देश से ज्यादा विदेश में क्यों बोलते हैं मुख्य न्यायाधीश?

– राकेश अचल


भरी इजलास में अपनी ओर हवा में उछाला हुआ जूता देखकर अविचलित रहे मुख्य न्याधीश जस्टिस बीआर गवई उन गिने लोगों में शुमार किए जा सकते हैं जो राहुल गांधी जैसे हैं। जस्टिस गवई मुख्य न्यायाधीश होकर देश से ज्यादा विदेश में ज्यादा मुखर होकर बोलते हैं, ठीक राहुल गांधी की तरह। जस्टिस गव ई भी सनातनियों और अंधभक्तों के निशाने पर उसी तरह हैं जैसे राहुल हैं।
गत दिनों वियतनाम के हनोई में आयोजित लॉ एशिया सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि न्यायाधीश अपने निर्णयों में जिन सिद्धांतों को व्यक्त करते हैं, वे न्यायालय की प्रशासनिक नीतियों में भी परिलक्षित हों। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि वकीलों और न्यायाधीशों की यह जिम्मेदारी है कि वे न्याय प्रणाली को मजबूत करें। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसकी पहुंच सिर्फ महानगरों तक ही सीमित न रहे, बल्कि देश के दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए भी सुलभ हो। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि न्यायाधीश अपने निर्णयों में जिन सिद्धांतों को व्यक्त करते हैं, वे न्यायालय की प्रशासनिक नीतियों में भी परिलक्षित हों।
उन्होंने कहा, मैं यह बताना चाहता हूं कि जब मैंने मई में भारत के प्रधान न्यायाधीश का पदभार ग्रहण किया था, तो मेरी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक यह सुनिश्चित करना था कि न्यायालय में प्रशासनिक पदों की भर्ती में सकारात्मक कार्रवाई न केवल कागजों में, बल्कि पूरी तरह से लागू हो। मैंने निर्देश दिया कि हाशिये पर पड़े समुदायों को सभी प्रशासनिक नियुक्तियों में उनका उचित हिस्सा मिले और इन नीतियों को सुसंगत और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाए।
गौतम बुद्ध, महात्मा गांधी और बीआर अम्बेडकर द्वारा देखा गया समानता का सपना भारत के संविधान में निहित था और इसने उन लाखों लोगों के भाग्य का रुख मोड़ दिया, जो ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर थे और अपने मूल अधिकारों से वंचित थे। उन्होंने कहा कि वकीलों को मातृत्व अवकाश या समय की कमी जैसी धाराणाओं के कारण महिलाओं को नियुक्त करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
इससे पहले मॉरीशस में भी जस्टिस गवई ने कहा था कि भारत में कानून का राज है बुलडोजर का नहीं। जबकि सब धड़ल्ले से बुलडोजर चला रहे हैं। जस्टिस गवई इस समय भगवान विष्णु की प्रतिमा पर की गई टिप्पणी को लेकर सनातन के निशाने पर हैं। सवाल ये कि जस्टिस गवई भारत में मुखर क्यों नहीं होते। क्या वे सनातनियों और भाजपाईयों से खौफ खाते हैं या फिर जान-बूझकर इन सबकी अनदेखी कर रहे हैं। क्या इस मुद्दे पर गवई साहब 23 नवंबर को सेवानिवृत्त होने बाद बोलेंगे? क्या संविधान बचाने की राहुल गांधी की राष्ट्रव्यापी मुहिम को आने वाले कल में जस्टिस गवई का साथ मिलेगा?
गौरतलब है कि जस्टिस बीआर गवई की मां कमला ताई ने जब से आरएसएस के शताब्दी हमारोह का निमंत्रण ठुकराया है तभी से संघ भी गवई को अघोषित रूप से अपना द्रोही मानने लगा है।