– राकेश अचल
आज का अखबार हाथ में लेते ही पहले तीन पृष्ठ पुष्य नक्षत्र में स्वर्ण आभूषण खरीदने की सलाह वाले विज्ञापन देखकर माथा ठनक गया। आज जब सोना 1.21 लाख रुपए तक पहुंच गया है तब ऐसे विज्ञापन प्रमाणित करते हैं कि देश की आधी आबादी भले ही सरकार की कृपा पर जिंदा हो, लेकिन आबादी के एक खास हिस्से के पास मंहगे से मंहगी धातु सोना-चांदी खरीदने की कूबत अभी बांकी है।
दुनिया में बाजार तो सब जगह हैं लेकिन ज्योतिषी नहीं। भारत में बाजार और ज्योतिषियों का अनूठा गठजोड़ है, जो उपभोक्ता को तो लूटता हैं लेकिन अपनी जेबें भर लेता है। आज-कल दीपावली का त्यौहार दस्तक दे रहा है, मीडिया में अंधाधुंध विज्ञापन आ रहे हैं, साथ ही आ रही हैं ज्योतिषियों की मुफ्त बिना मांगी सलाहें कि कब क्या खरीदें और क्या नहीं? ज्योतिष और भाग्य पर भरोसा करने वाले हमारे देश में ज्योतिषी उपभोक्ता की नब्ज पहचानता है और जब जरूरत पड़ती है उसे दबाकर निर्माता और दुकानदार का कल्याण करा देता है। इसके लिए बाकायदा ज्योतिषियों ने ग्रह-नक्षत्रों की पहचान कर रखी है। जैसे ही त्यौहार आते हैं विज्ञापनों के साथ ज्योतिषियों की सलाह मीडिया का मुख्य हिस्सा बन जाते हैं, जितने विज्ञापन उतनी ज्योतिषीय सलाहें आपके सामने परोस दी जाती हैं। ज्योतिषी आपको बताता है कि कब, क्या चीज खरीदने से आपको लाभ होगा और क्या खरीदने से नुक्सान?
खरीददारी के लिए ज्योतिषियों ने धनतेरस और पुष्य नक्षत्र को अपना हथियार बना रखा है, वे कहते हैं कि पुष्य नक्षत्र में सोना, चांदी और हीरा खरीदने से भाग्योदय होता है। अरे भाई जो इतनी मंहगी धातुएं खरीदने की कुब्बत रखता होगा उसका तो भाग्य वैसे ही उदित माना जाएगा, लेकिन नहीं कुछ लोग ज्योतिषियों की सलाह पर मंहगी धातुएं खरीदने के लिए अपनी प्राथमिकताएं तक बदल डालते हैं, ताकि भाग्योदय हो सके। अब मंहगी धातुएं सचमुच भाग्य उदित कर पाती हैं या नहीं, कोई नहीं जानता।
हमारे पुरखे बताते थे कि पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला, ऊर्जा व शक्ति प्रदान करने वाला। मतांतर से पुष्य को पुष्प का बिगड़ा रूप मानते हैं। पुष्य का प्राचीन नाम तिष्य शुभ, सुंदर तथा सुख संपदा देने वाला है। विद्वान इस नक्षत्र को बहुत शुभ और कल्याणकारी मानते हैं। विद्वान इस नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह गाय का थन मानते हैं। उनके विचार से गाय का दूध पृृथ्वी लोक का अमृ्त है। पुष्य नक्षत्र गाय के थन से निकले ताजे दूध सरीखा पोषणकारी, लाभप्रद व देह और मन को प्रसन्नता देने वाला होता है।
वर्ष 2025 में पुष्य नक्षत्र 14 अक्टूबर मंगलवार को शुरू होकर 15 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे समाप्त होगा। यह मंगल पुष्य (मंगलवार को) और बुध पुष्य (बुधवार को) योग का संयोजन है, जो खरीदारी और निवेश जैसे शुभ कार्यों के लिए विशेष रूप से अनुकूल है। मंगलवार को मंगल पुष्य नक्षत्र के दौरान जमीन, संपत्ति और वाहन खरीदने के लिए शुभ माना जाता है, क्योंकि मंगल भूमि का कारक है। 15 अक्टूबर बुधवार को बुध पुष्य नक्षत्र के तहत, ज्ञान, शिक्षा, व्यापार और निवेश से संबंधित कार्य अधिक फलदायी होते हैं। इस दिन सोना-चांदी भी खरीदना शुभ होता है।
ज्योतिषी कहते हैं कि ये नक्षत्र राशि में 3 डिग्री 20 मिनट से 16 डिग्री 40 मिनट तक होती है। यह क्रांति वृ्त्त से 0 अंश 4 कला 37 विकला उत्तर तथा विषुवत वृ्त्त से 18 अंश 9 कला 59 विकला उत्तर में है। इस नक्षत्र में तीन तारे तीर के आगे का तिकोन सरीखे जान पड़ते हैं। बाण का शीर्ष बिन्दु या पैनी नोंक का तारा पुष्य क्रांति वृ्त्त पर पड़ता है। पुष्य को ऋग्वेद में तिष्य अर्थात शुभ या मांगलिक तारा भी कहते हैं। सूर्य जुलाई के तृतीय सप्ताह में पुष्य नक्षत्र में गोचर करता है। उस समय यह नक्षत्र पूर्व में उदय होता है। मार्च महीने में रात्रि 9 बजे से 11 बजे तक पुष्य नक्षत्र अपने शिरोबिन्दु पर होता है। पौष मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है। इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है।
ऐसी मान्यता है और इसे स्थापित भी किया गया है कि 27 नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र है पुष्य। सभी नक्षत्रों में इस नक्षत्र को सबसे अच्छा माना जाता है। सभी नए सामान की खरीदारी, सोना, चांदी की खरीदारी के लिए पुष्य नक्षत्र को सबसे पवित्र माना जाता है। ऐसा क्यों हैं? चंद्रमा धन का देवता है, चंद्र कर्क राशि में स्वराशिगत माना जाता हैं। बारह राशियों में एकमात्र कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा है और पुष्य नक्षत्र के सभी चरणों के दौरान ही चंद्रमा कर्क राशि में स्थित होता है। इसके अलावा चंद्रमा अन्य किसी राशि का स्वामी नहीं है। इसलिए पुष्य नक्षत्र को धन के लिए अत्यन्त पवित्र माना जाता है।
पुष्य नक्षत्र की ही तरह धन तेरस को भी ज्योतिषियों ने बाजार के लिए महत्वपूर्ण बना दिया है। आप इस मौके पर धातुएं ही नहीं अब इलेक्ट्रानिक उपकरण, फर्नीचर भी खरीद सकते हैं। मजे की बाते ये है कि जब ज्योतिष शास्त्र की रचना की गई थी तब न कोई इलेक्ट्रानिक उपकरण थे और न दूसरी चीजें, लेकिन ज्योतिषी होते हैं महान, वे सके लिए सब रास्ते तलाश देते हैं तलाशते आ रहे हैं। वैसे धनतेरस कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धनवंतरि का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धन त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। जैन आगम में धनतेरस को धन्य तेरस या ध्यान तेरस भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिए योग निरोध के लिए चले गए थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुए। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है, जिसके संभव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है, जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धनवंतरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं, उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।
नक्षत्रों और बाजार के रिश्तों के बारे में हमारा काम बताने का था सो बता दिया, अब आपकी आप जानें कि कब, क्या और क्यों खरीदना है? मेरा सुझाव तो ये है कि जब जेब भारी हो तभी कोई चीज खरीदना चाहिए, क्योंकि रुपए से बड़ा और शुभ कोई मुहूर्त नहीं होता, दुनिया में अगर यकीन न हो तो किसी अक्लमंद से बूझ लीजिए।