– राकेश अचल
भारत में सभी चाय बेचने वालों का नसीब एक जैसा नहीं होता। यदि एक चाय वाला देश का प्रधानमंत्री बन सकता है तो दूसरा चाय वाला सिख दंगों के आरोप में 80 साल की उम्र में आजीवन सजा भी पा सकता है। सवाल ये है कि एक बूढे आदमी को 41 साल सजा सुनाने वाली अदालत क्या सचमुच इसे एक सही फैसला मानती है। इस फैसले से न पीडितों को न्याय मिला और न आरोपी को सजा।
आज की अनुजवान पीढी सज्जन कुमार को नहीं जानती होगी, इसलिए मैं पहले आपको सज्जन कुमार के बारे में बता देना जरूरी समझता हूं। सज्जन कुमार एक गरीब परिवार में 80 साल पहले यानि दिल्ली में 23 सितंबर 1945 को जन्मे थे, उनका बचपन भी आज के प्रधानमंत्री की तरह चाय बेचकर गुजारा करने में कब बीत गया, कोई नहीं जानता। कुमार ने सज्जन ने धीरे-धीरे कांग्रेस में अपनी घुसपैठ करनी शुरू की। 1970 के दशक में इमरजेंसी के दौर में सज्जन कुमार तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के करीब आ गए, जिन्हें उस समय ‘सुपर पीएम’ कहा जाता था। संजय गांधी के समर्थन से सज्जन कुमार ने दिल्ली नगर पालिका का चुनाव जीता। इसके बाद 1980 में लोकसभा चुनाव में सज्जन कुमार को दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे ब्रह्माप्रकाश के खिलाफ कांग्रेस ने टिकट दिया। इस चुनाव में जीतकर सांसद बनने के साथ सज्जन कुमार को रुतबा पूरे देश में जम गया था।
संजय गांधी ने अपने पांच सूत्रीय कार्यक्रम में सज्जन कुमार को अहम जिम्मेदारी दी थी, हालांकि संजय गांधी के असमय हवाई जहाज क्रैश में हुए निधन से सज्जन कुमार को झटका लगा, लेकिन इससे वे प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के करीब आ गए थे। सज्जन कुमार को ही श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों का सिख विरोधी दंगों को अंजाम देने वाला मास्टर माइंड माना जाता है। सज्जन कुमार को राउज एवेन्यू कोर्ट ने दिल्ली के सरस्वती विहार इलाके में 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान हुई हिंसा से जुडे केस में उम्रकैद की सजा सुनाई है। दंगों के दौरान सरस्वती विहार में जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह को जिंदा जला दिया गया था। सरस्वती विहार में 1 नवंबर 1984 को हुई इस हत्या में दिल्ली पुलिस ने भादंस की धारा 147, 148, 149, 302, 308, 323, 395, 397, 427, 436 और 440 के तहत सज्जन कुमार को मास्टर माइंड बनाते हुए केस दर्ज किया था।
हत्या के इस मामले में अभियोजन की कार्रवाई बेहद लचर ढंग से हुई। पुलिस ने जिस व्यक्ति को चश्मदीद गवाह बनाया वो पूरे 16 साल पुलिस को चराता रहा। उसने 16 साल बाद सज्जन कुमार के इस हिंसा में शामिल होने की पुष्टि की थी। हालांकि सज्जन कुमार के वकील ने इसका ही आधार बनाते हुए अपने मुवक्किल को निर्दोष बताया था। सज्जन कुमार ने भी एक नवंबर 2023 को कोर्ट में इस मामले में गवाही में खुद को निर्दोष बताया था।
इस मामले में अभियोजन की तरफ से कोर्ट में दी गई दलीलों में इसे निर्भया केस से भी ज्यादा संगीन मामला बताया गया था, जिसमें समुदाय विशेष के लोगों को टारगेट करके किलिंग की गई थी। सिख विरोधी हिंसा को मानवता के खिलाफ अपराध बताते हुए अभियोजन ने इस मामले में सज्जन कुमार को फांसी की सजा सुनाए जाने की मांग की थी। सवाल ये है कि हमारे देश की न्याय-व्यवस्था हत्या जैसे मामले में यदि आरोपी को सजा सुनाने में 41 साल लग जाते हैं तो हम अपनी न्याय व्यवस्था के प्रति आस्था कैसे रख सकते हैं। 80 साल की उम्र में यदि सज्जन कुमार जेल वापस लौटते भी हैं तो मृतक में परिजनों को कैसे संतोष मिलेगा?
सज्जन कुमार के संगी-साथी अब उनके साथ नहीं है। वे कांग्रेस के साथ नहीं है और वे कांग्रेस के साथ नहीं है। सज्जन कुमार के प्रति मेरी सहानुभूति है। वे हत्यारे थे या नहीं देश की जनता जानती है। इस फैसले के बाद आप कह सकते हां कि हमारे यहां देर हैं लेकिन अंधेर नहीं है। हकीकत क्या है इसे दोनों चाय वाले समझते हैं, सवाल ये भी है की ये चाय वाले ही दंगों के आरोपी क्यों होते हैं, की काफी शाप वला क्यों नहीं होता? याद रखिए कि सिख दंगों की जांच ले लिए बने नानावटी आयोग के मुताबिक, 1984 के दंगों के संबंध में दिल्ली में कुल 587 एफआईआर दर्ज की गई थीं, जिसमें 2,733 लोग मारे गए थे।