माधवराव सिंधिया का मरणोपरांत भाजपाई होना

– राकेश अचल


कांग्रेस को अपनी सियासी दौलत सम्हालना नहीं आता। कांग्रेस ने पार्टी के दिग्गज नेता रहे स्व. माधवराव सिंधिया को अपनी लापरवाही से गंवा दिया। जो सिंधिया आजीवन कांग्रेसी रहे वे कांग्रेस द्वारा भुलाए जाने से अब भाजपाई हो गए हैं। स्व. माधवराव सिंधिया को मरणोपरांत उनके अपने बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपाई बना दिया। अब उनकी जयंती हो या पुण्यतिथि कांग्रेसी नहीं बल्कि भाजपाई मनाते हैं। माधवराव सिंधिया का निधन आज से 23 साल पहले उत्तर प्रदेश में एक विमान दुर्घटना में हो गया था। उस समय भी वे कांग्रेस की और से चुनाव प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश गए थे। सिंधिया ने अपना राजनीतिक जीवन जनसंघ से आरंभ किया था लेकिन बहुत जल्द उनका जनसंघ से मोह भंग हो गया। सिंधिया ने अपना पहला लोकसभा चुनाव गुना संसदीय क्षेत्र से 1971 में जनसंघ के टिकिट पर ही लडा था, लेकिन आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में उन्होंने जनसंघ छोड दी और निर्दलीय चुनाव लडकर जीते थे।
सन 1980 में वे बाकायदा कांग्रेस में शामिल हो गए। 1984 में उन्होंने ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में नवगठित भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी बाजपेयी को पराजित किया था। माधवराव सिंधिया ने 1989 और 1991 में भी ग्वालियर से ही लोकसभा का चुनाव लडा और जीता। हवाला काण्ड में नाम आने के बाद उन्हें कांग्रेस से निष्काषित कर दिया गया तब पहली बार उन्होंने एक जेबी पार्टी मप्र विकास कांग्रेस के टिकट पर 1996 का चुनाव लडा और जीता। वे चुनाव जीतने के बाद दोबारा कांग्रेस में वापस आ गए और उन्होंने ग्वालियर से 1998 में फिर कांग्रेस के टिकिट पर चुनाव लडा। लेकिन ये ग्वालियर से उनका अंतिम चुनाव था। इस चुनाव में भाजपा के जयभान सिंह पवैया ने उन्हें कडी टक्कर दी थी। माधवराव सिंधिया अपनी मां राजमाता विजयराजे सिंधिया के निधन के बाद 1999 में वापस गुना सीट से चुनाव लडने चले गए।
माधवराव सिंधिया, सिंधिया परिवार के अजेय राजनेता थे। उन्होंने लोकसभा के नौ चुनाव लडे लेकिन एक भी बार नहीं हारे, जबकि उनकी मां स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया और उनके बेटे केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ही नहीं अपितु उनकी बहन बसुंधरा राजे तक ने पराजय का स्वाद चखा। माधवराव सिंधिया 2020 तक कांग्रेस की विरासत थे लेकिन 2020 में उनके बेटे ज्योतरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड भाजपा की सदस्य्ता ली तो वे अपने साथ अपने दिवंगत पिता स्व. माधवराव सिंधिया को भी भाजपा में ले आए। ये पहला ऐसा मामला था जिसमें कोई अपने दिवंगत पिता को भी दलबदल करने में कामयाब हुआ हो। भाजपा ने भी माधवराव सिंधिया को सहजता से बिना मिस्डकॉल के अपना सदस्य बना लिया। अब माधवराव सिंधिया की पुण्यतिथि हो या जन्मतिथि भाजपा और सिंधिया के परिजन ही मानते है। कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को बिल्कुल भुला ही दिया है।
माधवराव सिंधिया ग्वालियर के पहले ऐसे नेता थे जो ग्वालियर को देश के विकास की मुख्यधारा में ले आए थे। उनके कार्यकाल में ग्वालियर को अनेक योजनाएं मिलीं, आधारभूत संरचनाओं का विकास भी हुआ। औद्योगिक क्रांति भी हुई। कांग्रेस इस सबका लाभ उठा सकती थी, लेकिन कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से जाते ही अपने आपको समांतवाद से मुक्त पाकर राहत की सांस ली और कांग्रेस की विरासत बने माधवराव सिंधिया को भुला दिया। जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने साथ माधवराव सिंधिया के प्रति निष्ठावान तमाम कांग्रेसियों को अपने साथ भाजपा में ले आ गए और आज भी वे कांग्रेसियों पार डोरे डालते रहते हैं।
स्व. माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया में से एक की भी गर्भनाल ग्वालियर में नहीं है। दोनों मुंबई की पैदाइश हैं, लेकिन उनके डीएनए में ग्वालियर है। ग्वालियर में उनकी अकूत स्थावर संपत्तियां हैं। इनकी रक्षा के लिए ही उन्हें ग्वालियर के विकास का राग अलापना पडता है। सत्ता के साथ रहना पडता है। पिता-पुत्र ने ग्वालियर के लिए जितना किया उसका लाभ ग्वालियर की जनता के साथ सिंधिया परिवार को भी खूब मिला। आज भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर के सांसद नहीं हैं किन्तु उन्होंने अपनी दूकान ग्वालियर में सजा रखी है। ग्वालियर के विकास का ठेकेदार उन्होंने खुद को घोषित कर रखा है। ग्वालियर के सांसद भारत सिंह और महापौर को कोई दो टके में नहीं पूछता। कांग्रेस ने ग्वालियर में एक जमाने में सिंधिया परिवार के निकट रहे अशोक सिंह को भले ही राज्यसभा भेज दिया है, लेकिन वे ग्वालियर में सिंधिया परिवार की राजनीति का प्रभाव कम करने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं। ग्वालियर को उनके राज्यसभा में जाने का कोई लाभ नहीं मिला है।
आज ग्वालियर में सिंधिया के जमाने के राजचिन्हों से ग्वालियर को सजाने पर स्मार्ट सिटी परियोजना का पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, किन्तु कोई कांग्रेसी इसके खिलाफ खडा नहीं हुआ। ग्वालियर में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 550 करोड की लागत से नया हवाई अड्डा बनाया गया। आनन-फानन में ग्वालियर से देश के अनेक शहरों के लिए हवाई सेवाएं शुरू करा दी गईं, किन्तु चुनाव समाप्त होते ही कुल जमा तीन-चार हवाई सेवाओं को छोडकर सब बंद हो गईं। अब नए हवाई अड्डे पर सन्नाटा पसरा रहता है। ये नया हवाई अड्डा भी नए संसद भवन की तरह टपकने लगा है सो अलग। आपको जानकर हैरानी होगी की सिंधिया की प्राथमिकता में ग्वालियर में सिटी बस सेवा चलना कभी नहीं रही। वे नया हवाई अड्डा बनाकर खुश हैं। लेकिन कांग्रेसी गुड खाकर बैठे हैं।
बहरहाल बात स्व. माधवराव सिंधिया की थी। आज उनकी पुण्यतिथि है। वे एक सामंत थे फिर भी मुझे वे प्रिय थे, क्योंकि उन्होंने अपने आपको बहुत बदला था। वे अदावत की राजनीति नहीं करते थे। उनके जितने समर्थक कांग्रेस में थे उतने ही भाजपा में भी थे। यही वजह थी कि जब उन्होंने ग्वालियर से मप्र विकास कांग्रेस के टिकिट पर लोकसभा का चुनाव लडा था तब भाजपा ने उन्हें वाकओव्हर दे दिया था। उनके खिलाफ पार्टी के घोषित प्रत्याशी को मैदान से हटा दिया था। ये बात ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ नहीं है। वे जिस तरीके से सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल अपने निजी लाभ के लिए कर रहे हैं वैसा माधवराव सिंधिया ने नहीं किया। यदि किया तो सीना ठोंकर नहीं लुका-छिपे किया। माधवराव सिंधिया के प्रति मेरी श्रृद्धांजलि। मेरी दृष्टि में वे मरणोपरांत भी भाजपाई नहीं बल्कि कांग्रेसी ही हैं।