आखिर केंचुआ ने मेरी भैंस को डण्डा क्यों मारा?

– राकेश अचल


केन्द्रीय चुनाव आयोग द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव से पूर्व मतदाता सूचियों की जांच के सघन अभियान के नाम पर की जाने वाली कतर-ब्योंत के खिलाफ 9 जुलाई को हुए बिहार बंद की सबसे खास तस्वीर आपके सामने है। बंद कायमाब था या नहीं, अथवा इस बंद से केंचुआ की नींद और दो करोड से ज्यादा मतदाओं का मताधिकार छीने जाने के अभियान पर ब्रेक लगेगा या नहीं, इस पर बाद में बहस करेंगे।
दर असल केंचुआ ने केन्द्र सरकार, भाजपा, संघ का मनोरथ पूरा करने के लिए मतदाता सूचियों के सघन पुनरीक्षण के नाम पर बिहारियों की नागरिकता की जांच की मुहिम छेडी है, जो किसी बिहारी को बर्दास्त नहीं। इस भैंस वाले को भी जिसे कोई नहीं जानता। केंचुआ शायद नहीं जानता कि आम भारतीय के साथ ही आम बिहारी अपने मताधिकार को अपनी भैंस जितना ही कीमती मानता है। कोई भी यदि किसी बिहारी की भैंस या उसके मताधिकार से छेडछाड करने की कोशिश करेगा तो बिहारी उसे बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देगा।
पूरे देश और दुनिया ने मताधिकार को लेकर बिहार और बिहारियों का जुनून 9 जुलाई को देख लिया। बिहार में गैर भारतीय मतदाता यदि हैं तो लगातार सत्ता में रहे राजनीतिक दलों को इसकी जानकारी जरूर होगी, और यदि है तो फिर भाजपा समेत तमाम दल पिछले साल हुए आम चुनाव के वक्त मौन क्यों रहे? चुनाव आयोग तब कहां सो रहा था? अचानक केंचुआ ज्ञानेंश को मतदाता सूचियों में गैर भारतीयों के शामिल होने का दिव्य ज्ञान कहां से मिला? अगर भारत की मतदाता सूचियों में गैर भारतीय शामिल हो गए हैं तो उन्हें बाहर करने के लिए राष्ट्र व्यापी अभियान छेडने के बजाय बिहार को ही लक्ष्य क्यों बनाया गया?
मैं केंचुआ की इस बात से इत्तफाक रखता हूं कि भारत की मतदाता सूचियों में कोई गैर भारतीय नहीं रहेगा, नहीं रहना चाहिए। लेकिन क्या केंचुआ के पास इस सवाल का कोई जबाब है कि भारत में नागरिकों को दिए गए आधार पहचान पत्र बोगस हैं। यदि केंचुआ ये कहना चाहता है, तो ये केवल बिहारियों का नहीं बल्कि भारत सरकार का अपमान है। प्रधानमंत्री का अपमान है। संविधान का अपमान है और इसे बर्दास्त नहीं किया जा सकता। किसी सूरत में नहीं किया जा सकता। सवाल ये है कि क्या खुद केंचुआ ज्ञानेंश के पास कोई नागरिकता प्रमाण पत्र है? कम से कम मेरे पास तो नहीं है, क्योंकि भारत सरकार ने हम भारतीयों को आधार पहचान पत्र के अलावा कुछ दिया ही नहीं।
बहरहाल अब बिहार बंद पर आते हैं। बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण के खिलाफ बिहार बंद का असर कई जिलों में नजर आया है। राजधानी पटना के अलावा गोपालगंज, दरभंगा, आरा, किशनगंज, गया जी, सहरसा समेत कई जिलों में बंद समर्थकों ने जमकर प्रदर्शन किया है। इस दौरान कहीं ट्रेनें रोक दी गईं तो कहीं सडक पर आगजनी कर आवागमन को बाधित कर दिया गया। महागठबंधन में शामिल घटक दलों ने वोटर लिस्ट रिवीजन के खिलाफ यह बंद बुलाया था। पटना की सडक पर राहुल गांधी, तेजस्वी यादव समेत अन्य दिग्गज नेता नजर आए। मुजफ्फरपुर में वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को भी रोका गया। सीपीआई माले ने बिहार बंद को ऐतिहासिक बताया। दूसरी ओर मजदूर एवं कर्मचारी संगठनों ने भी विभिन्न मांगों को लेकर बुधवार को बिहार समेत देशभर में बंद बुलाया। बिहार ग्रामीण बैंक में हडताल से 10 हजार करोड रुपए के कारोबार का नुकसान हुआ।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पहले से तय कार्यक्रम के तहत इस बिहार बंद को धार देने के लिए हवाई जहाज से पटना पहुंचे। पटना पहुंचने के बाद राहुल गांधी आयकर गोलंबर पर पहुंचे। इनकम टैक्स गोलंबर पर पहले से ही बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव मौजूद थे। यहां महागठबंधन के कार्यकर्ताओं का हुजूम उमडा हुआ था। इसके बाद तेजस्वी यादव, राहुल गांधी, दीपांकर भट्टाचार्य और मुकेश सहनी जैसे दिग्गज नेता एक वाहन पर सवार होकर मार्च के लिए निकले। गाडी पर दिग्गज नेताओं के साथ पटना की सडक पर कार्यकर्ता लगातार पैदल मार्च कर रहे थे।
पैदल मार्च करते हुए यह हुजूम शहीद स्मारक पहुंचा। यहां निर्वाचन कार्यालय से कुछ दूर पहले ही पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रखी थी। कई कार्यकर्ताओं ने यहां बैरिकेडिंग को तोडने का भी प्रयास किया और कई बार स्थिति तनावपूर्ण भी बनी। पुलिस लगातार बैरिकेडिंग ना तोडने की अपील यहां कर रही थी। इस दौरान महागठबंधन के नेताओं ने अपने संबोधन में केन्द्र और राज्य सरकार को घेरा तथा बिहार चुनाव से पहले मतदाता पुनरीक्षण को घातक बताया। सरकार और केंचुआ की कुंभकर्णी नींद तोडने के लिए बंद से ज्यादा क्या किया जा सकता है। अब भी यदि केंचुआ, केंचुआ सरकार न जागी तो 1975 की समग्र क्रांति के अलावा शायद कोई दूसरा विकल्प बचेगा नहीं।