का काम कर रहे हैं।
कमलनाथ हालांकि अघोषित रूप से धार्मिक आदमी हैं। उन्होंने अपने यहां हनुमान जी का विशाल मन्दिर बनवा रखा है। लेकिन वे बजरंगी नहीं हैं। उनकी तरह ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भगवाधारियों का सम्मान करने वालों में अग्रणीय रहे हैं, किन्तु वे भी बजरंगी नहीं है। बजरंग दल के हुडदंग के वे सदैव खिलाफ रहे हैं, कमलानाथ के भक्तिभाव की वजह से दिग्विजय सिंह को भी बजरंग दल के प्रति अपने स्वर नरम करने पड रहे है। उन्होंने ऐलान कर दिया है कि यदि मप्र में कांग्रेस की सरकार बनी तो बजरंग दल पर पाबंदी नहीं लगाई जाएगी, जबकि पहले इसके उल्ट बात थी। कांग्रेस के नेता बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात अक्सर किया करते थे।
कांग्रेस की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष दल की है। कांग्रेस ने कभी हिन्दुत्व का आसरा नहीं लिया। कांग्रेस चाहती तो अयोध्या में रामलला का ताला खुलवाने का श्रेय ले सकती थी, किन्तु कांग्रेस ने अपने धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को बनाए रखने के लिए ये सब नहीं किया। कांग्रेस के नेता व्यक्तिगत रूप से भगवाधारियों का इस्तेमाल अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में करते रहे हैं, किन्तु पार्टी स्तर पर इनका इस्तेमाल कभी नहीं किया गया, लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है। धंधकधोरी जो बाबा भाजपा के एजेंडे पर काम कर रहा हैं, वो ही बाबा कांग्रेस के मंच पर दिखाई दे रहा हैं। ये अंतर्विरोध मप्र में कांग्रेस को भारी पड सकता है। कांग्रेस यदि धर्म निरपेक्षता का रास्ता छोडेगी तो भटक जाएगी। इसका भान अभी शायद कांग्रेस को नहीं है।
आपको याद होगा की कांग्रस ने हाल ही में कर्नाटक विधानसभा का चुनाव बजरंग दल के हंगामे के कारण भी जीता, हालांकि कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने जनता को जो पांच गारंटियां दी थीं, वे ही जीत का असल आधार बनी थीं। मप्र में भी कांग्रेस इसी रास्ते पर चली है। कांग्रेस की प्रमुख नेता प्रियंका गांधी ने मप्र की दो आम सभाओं में अपनी इन्हीं पांच गारंटियों को ही जनता के सामने रखा है। बावजूद इसके कमलनाथ धर्म का सहारा ले रहे हैं। दरअसल कमलनाथ को लगता है कि भाजपा की धर्म की तुरुप कहीं चल न निकले, ये उनका डर है। जबकि हाल के अनेक विधानसभा चुनावों के नतीजे बता चुके हैं कि भाजपा का धर्म का पत्ता अब चल नहीं रहा है।
मप्र के इतर राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेताओं ने अभी तक धर्म का सहारा नहीं लिया है और ये अच्छी बात है। ये सही है कि विश को विश से मारा जा सकता है। कांटे से कांटा निकाला जा सकता है। किन्तु जब सियासत के पास दूसरे रास्ते हों तो धर्म का सहारा लेने की आवश्यकता क्या है? कांग्रेस के मुखिया को लगता है कि हर हाल में आम चुनाव जीतने के लिए कमर कसे खडी भाजपा कहीं इस बार घेरकर कहीं उनके बेटे को भी उसी तरह न हरा दे , जिस तरह की पिछले आमचुनाव में गुना सीट से सिंधिया को हराया गया था। सिंधिया परिवार के लिए गुना लोकसभा सीट अजेय थी। छिंदवाडा की सीट भी अब तक अजेय है कमलनाथ की वजह से।
सत्ता में कौन आये, कौन जाये ये जनता तय करती है। लेखक या पत्रकार किसी राजनितिक दल का भविष्य तय नहीं करते। वे केवल राजनितिक दलों के क्रिया कलाप की समीक्षा कर सकते हैं। कांग्रेस को याद रखना चाहिए कि वो देश की सत्ता में किसी रामरथ पर सवार होकर नहीं पहुंची। कांग्रेस देश की सत्ता तक जन-आंदोलनों के जरिये पहुंची है। केन्द्र में भी और राज्यों में भी। कांग्रेस पर भले ही तुष्टिकरण का संगीन आरोप लगता हो, किन्तु जब तक उसने अल्प संख्यकों के हितों की सुरक्षा की गारंटी दी तब तक उसे कोई नुक्सान नहीं हुआ। अल्प संख्यकों के अलावा दलित, आदिवासी भी कांग्रेस के साथ उसके धर्म निरपेक्ष व्यवहार की वजह से रहे। कांग्रेस ने जैसे ही अपना रास्ता बदलने की कोशिश की उसकी तमाम पूंजी छिटक कर दूसरे राजनीति दलों की झोली में चली गई। आज कांग्रेस की झोली में पहले जैसा वजन नहीं है।
दो आम चुनावों में पराजय का स्वाद चख चुके विपक्ष को संगठित कर सत्ता में लौटने के लिए कांग्रेस के पास ये स्वर्ण अवसर हैं। भाजपा यदि बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण के जरिये अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाने में लगी है, तो कांग्रेस को नवगठित विपक्षी मोर्चे के साथ तुष्टिकरण के आरोपों से भयभीत हुए बिना अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों को साथ लेकर काम करना चाहिए। कांग्रेस ने यदि अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि से रत्तीभर समझौता किया तो तय मानिये कि कांग्रेस घाटे में चली जाएगी। वक्त है अभी कि कांग्रेस अपनी गलतियों को सुधर ले, अन्यथा कांग्रेस के साथ चोट हो जाएगी। अविश्वास, भय और आतंक के मौजूदा वातावरण में कांग्रेस ही है, जो देश को परिवर्तन के रास्ते पर ला सकती है। यदि वो भी भाजपा की तरह अपने आपको भगवा रंग में बदलने की गलती करेगी। समस्या ये है कि कांग्रेस में भी नरेन्द्र मोदी की ही तरह अनेक जिद्दी नेता हैं, जो अपनी अकड की वजह से कांग्रेस का बना-बनाया खेल बिगाड सकते हैं।
मुझे लगता है कि कांग्रेस की बाबाओं के फेर में पडने की कोशिश गलत दांव साबित हो सकती है। कांग्रेस के भगवा पहनने से जनता भ्रमित हो सकती है। जनता को भ्रम से बचना आज की सबसे बडी आवश्यकता है। कांग्रेस इस समय न पैसे के मामले में भाजपा का मुकाबला कर सकती है और न धुर्वीकरण से। भाजपा के पास अकूत पैसा भी है और धुर्वीकरण का तजुर्बा भी। इससे मुकाबला केवल और केवल धर्मनिरपेक्षता के औजार से कर सकती है।