पर्यावरण को संतुलित करने में गौरैया महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है : डॉ. मनोज जैन

– सुप्रयास द्वारा विश्व गौरैया दिवस पर संगोष्ठी आयोजित

भिण्ड, 20 मार्च। गौरैया केवल फसलों के दाने ही नहीं चुनती, अपितु उन दानों को सफाचट कर जाने वाले कीड़ों को भी खाकर दानों की क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों में बढ़ोतरी करती है। एक स्वस्थ गौरैया दिनभर में अपने वजन से दोगुना तक कीड़े खा जाती है, पर मनुष्य की अज्ञानता ने गौरैया के आवास को नष्ट किया है और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से भी गौरैया के जीवन को खतरा उत्पन्न हुआ है, आज शहरी क्षेत्र से गौरैया तेजी से लुप्त होती जा रही है। यह उद्गार पर्यावरणविद डॉ. मनोज जैन ने विश्व गौरैया दिवस के उपलक्ष्य में सामाजिक संस्था सुप्रयास द्वारा आयोजित गौरैया संरक्षण संगोष्ठी में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि अपने पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए गौरैया का संरक्षण करना बहुत आवश्यक है गौरैया को संरक्षण करने के लिए किए गए उपायों से गौरैया के साथ-साथ अन्य पशु और पक्षियों का भी संरक्षण हो जाता है। गौरैया को संरक्षण के लिए हम उसके लिए कृत्रिम घोंसलों की व्यवस्था करें उसके लिए दाना पानी की व्यवस्था करें, यह तो अच्छा ही है पर उससे भी अच्छा यह है कि गौरैया के जो प्राकृतिक आवास हैं उनको नष्ट होने से भी बचाया जाए। हम अपने घर के आस-पास की झाडिय़ां को संरक्षित करें तथा छप्पर एवं दीवाल में आलो को भी संरक्षित करें। प्राकृतिक वातावरण में गौरैया ज्यादा सहज रहती है। वर्तमान में शहरीकरण के कारण अब गौरैया के भोंसले घरों में नहीं रहते हैं। इसलिए हम लकड़ी, कार्डबोर्ड, मिट्टी इत्यादि के घोसला बनाकर घरों के आस-पास टांग देते हैं, उससे भी गौरैया को संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका मिलती है।
संगोष्ठी में प्राचार्य नरेश सिंह भदौरिया ने स्वागत भाषण में कहा कि सुप्रयास द्वारा गौरैया संरक्षण के लिए किए जा रहे योगदान में विद्यालय अपना भरपूर सहयोग प्रदान करेगा। सत्यनारायण चतुर्वेदी ने कहा कि सामाजिक संस्था सुप्रयास के जागरूकता कार्यक्रम से बहुत लोगों को गौरैया संरक्षण की प्रेरणा मिली है। मैंने भी अपने घर में जो घोंसले लगाए थे, उनमें अब गौरैया का बसेरा हो चुका है। संगोष्ठी में छात्र-छात्राओं के अलावा राजीव दुबे, अरुण सिंह चौहान, अवधेश वर्मा, कल्पना सिकरवार, रीता द्विवेदी, मीना चौधरी तथा सरिता शर्मा ने भी भाग लिया।