जिस घर में नारी का सम्मान नहीं वहां भगवान वास नहीं करते : महंत रामभूषण दासजी

ग्राम कुरथरा में चल रहा है श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन

भिण्ड, 10 दिसम्बर। ग्राम कुरथरा में श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान कथा में श्रीश्री 1008 महामण्डलेश्वर श्री रामभूषण दास महाराज द्वारा कथा का तृतीय अध्याय का वर्णन किया गया। कथा में भगवान कृष्ण ने एक बार अपनी धर्मपत्नी रुक्मिणी जी के सौंदर्य का जो अहंकार था, उसको भी तोड़ दिया।
महाराजश्री ने कथा में बताया भगवान कृष्ण के समीप एक बार रुक्मिणी जी बैठी थीं, तभी एक राजा ने आकर उनको भगवान की दासी का नाम दे दिया। जिसको सुनकर रुक्मिणी जी स्वयं आस्चर्य चकित हो गई, मैं तीनों लोक में ऐश्वर्य से भरी हुई हूं और काफी सुंदर हूं, इसी कारण भगवान स्वयं मुझे मिले है, इसी अहंकार को तोडऩे के लिए भगवान ने ऐसी लीला का वर्णन किया।उन्होंने कहा कि भगवान ने गीता में उपदेश दिया है, व्यक्ति को कभी भी सौन्दर्य, ऐश्वर्य, ताकत, खजाने माल पर अभिमान नहीं करना चाहिए। ना ही किसी व्यक्ति का अपमान करना चाहिए, ऐसे व्यक्ति जो भगवान का भजन नहीं करते भगवान के दिए हुए ऐश्वर्य, माल आन-बान-शान का सही इस्तेमाल नहीं करते हैं, तो उनको इसका पाप भोगना पड़ेगा। महाराज जी ने कहा कि कभी सूती कपड़े पर बैठकर ाम के जाप का उच्चारण नहीं करना चाहिए, ऐसा करने से व्यक्ति के घर में दरिद्रता आती है। नाम का जाप नाही चलते हुए करना चाहिए, भगवान के नाम का जाप मनुष्य को दाव के आसन पर बैठकर करना चाहिए।
महाराज जी ने व्यास गद्दी से कहा कि आज भी हम महिलाओ पर अत्याचार कर रहे है उनका शोषण कर रहे है जब की यह सब करने से भगवान हमसे गुस्सा होता है भगवान हमारी नही सुनता है और हम इस्वर से मांगते है पर हमारा कल्याण नहीं होता है, देव लोक में अगर बात करो तो नारी का सम्मान सर्व अधिक प्रथम स्थान पर दिया गया है, शेर पर सवार माँ दुर्गा जिन्होंने बता दिया कि कितना बड़ा भी शेर क्यों न हो पर नारी के सामने वह भी कमजोर हो जाता है, भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि जिस घर में नारी का सम्मान नहीं उस घर में भगवान निवास नहीं करते है, भगवान की कृपया और भगवान की प्राप्ति के लिए मनुष्य को हमेशा साधु के आभूषण का प्रयोग करना चाहिए, साधु के आभूषणों को ग्रहण करने से ही मनुष्य सदमार्ग ईश्वर भक्ति की शरण में जा सकता है, साधु के आभूषण, सहज सरल स्वभाव, दयालु, माया मोह का त्याग करना चाहिए।