– राकेश अचल
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह बहुसंख्यक समाज को धर्मशाला का नाम लेकर डराना चाहते हैं, लेकिन भारत के लोग अच्छी तरह जानते हैं कि देश में धर्मशालाएं तभी बनती हैं जब कोई धर्मभीरू भामाशाह आगे आता है। भारत की एक भी धर्मशाला सरकार ने नहीं बनवाई, हां मुगल काल में बड़े पैमाने पर सराय बनीं, मिसाल के तौर पर मुगल सराय।
शाह देश में मुसलमानों की आबादी को लेकर दिन-रात परेशान रहते हैं और ऐसे कुतर्क देते हैं कि सुनकर हंसी आ जाए। शाह ने कहा कि देश में मुस्लिमों की आबादी पाकिस्तान और बांग्लादेश से घुसपैठ के कारण बढ़ रही थी। शाह के मुताबिक देश में मुस्लिम आबादी में 24.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि हिन्दू आबादी में 4.5 प्रतिशत की कमी आई है। भोलेपन के साथ शाह साहब कहते हैं कि मैं यह प्रजनन दर की वजह से नहीं हुआ है। यह घुसपैठ की वजह से हुआ है।
अमित शाह उन शाखामृगों में से हैं जिन्होंने नागपुर से मुगली घुट्टी पी है। वे कहते हैं कि भारत का विभाजन धर्म के कारण हुआ, भारत के दोनों ओर पाकिस्तान बना और उन दोनों ओर से घुसपैठ हुई, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में इतना परिवर्तन हुआ। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का घुसपैठ को लेकर अपना शोध है शायद। इसीलिए वे घुसपैठिए और शरणार्थी के बीच अंतर को रेखांकित भी करते हैं और कहते हैं कि शरणार्थी अपने धर्म को बचाने के लिए भारत आता है, जबकि घुसपैठिया धार्मिक उत्पीड़न के कारण नहीं, बल्कि आर्थिक और अन्य कारणों से अवैध रूप से सीमा पार करता है। अगर दुनिया में कोई भी व्यक्ति जो यहां आना चाहता है और उसे ऐसा करने दिया जाये, तो हमारा देश एक धर्मशाला बन जाएगा।
शाह को हिमाचल की गोद में बसी धर्मशाला से डर नहीं लगता लेकिन वे दिल्ली की काले खां सराय से डरते थे, इसीलिए अब काले खां सराय बिरसा मुंडा के नाम लिखी जा चुकी है। शाह साहब जबरन इस मुद्दे को मताधिकार से जोड़ रहे हैं। क्या वे बता सकते हैं कि इस देश में किसी शरणार्थी या घुसपैठिये को मताधिकार अब तक दिया गया? शाह की इस बात का मै समर्थन करता हूं कि देश में मतदान का अधिकार केवल नागरिकों को ही उपलब्ध होना चाहिए। लेकिन क्या सरकार ने अब तक ऐसा कोई आंकड़ा दिया है कि भारत में कितने घुसपैठियों या शरणार्थियों ने कूटरचना से भारत में मताधिकार हासिल किया है?
शाह कहते हैं कि घुसपैठ और निर्वाचन आयोग की कवायद एसआईआर को राजनीतिक नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। लेकिन क्यों? भारत में जब एस आई आर के पीछे राजनीति हो रही है तो उसे किसी और नजरिये से कैसे देखा जा सकता है? वे जबरन एस आई आर को एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में लगे हैं। गृह मंत्री कहते हैं कि कांग्रेस एसआईआर के मुद्दे पर इन्कार की मुद्रा में चली गई है। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया विपक्षी पार्टी की सरकार के दौरान भी हुई थी। लेकिन शाह क्या बता सकते हैं कि क्या कांग्रेस ने इस मुद्दे पर कभी राजनीति की?
शाह का आरोप है कि विपक्ष विरोध करने की नीति अपना रहा है, क्योंकि उनके वोट बैंक कट रहे हैं। जाह है कि सरकार घुसपैठियों के नहीं विपक्ष के वोट काटने के लिए एसआईआर का इस्तेमाल कर रही है। ये सच है कि मतदाता सूची की गड़बड़ियों को दूर करना निर्वाचन आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है। लेकिन केंचुआ ये काम किसी राजनीतिक दल के इशारे पर करे तो इसे कैसे बर्दास्त किया जा सकता है?
एसआईआर को लेकर यदि कोई समस्या न होती तो बड़े पैमाने पर लोग अदालत क्यों जाते? दुर्भाग्य ये कि अब अदालत ने भी इस मुद्दे पर हाथ खड़े कर दिए है। ये सच है कि देश में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव तब तक नहीं हो सकते जब तक मतदाता सूची मतदाताओं की परिभाषा के अनुसार न हो। लेकिन मतदाता सूचियों के शुद्दीकरण के नाम पर विपक्ष का साथ देने वाले करोड़ों मतदाताओं को घुसपैठिया बताकर मतदाता सूचियों से बाहर नहीं किया जा सकता। सरकार पहले घुसपैठियों को चिन्हित कर उन्हें देश से बाहर करने का साहस दिखाए, बाद में मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए एसआईआर चलाए।